भारत जिन कारणों से कभी सोने की चिड़िया कहलाता था उसका एक बड़ा कारण अंडमान जैसे द्वीप भी रहे होंगे। जिस अंडमान की छवि पिकनिक स्पॉट के अतिरिक्त और कुछ नहीं है, उस अवधारणा को परिवर्तित करने के लिए मोदी सरकार ने कमर कस ली है। उनके इस कदम से अंडमान मात्र रोमांच और आनंद लेने की जगह नहीं एक अजूबा ही है उसका भी प्रत्यक्ष पता चल जाएगा। जी हां, अंडमान जैसे द्वीप जितना अपनी सुंदरता के लिए जाने जाते हैं, अब उसकी सुंदरता कुछ ऐसे बढ़ जाएगी जब लोगों को पता चलेगा कि इन द्वीपों में प्रचुर मात्रा में तेल का भंडार है।
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अंडमान में पूंजी निवेश की है तैयारी
दरअसल, द इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, मोदी सरकार अंडमान में पूंजी निवेश की तैयारी कर रही है। सरकार इस क्षेत्र में ONGC के नेतृत्व वाले ड्रिलिंग अभियान को वित्तपोषित करने की योजना बना रही है। यह एक सुविचारित कदम है क्योंकि सरकार ने पहले अपने नेशनल आइलैंड एक्सप्लोरेशन प्रोजेक्ट के तहत 22,500 लाइन किलोमीटर 2डी भूकंपीय डेटा एकत्र किया, उसके बाद ही फंडिंग के बारे में विचार-विमर्श शुरू हुआ। बिंदुवार ढंग से जांच परख के बाद कदम उठाए जाने से ही इस योजना को प्रारूप मिल पाया है।
जांच और योजना से संबंधित डेटा और जानकारी को ओएनजीसी को सौंप दिया गया, जिसमें पाया गया कि वर्तमान में वह अकेले जिम्मेदारी नहीं उठा पा रहा है। अन्वेषण के लिए गहरे पानी के अनुभव की आवश्यकता होती है, जिसका वर्तमान में ONGC के पास अभाव है। इससे निजात पाने के लिए भविष्य में सहयोग के लिए यूएस स्थित एक्सॉनमोबिल और यूके स्थित शेल के साथ चर्चा में है। प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए, मोदी सरकार ने रक्षा और अंतरिक्ष विभागों से नियामक छूट प्रदान की है। एक कुएं की खोज की लागत लगभग 350-400 करोड़ रुपये होने का अनुमान है और ONGC 3-4 ऐसे कुओं को खोदने की योजना बना रही है।
प्रथमदृष्टया यह परिभाषित होता है कि यह पहली बार होगा जब इस क्षेत्र में इस तरह के अनुपात की खोज शुरू की जाएगी। हालांकि अंडमान में तेल भंडार होने की बात कोई नई नहीं है, यह दशकों पुराना है। अंडमान बंगाल की खाड़ी में स्थित है, इसकी भौगोलिक स्थिति मध्य-पूर्व के तेल भंडार के समान है।
परिणामी रासायनिक प्रतिक्रियाएं हाइड्रोकार्बन को जन्म देती हैं। वैज्ञानिकों के बीच व्यापक रूप से यह राय है कि बंगाल की खाड़ी में भी ऐसी ही प्रतिक्रिया हो रही है। विशेष क्षेत्र में, इंडो-ऑस्ट्रेलियाई प्लेट यूरेशियन क्रिस्टल प्लेट के नीचे गोता लगा रही है जिससे तेल और हाइड्रोकार्बन का उत्पादन होता है।
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ऊर्जा आयात पर बहुत अधिक है निर्भरता
सिर्फ इसलिए कि भारत अपनी घरेलू आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ऊर्जा आयात पर बहुत अधिक निर्भर है। आज तक हम अपने तेल का 80-85 प्रतिशत के बीच आयात करते हैं। सबसे दुखद बात यह है कि, अरबों डॉलर आरक्षित विदेशी मुद्रा मध्य ईस्टर्न देशों के गौरव को बढ़ावा देने के लिए जलाए जाते हैं।
हालांकि, भारत ने इसे रोकने के लिए कुछ प्रयास किए हैं। पहला, रूस के जल्द ही हमारे प्रमुख तेल आयातक बनने की उम्मीद है। लेकिन, इसे लेकर भी लगता है कि यह अल्पकालिक हो सकता है। इसके अतिरिक्त, हम तेजी से हरित ऊर्जा की ओर बढ़ रहे हैं और वास्तव में एक पीएलआई योजना भी है जो विशेष रूप से इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए निर्धारित है। लेकिन, हमें वांछित लक्ष्यों तक पहुंचने में सालों लगेंगे।
फिलहाल, हमें तेल के लिए जारी संघर्ष पर पूर्णविराम अंडमान ही सुनिश्चित कर सकता है कि हमें मध्य पूर्व के साथ संघर्ष न करना पड़े और आश्रित न होना पड़े। यदि यह योजना सिरे चढ़ जाती है तो निस्संदेह भारत को आत्मनिर्भरता का एक और लक्ष्य प्राप्त हो जाएगा जो आर्थिक दृष्टि से बहुत बड़ी उपलब्धि को दर्शाएगा।
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