‘भाजपा चुनाव जिताऊ मशीनरी’ का यदि एक उदाहरण है तो देवेंद्र फडणवीस उसी भाजपा की फैक्ट्री से बनकर निकले सबसे बड़े तुरुप के इक्के साबित हुए हैं। वर्तमान में महाराष्ट्र का राजनीतिक घटनाक्रम ओह-पोह की स्थिति में है। शिवसेना के बड़े नेता और राज्य सरकार के कद्दावर मंत्री एकनाथ शिंदे रिसॉर्ट पॉलिटिक्स करते हुए तीन दर्जन विधायकों के साथ असम में डेरा डाल शिवसेना और महाविकास अघाड़ी सरकार के गले की फांस बन चुके हैं। जिसके कारण महा विकास अघाड़ी सरकार पर संकट के बादल भी मंडरा रहे हैं। वहीं, दूसरी ओर राज्य में हुए एमएलसी चुनाव में मिली एक और अप्रत्याशित जीत के बाद यह सिद्ध हो गया है कि प्रदेश में सत्ता और शासन किसी का भी हो, चुनाव जीताने की बहुमुखी कला मात्र देवेंद्र फडणवीस के पास है।
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वो तो शिवसेना ने भाजपा को धोखा दे दिया था वरना 288 में 152 सीट पर चुनाव लड़ने वाली भाजपा को 105 सीटों पर जीत हासिल हुई और तत्कालीन गठबंधन सहयोगी शिवसेना जिसने 123 सीटों पर चुनाव लड़ा और मात्र 56 सीटों पर जीत दर्ज़ कर पाई। यहां भी शिवसेना की ज़िद का ही परिणाम था वरना लगभग समान सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद भी जनता के बीच शिवसेना की अस्वीकार्यता साफ रूप से प्रदर्शित होती है। देवेंद्र फडणवीस के राजनीतिक कौशल का अंदाज़ा शिवसेना से लेकर सभी दलों को था इसलिए उन्हें नीचे लाने के चक्कर में बालसाहेब ठाकरे की विचारधारा को धकेल उद्धव ठाकरे ने अघाड़ी गठबंधन के साथ सरकार बना ली।
हालांकि, सरकार बनाने के बाद भी महाविकास अघाड़ी के तीनो दल शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की सिर फुटव्वल जगजाहिर रही, ऐसे में भाजपा के लिए यह आपदा में अवसर बन गया। हाल ही में हुए राज्यसभा चुनाव में भाजपा ने एकमुश्त 10 में से 5 सीटें जीत ली थी, इसने अघाड़ी सरकार को बड़ा घाव दिया ही था कि राज्यसभा चुनाव के कुछ ही दिनों बाद, महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ महा विकास अघाड़ी को भाजपा ने एक और बड़ा झटका दे दिया। भाजपा, राज्य विधान परिषद चुनावों में 10 में से पांच सीटें जीतने में सफल रही, वो भी तब जब पार्टी के पास केवल चार सीटों पर जीत प्राप्त करने का बहुमत था। कांग्रेस ने केवल एक सीट जीती, जबकि एनसीपी और शिवसेना ने दो-दो सीटों पर जीत हासिल की।
ध्यान देने वाली बात है कि सीएम उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में एमवीए के पास सभी छह एमएलसी उम्मीदवारों का चुनाव सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त संख्या थी, लेकिन यह एक सीट हार गई, जबकि प्रथम दृष्टया बड़े पैमाने पर क्रॉस-वोटिंग और निर्दलीय उम्मीदवारों के समर्थन के कारण भाजपा ने अपने सभी पांच उम्मीदवारों की जीत सुनिश्चित कर ली है। इसके ठीक बाद सुबह तक अघाड़ी सरकार को एक झटका तब लगा जब एकनाथ शिंदे का “वनविहार कार्यक्रम विद 40 अदर्स” ख़बरों में आने लगा। सरकार के महत्वपूर्ण विभाग के शहरी विकास और लोक निर्माण मंत्री समेत दर्जनों विधायकों का राज्य से गायब होना इस बात को प्रमाणित करता है कि देवेंद्र फडणवीस के कहे शब्द कहीं न कहीं सार्थक हो रहे हैं।
देवेंद्र फडणवीस ने विधानसभा में विपक्ष नेता के रूप में दिसंबर 2019 को यह कहा था कि “समंदर हूं लौट कर आऊंगा।” यह लौटना उसी बदले को पूर्ण कर रहा है जो शिवसेना के कारण फडणवीस का ध्येय हो गया था। अब धीरे-धीरे रिज़ॉर्ट पॉलिटिक्स वाले विधायकों की संख्या 40 तक पहुंच गई है, ऐसे में शाम चढ़ते-चढ़ते मामला वही हो रहा है जिसका अंदेशा है। अब महाराष्ट्र में राजतिलक की करो तैयारी, आ रहे है देवेन्द्र ‘शिकारी’ की गूंज अगर गूंज रही है तो यह देवेंद्र फडणवीस के करिश्माई नेतृत्व का ही कमाल है!
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