लीजिए ‘भारत एक खोज’ का एन्टीडोट तैयार है

देश के 'वास्तविक' नायकों से परिचित होने का आ गया है समय

स्वराज सीरीज

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“भारत एक खोज” जैसे अधकचरे सीरियल से क्या आप त्रस्त हैं? क्या आपका मूड इसलिए खराब है क्योंकि सम्राट पृथ्वीराज के साथ अन्याय हुआ? क्या अभी तक आप देश के वास्तविक नायकों से परिचित नहीं हो पाए हैं? अगर हां, तो आपको ये अवश्य जानना चाहिए कि भारत की वर्तमान केंद्र सरकार अब वास्तविक नायकों को उनका उचित सम्मान देगी और एक भव्य सीरीज (स्वराज) के द्वारा देश के वास्तविक नायकों को चित्रित भी किया जाएगा।

भव्य सीरीज के संबंध में दूरदर्शन ने की है घोषणा

दरअसल, हाल ही में दूरदर्शन ने घोषणा की है कि वे जल्द ही एक भव्य सीरीज लेकर सामने आने वाले हैं जिसका नाम होगा स्वराज। ‘आज़ादी का अमृत महोत्सव’ के अंतर्गत निर्मित होने वाले सीरीज स्वराज को प्रसार भारती एवं Contiloe Pictures निर्मित करेगी और 75 एपीसोड्स का यह धारावाहिक भारत के उस कालखंड पर प्रकाश डालेगा, जब वास्को डा गामा ने इसका भ्रमण किया था, यानी 1498 से 1947 तक, पुर्तगाली से लेकर मुगल, अंग्रेज इत्यादि, सभी प्रकार के आक्रमणकारी, उनके द्वारा किये गए अत्याचारों, और उनसे लोहा लेने वाले अनेक वीर, जिन्हे वामपंथी इतिहासकारों ने कभी सामने ही नहीं आने दिया, उनका अब सम्मान सहित वर्णन होगा –

पर इसका ‘भारत एक खोज’ से क्या नाता, और ये उसका एन्टीडोट कैसे है? आज जो लोग आमिर खान को कृष्ण जी के रूप में ही सोचकर खून से खौल उठते हैं, वे ये जानकर क्रोध से बौखला उठेंगे कि इस सीरीज में एक मुसलमान ने न केवल श्रीराम और श्रीकृष्ण के किरदारों को निभाया, अपितु उनके बारे में अर्धसत्य से परिपूर्ण तथ्यों को सिद्ध करने का प्रयास भी किया। यह सीरीज वास्तव में भारत के इतिहास को कितना समर्पित थी, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगता है कि 53 एपिसोड्स में कुल 20 तो केवल और केवल इस्लामिक आक्रान्ताओं को ही समर्पित थे और आठ तो विशेष रूप से मुगलों को ही समर्पित थे पर चोल साम्राज्य, छत्रपति शिवाजी महाराज, विजयनगर साम्राज्य और आचार्य चाणक्य को छोड़ दें तो वास्तविक भारतीय इतिहास पर कुल 10 एपिसोड भी नहीं थे। वीर लाचित बोरफुकान, राणा राज सिंह, पेशवा बाजीराव का उल्लेख तो छोड़िए, पानीपत के दो महत्वपूर्ण युद्धों और महाराणा प्रताप के पराक्रम तक का ठीक से उल्लेख नहीं किया गया।

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जब मूल स्त्रोत में झोल

परंतु हम भूल जाते हैं कि यह सब संभव कैसे था? जब मूल स्त्रोत ही जवाहरलाल नेहरू की ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ हो, तो आप इस सीरीज के निर्माताओं और लेखकों को वास्तविक इतिहास दिखाने के लिए बाध्य कैसे कर पाओगे? वो भी ऐसे समय में, जब रामायण को मूल स्वरूप में दिखाने के लिए ही उसे प्रतिबंधित करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाया जा रहा था। कांग्रेस पार्टी ‘रामायण’ तक को सेक्युलर के तौर पर दिखाने पर तुली थी और ऐसा न करने पर वे रामानंद सागर के विश्व प्रसिद्ध शो को बीच में बंद करने की धमकियां भी देते थे। रामानंद सागर के पुत्र और फिल्मकार प्रेम सागर अपनी पुस्तक में बताते हैं कि तत्कालीन दूरदर्शन के निदेशक भास्कर घोष ने मांग की थी कि रामायण को ‘थोड़ा और धर्मनिरपेक्ष बनाना चाहिए’, ताकि दूरदर्शन पर ध्रुवीकरण के आरोप न लगे।

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इतना ही नहीं, वे रामायण को 26 हफ्तों के प्रसारण का समय भी देने को तैयार नहीं थे, जिससे शो बीच में ही बंद हो जाए। लेकिन ये शो इतना विख्यात हुआ, और लोगों की आस्था इस शो से इतनी जुड़ चुकी थी कि न चाहते हुए भी भास्कर घोष को अपना विवादित निर्णय बदलना पड़ा था। दरअसल, तब जन समर्थन के कारण ही राजीव गांधी प्रशासन ने भास्कर घोष पर दबाव बनाया, अन्यथा वो तो रामायण के प्रसारण के लिए ही तैयार नहीं थे। अब आपको पता है कि ये भास्कर घोष किसके पिता हैं? ये उसी सागरिका घोष के पिता हैं, जो आए दिन केंद्र सरकार और सनातन धर्म के विरुद्ध विष उगलती हैं और निरंतर सनातन धर्म को अपमानित करने का प्रयास करती है।

ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि ‘स्वराज’ जैसे सीरीज लाकर दूरदर्शन दशकों पुरानी भूल को सुधारेगा भी और भारत के वास्तविक नायकों को उनका सम्मान भी देगा। अब नौटंकियों  और आतताइयों की नहीं, देश के वास्तविक नायकों की जय होगी!

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