योगेंद्र सिंह यादव – रियल मैन ऑफ स्टील

योगेंद्र सिंह यादव जैसे वीर विरले ही देखने को मिलते हैं

Yogendra Singh Yadav

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जुलाई 1999,  ‘मैन ऑफ स्टील’ के बारे में तो आपने अवश्य सुना होगा परंतु हमारे देश में ऐसे अनेकों अनेक लोग हैं जो इस काल्पनिक उपाधि को वास्तविकता में चरितार्थ कर देने का माद्दा रखते हैं। भारत में ऐसी असाधारण दिखाने वाले योद्धा तो अनंत हैं जिनके नाम लिखते लिखते युगों बीत जाएंगे लेकिन वर्तमान इतिहास में ऐसे असाधारण वीरता दिखाने वाले वीरों के लिए एक विशेष सम्मान की रचना भारत की स्वतंत्रता के समय की गयी थी– परम वीर चक्र। आज ऐसे ही परम वीर का जन्मदिन है– आनरेरी कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव [सेवानिर्वृत्त] की, जो परम वीर चक्र से सम्मानित होने वाले सबसे युवा विजेता हैं।

आनरेरी कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव

परम वीर चक्र को प्राप्त करना कितना कठिन है यह इसी से ज्ञात होता है कि इसे मात्र 21 सैनिकों ने स्वतंत्र भारत के इतिहास में प्राप्त किया है, जिनमें से मात्र 7 लोग इतने भाग्यशाली थे जो इसे जीते जी अपने छाती पर गर्व से पहन पाए। उनमें भी केवल 3 ही व्यक्ति ऐसे हैं, जो आज भी गर्व से इस गौरव गाथा को बताने के लिए जीवित है। इन्हीं में से एक हैं – ग्रेनेडियर [ अब आनरेरी कैप्टन ] योगेंद्र सिंह यादव।

इस अनोखे वीर का जन्म बुलंदशहर जिले के औरंगाबाद अहीर ग्राम में 10 मई 1980 को हुआ था। वीरता इन्हें विरासत में मिली थी। इनके पिता करण सिंह यादव कुमाओं रेजिमेंट के सिपाही जो ठहरे। पिता करण सिंह यादव 1965 और 1971 के भारत पाक युद्ध का अनुभव प्राप्त करने के पश्चात अपनी कथाओं से वे पूरे गांव को प्रभावित करते थे, और उन्हीं में एक नन्हा योगेंद्र भी था।

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देशभक्ति की भावना योगेंद्र में इतनी प्रबल हुई कि बारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण करते ही उन्होंने सेना में भर्ती का फ़ॉर्म भी भर दिया। वे मात्र साढ़े 16 वर्ष के थे, जब उन्होंने भारतीय सेना के लिए आवेदन किया और जल्द ही वे ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट का हिस्सा बने। लेकिन वे जितने युवा थे उतने ही जोशीले भी। जल्द ही योगेंद्र भारतीय सेना के घातक कमांडो फोर्स का हिस्सा बने।

योगेंद्र मात्र 19 वर्ष के थे, जब कारगिल युद्ध भारत और पाकिस्तान के बीच छिड़ा था। 18 ग्रेनेडियर्स रेजिमेंट का हिस्सा होने के नाते उन्हें प्रारंभ में तोलोलिंग भेजा गया था जहां ग्रेनेडियर्स को पाकिस्तानी सैनिकों को हटाने में पसीने छूट गए थे। तद्पश्चात उनकी सहायता के लिए 2 राजपूताना राइफल्स की एक बटालियन आयी जिन्होंने तोलोलिंग को पुनः प्राप्त किया।

जब कारगिल युद्ध की दिशा बदलना था लक्ष्य

इसके पश्चात घुमरी में विश्राम करने के पश्चात 18 ग्रेनेडियर्स को अगला मिशन दिया गया– टाइगर हिल को पुनः प्राप्त करने का। इस स्थान पर पुनः नियंत्रण करना यानी कारगिल के युद्ध की दिशा बदलने के बराबर था। इस मिशन पर ग्रेनेडियर्स का साथ देने के लिए 8 सिख और 2 नागा रेजिमेंट्स की अतिरिक्त बटालियन साथ नियुक्त हुई।

