ISIS मुखिया को खलीफ़ा मानकर शपथ लेने वाले मुस्लिम युवा को बॉम्बे हाईकोर्ट ने दी जमानत

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बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोमवार को 16 जुलाई 2016 में महाराष्ट्र आतंकवाद विरोधी दस्ते (एटीएस) द्वारा परभणी आईएसआईएस मॉड्यूल के सिलसिले में गिरफ्तार मोहम्मद रईसुद्दीन को जमानत दे दी है। हालांकि रईसुद्दीन पर गैरकानूनी कृत्य करने और प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन के लिए लोगों को भर्ती करने के आरोप थे लेकिन कोर्ट को वे सभी आरोप झूठे, गलत और काल्पनिक लगे जिसके कारण आरोपी को छोड़ दिया गया।

एटीएस ने क्या दावा किया है

एटीएस ने दावा किया कि मामले के एक आरोपी इकबाल अहमद के घर में एक बिजली बोर्ड पर उन्नत विस्फोटक उपकरण बरामद हुआ था। पुलिस को कथित तौर पर अहमद के घर में उर्दू में लिखी एक ‘शपथ’ भी मिली, जो इराकी आतंकवादी नेता के प्रति उनकी निष्ठा की घोषणा करती है। बाद की जांच से पता चला कि सिद्दीकी जो उस समय हिंगोली में एक शिक्षक के रूप में काम करता था उसने यह बयान लिखा था और उसे इस मामले में गिरफ्तार किया गया था।

लेकिन न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति वीजी बिष्ट ने कहा, “दिवंगत इराकी आतंकवादी नेता अबू बक्र अल बगदादी को मुसलमानों के ‘खलीफा’ के रूप में स्वीकार करने की घोषणा को ही आपत्तिजनक स्थिति नहीं माना जा सकता है.”

गौरतलब है कि न्यायमूर्तियों को आवेदक द्वारा कथित रूप से हस्ताक्षरित एक शपथ, जिसके बारे में अभियोजन पक्ष ने कहा कि एक आतंकवादी संगठन के प्रति निष्ठा दर्शाता है, आपत्तिजनक नहीं लगती।

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कुछ गवाहों के सबूतों को भी खारिज कर दिया गया

न्यायालय ने अभियोजन पक्ष के कुछ गवाहों के सबूतों को भी खारिज कर दिया, जिससे यह खुलासा हुआ कि यह समूह भारत, फिलिस्तीन और ऐसे अन्य स्थानों में मुसलमानों से जुड़ी घटनाओं पर नियमित चर्चा करता था और दूसरे मुसलामानों को भड़काता था।

लेकिन पीठ का कहना था कि “उपरोक्त गवाहों के बयानों का अवलोकन भले ही इसके अंकित मूल्य पर लिया गया हो लेकिन यह केवल कुछ स्थानों पर मुसलमानों से जुड़ी घटनाओं पर नियमित चर्चा भी हो सकती है, और केवल गवाहों की धारणा कि उक्त आरोपी व्यक्तियों का जिहादी झुकाव था या वे कट्टरपंथी थे इन्हें दोषी या जिहादी सिद्ध नहीं करता। यह इंगित करने के लिए कोई सामग्री नहीं है कि अपीलकर्ता ने किसी अपराध या उग्रवाद के लिए उकसाया, और न ही अपीलकर्ता ने हिंसक प्रतिक्रियाओं की वकालत की।”

इस तरह अभियोजन पक्ष के सभी गवाहों और दलीलों को नकारते हुए मुंबई न्यायालय ने एक आतंकवादी को खलीफा मानने वाले को निर्दोष, निरपराध और मासूम कहकर छोड़ दिया।

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