सुंदर पिचाई के अंडर में ‘ब्राह्मणवाद का केंद्र’ बन गया है गूगल

'लिबरलिज़्म' ऐसा रोग है जिसका कोई इलाज नहीं!

Sundar Pichai

Source- Google

अजीब बीमारी है यह लिबरलिज़्म। जब तक जिसे अपना आराध्य बनाया, तब तक सब चंगा सी, परंतु तनिक भी विचारधारा से विमुख हुए, तो यही लोग छाती पीटने लगते हैं। हर मामले में अपनी फूहड़ता घुसाने की इनकी अनोखी कला से पूरी दुनिया परेशान है!! इसी बीच अब वामपंथियों ने बिग टेक के अभिन्न अंग गूगल को ‘ब्राह्मणवाद’ का प्रतीक बताते हुए उस पर जातिवाद फैलाने का आरोप लगाया है, जो काफी हास्यास्पद है।

ध्यान देने वाली बात है कि जो गूगल वामपंथियों का प्रिय है, जो गूगल बिग टेक का अभिन्न अंग माना जाता है, अब वही गूगल ‘ब्राह्मणवाद और जातिवाद को बढ़ावा देने’ के आरोपों के अंतर्गत घिरा हुआ है। ये आरोप अमेरिका के कैलिफोर्निया स्थित एक अनुसूचित जाति के सिविल राइट्स संस्था ने लगाए हैं, जिसकी कार्यकर्ता टी सौंदराजन ने आरोप लगाया कि गूगल न्यूज के कर्मचारियों के साथ उनके एक सम्मेलन को जानबूझकर रद्द कर दिया गया।

इक्वलिटी लैब्स के आरोप के जवाब में गूगल के प्रवक्ता शैनन न्यूबेरी ने वाशिंगटन पोस्ट से कहा, हमारे कार्यस्थल पर जातिगत भेदभाव के लिए कोई जगह नहीं है। अपने कार्यालय में भेदभाव और प्रतिशोध के खिलाफ हमारे यहां स्पष्ट नीति है। यह बात सभी लोग जानते हैं। उल्लेखनीय है कि भारतीय-अमेरिकी कर्मचारी ने इस मामले में पद से त्यागपत्र दे दिया है। कथित भेदभाव को लेकर सबसे पहले वाशिंगटन पोस्ट में यह खबर प्रकाशित हुई थी।

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भारतीय संस्कृति और ब्राह्मणों के विरुद्ध जहर उगलती रही हैं सौंदराजन

परंतु ये तो कुछ भी नहीं, आंटी जी ने वाशिंगटन पोस्ट जैसे वामपंथी पोर्टलों का सहारा लेते हुए भारत, भारतीय संस्कृति और ब्राह्मणों के विरुद्ध जमकर विष उगला है। वाशिंगटन पोस्ट का लेख गूगल का निर्णय भारत के हिन्दू राष्ट्रवादी आंदोलन के बढ़ते प्रभाव का प्रतीक है और यह गूगल के उच्च जाति सीईओ के प्रभाव का सूचक है, काफी हास्यास्पद है।

ध्यान देने वाली बात है कि ये महोदया भी कम दूध की धुली नहीं है। कहने को सामाजिक कार्यकर्ता, पर वास्तव में इनके अंदर सनातन धर्म के प्रति घृणा कूट-कूट कर भरी हुई है। याद है वो ‘Smash Brahminical Patriarchy’ वाला पोस्टर जो ट्विटर के पूर्व सीईओ जैक डोरसी भारत में पकड़े हुए थे? ये इसी महोदया की देन थी और जब ट्विटर की कमान पराग अग्रवाल ने संभाली थी, तो टी सौंदराजन का क्रोध सातवें आसमान पर पहुंच गया था। तब उन्होंने कहा था कि “लगता है अब श्वेत बंधु ब्राह्मण लोगों को अपना घर बार सौंपेंगे। जैक डोरसी जा रहे हैं और पराग अग्रवाल ट्विटर के नए सीईओ हैं। क्या ये भी जाति पर चुप रहेंगे?” 

खबरों की मानें तो वास्तव में इस हिन्दू विरोधी एक्टिविस्ट का नाम सुनते ही कई गूगल कर्मचारी भड़क गए और उन्होंने तत्काल प्रभाव से इनका सम्मेलन रद्द करने की मांग की। सौंदराजन पर सामाजिक भेदभाव को बढ़ावा देने का आरोप लगाया गया और जब उनके समस्त पैंतरे फेल हुए, तब उन्होंने गूगल के उच्चाधिकारियों को मेल करने का निर्णय किया, परंतु परिणाम निल बट्टे सन्नाटा रहा और आखिरकार गूगल के कर्मठ कर्मचारियों की विजय हुई। सच कहें तो आप चाहे जो नाम दो, वामपंथ या Wokeism, परंतु बीमारी वही है, बस रूप अलग है। परंतु अपनी अधीरता में ये वामपंथी जो अपनी भद्द पिटवा रहे हैं, वह देखने लायक है।

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