आखिरकार इस मिशन का आरंभ हुआ 3 जुलाई को जब शाम से आर्टिलेरी फायरिंग प्रारंभ हो गई। इसका उद्देश्य स्पष्ट था कि शत्रु का ध्यान भटकाना ताकि सैनिकों को दूसरे मार्गों से धावा बोलने के लिए पर्याप्त अवसर मिले। परंतु बरखा दत्त जैसे सैनिकों ने अपनी ‘लाइव कवरेज’ से सारे किए कराए पर पानी फेर दिया।

जब घातक प्लाटून मिशन के लिए पहुंची, तो पाकिस्तानियों को भनक लग चुकी थी। ताबड़तोड़ मशीन गन फायरिंग और रॉकेट फायर से भारतीय सैनिकों का स्वागत हुआ। इससे योगेंद्र यादव और उनके साथ आए सैनिक बाकी सैनिकों से अलग हो गए, और जल्द ही पाकिस्तानी सैनिकों के गोलियों के बौछार के आगे केवल वही टिक पाए।

सब मारे जा चुके थे, परंतु वह जीवित था। रक्त से लथपथ वह वीर सैनिक अपने घावों के कारण उस बर्फीली चोटी पर अपने स्थान से हिल भी नहीं पा रहा था। परंतु शत्रुओं की गतिविधि और उनकी योजना उसे सब सुनाई दे रही थी, और उसे पता था कि यदि वे पुनः गठित होने में सफल रहे, तो कारगिल पर विजय पाने का स्वप्न स्वप्न ही रह जाएगा। परंतु उस युवा सैनिक के मन मस्तिष्क में पराजय का अंश मात्र भी अंकित न था। उसने चुपचाप अपने बेल्ट से एक ग्रेनेड निकाली, और रेंगते हुए वे पाकिस्तानी टुकड़ी के निकट आ पहुंचे। अवसर पाते ही उस रक्तरंजित युवा सैनिक ने वह ग्रेनेड एक पाकिस्तानी सैनिक पर फेंकी, और वह सीधा उसके जैकेट के हुड में अटक गई। उसके बाद जो हुआ, वह इतिहास के स्वर्णिम अक्षरों में लिखा गया।

ग्रेनेडियर [तत्कालीन]योगेंद्र सिंह यादव के शब्दों में, “मेरे बटुए में पाँच रुपये के सिक्के रखे हुए थे। जब सबको गोलियां मारी जारी थी, तो मुझे भी गोलियां मारी गई थी, लेकिन मेरे बटुए के उन सिक्कों ने मेरी जान बचाई”।

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शरीर में लगी थीं असंख्य गोलियां

शरीर में असंख्य गोलियां होने के बाद भी योगेंद्र सिंह यादव डिगे नहीं। उन्होंने पहले ग्रेनेड चलाकर एक पाकिस्तानी सैनिक को धराशायी किया, और फिर पूरी शक्ति लगाकर अपने राइफल से जितना हो सकता था, उतने सैनिकों को मार गिराया। इससे पकिस्तानियों को भ्रम हुआ कि बेस कैंप से भारतीय सैनिक आ धमके हैं और वे डर के मारे भाग खड़े हुए।

योगेंद्र यादव किसी तरह घिसटते हुए अपने शिविर तक पहुंचे, और उन्होंने पूरी स्थिति अपने पलटन को बताई। उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया, जहां महीनों तक उनका उपचार हुआ। अनेकों घाव के बाद भी जिसके शौर्य पर तनिक भी आंच नहीं आयी वो थे योगेंद्र सिंह यादव। मात्र 19 वर्ष की आयु में उन्हें देश के सर्वोच्च वीरता सम्मान, परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया और रोचक बात ये थी कि प्रारंभ में इन्हें ये सम्मान मरणोपरांत दिया गया और बाद में पता चला कि योगेंद्र सिंह यादव जीवित हैं क्योंकि टाइगर हिल में उन्हीं के पलटन में नायक योगेंद्र सिंह यादव भी वीरगति को प्राप्त हुए जिसके कारण ये दुविधा उत्पन्न हुई।

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