कांग्रेस में पहले राजनीति चलती थी, आजकल मौज हो रही है

कांग्रेस अब समझ गई है कि 'राजनीति तो क्षणिक है, मौज शाश्वत है!'​

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उत्तर-प्रदेश विधानसभा चुनावों में मिली बुरी हार से कांग्रेस अबतक उभर नहीं पाई है। प्रदेश की 403 सीटों में से कांग्रेस सिर्फ 2 सीटों पर ही जीत हासिल कर पाई है। बाकी सभी 401 सीटों पर पार्टी की बुरी हार हुई। कई सीटों पर तो कांग्रेस प्रत्याशी अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी उत्तर-प्रदेश में पार्टी की कमान आगे बढ़कर संभाल रही थी- लेकिन पार्टी की स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ।

वैसे तो कांग्रेस पार्टी पूरे देश में ही निरंतर हार रही है लेकिन उत्तर-प्रदेश में उसकी स्थिति बहुत बुरी है। अब तो हालात यह हो गए हैं कि कांग्रेस पार्टी ने उत्तर-प्रदेश में चुनाव लड़ने की योजना ही त्याग दी है। जी हां, उत्तर-प्रदेश की दो सीटों आजमगढ़ और रामपुर पर लोकसभा उपचुनाव होने हैं, लेकिन इन सीटों पर कांग्रेस पार्टी ने लड़ने से इनकार कर दिया है।

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उत्तर-प्रदेश की रामपुर सीट से समाजवादी पार्टी के सांसद आज़म खान ने विधायक चुने जाने के बाद इस्तीफा दे दिया था। इसी तरह से आज़मगढ़ से अखिलेश यादव ने इस्तीफा दे दिया था, जब वो विधायक चुने गए थे। इसके बाद ही यह दोनों सीटें खाली हुई हैं।

अब जबकि कांग्रेस चुनाव नहीं लड़ रही है और रामपुर में बसपा भी अपना प्रत्याशी नहीं उतार रही है, ऐसे में रामपुर में बीजेपी और सपा के बीच कड़ी टक्कर होगी, वहीं आज़मगढ़ में बसपा अपना प्रत्याशी उतार रही है। आज़मगढ़ में भारतीय जनता पार्टी ने दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ को टिकट दिया है, ऐसे में आज़मगढ़ में तीनों पार्टियों के बीच मुकाबला होने की पूरी उम्मीद है।

कांग्रेस पार्टी ने कहा है कि वो इन सीटों पर चुनाव नहीं लड़ेगी। इसके साथ ही कांग्रेस किसी का समर्थन भी नहीं कर रही है। इसके पक्ष में तर्क देते हुए पार्टी की तरफ से कहा गया कि वो फिलहाल 2024 के लिए संगठन का पुननिर्माण करने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। कांग्रेस के चुनाव ना लड़ने के इस निर्णय से एक बात तो पूरी तरह से साफ हो गई है कि प्रदेश में पार्टी का कोई संगठन नहीं बचा है। उत्तर-प्रदेश में कांग्रेस पार्टी पूरी तरह से ख़त्म हो चुकी है। इसकी संभावना दूर-दूर तक नजर नहीं आती कि 2024 तक पार्टी प्रदेश में पुननिर्माण कर पाएगी। यह इसलिए क्योंकि अब पार्टी पूरी तरह से ‘शांत’ है। कांग्रेस राजनीतिक तौर पर असक्रिय है।

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प्रियंका गांधी जो कभी-कभार दिल्ली से यूपी में आ जाती थी और मीडिया कवरेज मिल जाता था- अब वो भी बंद है। विधानसभा चुनावों के बाद शायद प्रियंका गांधी को भी समझ आ गया है कि उत्तर-प्रदेश में पार्टी को खड़ा करना उनके लिए संभव नही है। ऐसे में पार्टी राजनीतिक तौर पर राज्य में पूरी तरह से निष्क्रिय हो गई है। इतनी निष्क्रियता है कि कांग्रेस पार्टी के बचे-खुचे नेताओं के बीच आपस में भी राजनीति नहीं हो रही। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उत्तर-प्रदेश में पार्टी बची ही नहीं है क्योंकि जिन राज्यों में भी कांग्रेस का संगठन या फिर कांग्रेस के नेता बचे हैं उन राज्यों में उनके बीच में ही सिर-फुटौव्वल चलता रहता है। पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और कर्नाटक इसके बेहतरीन उदाहरण हैं।

ऐसे में जब कांग्रेस पार्टी का संगठन उत्तर-प्रदेश में ख़त्म हो गया है। पार्टी को अब चुनाव भी नहीं लड़ना है। तो फिर यह साफ तौर पर कहा जा सकता है कि अब कांग्रेस में राजनीति भी ख़त्म हो गई और बस मौज ही मौज बची है। जो भी नेता बचे हैं वो मौज कर रहे हैं। वैसे भी किसी महान व्यक्ति ने कहा है कि ‘राजनीति तो क्षणिक है, मौज शाश्वत है।’ प्रतीत होता है कांग्रेस ने इस बात को गंभीरता से ले लिया है।

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