आसमान छू रहा है गुजरात का ‘French Fries’ उद्योग, जिसके बारे में आपको किसी ने नहीं बताया

'French Fries' उद्योग ने गुजरात में झंडे गाड़ दिए हैं

गुजरात फ्रेंच फ्राइज़

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समय-समय की बात है,जो क्षेत्र कभी शुरुआती चरणों में भारत में अपने अस्तित्व को भुना रहा था आज उसका ग्राफ ऊंचाई छू रहा है। एक आयातक से लेकर एक फ्रेंच फ्राइज़ निर्यातक बनने तक भारत ने एक लंबा सफर तय कर लिया है। इसमें सबसे बड़ा योगदान गुजरात राज्य का है जिसने विषम परिस्थितियों में भी यह रिकॉर्ड प्राप्त किया है।  जिससे सिद्ध होता है कि करने पर आ जाएं तो भारतीय क्या नहीं कर सकते। कोई भी क्षेत्र सिर चढ़ने और सफलता प्राप्त करने के लिए एक तय समय चाहता है पर कई बार ऐसा होता है कि जल्दबाज़ी और औचक परिणाम की चाहत में वो निल बटे सन्नाटा हो जाता है। परिणाम के नाम पर शून्य और बचे संसाधन के नाम पर सिर्फ कल्पना रह जाती है जो नकारात्मक वातावरण पैदा करता है। ऐसे में सफलता का नया बेंचमार्क बनकर उभरा है गुजरात का ‘फ्रेंच फ्राइज़’ उद्योग, जिसके बारे में आपको किसी ने नहीं बताया होगा।

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भारत के लिए खेल ही बदल डाला

यह जानना बेहद आवश्यक है कि कैसे गुजरात ने फ्रेंच फ्राइज़ के निर्यात में भारत के लिए खेल ही बदल डाला है। यूं तो देश के कुल आलू उत्पादन का महज 7.42% ही गुजरात उपज करता है, फिर भी वो फ्रेंच फ्राइज़ का सबसे बड़ा निर्यातक बनने में कामयाब रहा है। यह आश्चर्यजनक है पर सत्य भी यही है। चालू वर्ष के दौरान, उत्तर प्रदेश 31.26% उत्पादन हिस्सेदारी के साथ प्रमुख आलू उत्पादक राज्य है, इसके बाद पश्चिम बंगाल, बिहार, गुजरात और मध्य प्रदेश क्रमशः 23.29%, 13.22%, 7.43% और 6.20% हिस्सेदारी के साथ हैं।

गुजरात में तीन कंपनियों – मैककेन फूड्स, इस्कॉन बालाजी फूड्स और हाईफन फूड्स के प्रसंस्करण संयंत्र हैं जो फ्रोजन फ़ूड प्रोडक्ट्स के उत्पादन का काम करते हैं। उत्पादन के अतिरिक्त यह कंपनियां उनका निर्यात भी करती हैं। यह कंपनियां न केवल जमे हुए आलू उत्पादों के प्रमुख निर्यातक हैं, बल्कि भारत के प्रमुख बर्गर क्विक सर्व रेस्तरां (QSR) श्रृंखलाओं के सबसे बड़े आपूर्तिकर्ता भी हैं।

वर्तमान में, मैकडॉनल्ड्स, वेंडीज, सबवे, केएफसी, बर्गर किंग और डोमिनोज जैसी फास्ट-फूड श्रृंखलाओं की पैठ, भारत में जमे हुए आलू के बाजार में महत्वपूर्ण योगदान देती है। जमे हुए आलू ताजा की भांति ही लाभ और स्वाद प्रदान करते हैं और अधिक शेल्फ-लाइफ रखते हैं, जिसके परिणामस्वरूप बाजार के विकास में सहायता मिलती है।

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निरंतरता के साथ भारत का ग्राफ चढ़ता गया

अब बात आती है कि कैसे निरंतरता के साथ भारत का ग्राफ इस क्षेत्र में सिर चढ़ता गया और अन्य निर्यातक टकटकी लगाए भारत को देखते रह गए। भारत 2007 में 6,000 मीट्रिक टन फ्रेंच फ्राइज़ आयात करता था। लेकिन 8 वर्षों के भीतर वो दूसरे देशों से आयात करने वाला निर्यातक बन गया। भारत ने 5,000 मीट्रिक टन वार्षिक निर्यात के साथ 2015 में फ्रेंच फ्राइज़ का निर्यात शुरू किया। गुजरात भारत का प्रमुख जमे हुए आलू उत्पाद निर्यातक है।

देश 2019 में लगभग 30,000 मीट्रिक टन (एमटी) जमे हुए आलू का निर्यात करने में कामयाब रहा, जिसमें कुल निर्यात का 95% फ्राइज़ था। 2020 तक, गुजरात ने निर्यात में एक बड़ी छलांग लगाई। 2020 में, भारत में जमे हुए आलू उत्पादों के बाजार ने लगभग 1.10 बिलियन अमरीकी डालर का मूल्य प्राप्त किया।

बाजार के 2022-2027 की पूर्वानुमान अवधि में 17% की सीएजीआर से बढ़कर 2026 तक 2.82 बिलियन अमरीकी डालर तक पहुंचने की उम्मीद है। गुजरात में भारत की शीर्ष तीन आलू प्रसंस्करण कंपनियों – मैककेन फूड्स, इस्कॉन बालाजी फूड्स और हाइफन फूड्स द्वारा 1,000 करोड़ रुपये का निवेश किया गया है। गुजरात ने 520 लाख मीट्रिक टन के कुल उत्पादन के मुकाबले 2018-19 में 40 लाख मीट्रिक टन आलू का उत्पादन किया। इसने 3.80 मीट्रिक टन के कुल आलू निर्यात में 1 लाख मीट्रिक टन का योगदान दिया।

यह कहानी ऐसे ही बड़ी नहीं बनी है, एक लंबा सफर और आपदाओं में अवसर प्राप्त करते हुए गुजरात का ‘फ्रेंच फ्राइज़’ उद्योग वास्तव में “उद्योग” कहलाए जाने की स्थिति में आया है और यह क्रम अब बढ़ता ही चला जाएगा।

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