आगामी लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी आसानी से कैसे जीत सकती है? यहां समझिए

सपा-बसपा के जाति की लड़ाई के बीच बीजेपी मारेगी बाजी !

लोकसभा उपचुनाव

SOURCE- TFIPOST.IN

अभी आप सभी ने देखा कि 2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को सिर्फ दो सीटों पर जीत मिली थी और शायद उसी हार का सदमा कांग्रेस को इतना गहरा लगा की पार्टी ने उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के मैदान में उतरने से पहले ही हार भी मान ली है. उत्तर प्रदेश की दो सीटों, रामपुर और आजमगढ़ पर लोकसभा उपचुनाव में प्रत्याशी नहीं लड़ाने के पार्टी के इस फैसले से पार्टी के अन्दर काफी आक्रोश का माहौल बना हुआ है. कांग्रेस नेता और रामपुर के पूर्व विधायक काज़िम अली खान ने कहा है कि वह भाजपा उम्मीदवार का समर्थन करेंगे।

अपने एक बयान में खान ने कहा है कि, “मैं सिर्फ इतना कहना चाह रहा हूँ की कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़ी पार्टी है जबकि समाजवादी पार्टी के पास केवल तीन सांसद हैं. कांग्रेस अगर पंजाब में अपने खिलाडी उतार सकती है तो यूपी जैसे राज्य में उपचुनाव में क्यों नहीं लड़ना चाह रही है.”

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लड़ाई अब सिर्फ भाजपा सपा बसपा में 

दो दिन पहले, कांग्रेस ने घोषणा की थी कि वह उपचुनाव नहीं लड़ेगी, यह कहते हुए कि पार्टी पहले 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए राज्य में संगठन को फिर से जीवंत करने पर ध्यान केंद्रित करन चाह रही है। बसपा ने भी रामपुर में अपना उम्मीदवार नहीं उतारने का फैसला किया है, जिससे समाजवादी पार्टी के असीम रजा, जो आजम खान के करीबी माने जाते हैं, और भाजपा के घनश्याम लोधी, जो पहले सपा के साथ थे और अब भाजपा के पाले में जाकर ललकार भर रहे है और बीच का काफी कड़ा मुकाबला है।

बीजेपी के समर्थन में उतरने के अपने बयान को स्पष्ट करते हुए खान ने कहा की,“मैं उस किसी भी उम्मीदवार की ओर से लडूंगा जो आज़म खान के विरुद्ध खड़ा होगा. और इस समय आज़म खान के खिलाफ बीजेपी का उम्मीदवार खड़ा है तो मैं उसका समर्थन करूँगा.” बसपा सरकार में पूर्व मंत्री, काज़िम अली खान के बेटे, हैदर अली खान को हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनावों में आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम खान के खिलाफ सुआर से भाजपा गठबंधन सहयोगी अपना दल ने मैदान में उतारा था। हैदर भी आजम के बेटे से हार गया। शायद इसलिए काज़िम खान, आज़म खान के खिलाफ खड़े हो रहे हैं.

सीट जीतने के लिए बसपा ने ओबीसी-दलित और मुस्लिम नेताओं को स्टार प्रचारक के तौर पर शामिल किया है. बसपा ने आजमगढ़ सीट पर पूर्व विधायक शाह आलम को उपचुनाव के लिए उतारा है. जबकि समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने मैनपुरी जिले में स्थित करहल विधानसभा सीट को बरकरार रखने के लिए सीट खाली कर दी है.

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जातिगत समीकरण होंगे ध्वस्त 

अब समाजवादी पार्टी और बसपा दोनों ने ही अपनी पार्टी से मुस्लिम वोट बैंक को जीतने के लिए मुस्लिम नेताओं को मैदान में उतारा है, जिसका सीधा असर इन दोनों के वोट नंबर पर पड़ेगा क्योंकि मुस्लिम वोट दो पार्टी में बंट जायेंगे. कांग्रेस ने तो लड़ने से पहले ही हार मान ली है. तो अब बात बीजेपी के उम्मीदवार घनश्याम लोधी जिनके समर्थन में खुद कांग्रेस के नेता उतरे हैं. इन चुनाव में भी बीजेपी की ही जीत होगी और इस बार के आंकड़े भी बीजेपी के ही पक्ष में होते दिख रहे हैं. इस बार उप चुनाव में लड़ाई जातिवाद से जूझ रही सपा और बसपा को हार का सामना ही करना पड़ेगा.

भाजपा के रणनीतिकार इस बात से अच्छी तरह से वाकिफ हैं कि रामपुर में आजम खान को हराना बहुत मुश्किल है। ऐसे में पार्टी ने उनके कभी भरोसेमंद रहे घनश्याम लोधी को चुना है। पार्टी जानती है कि वो आजम खान की हर रणनीति से अच्छी तरह वाकिफ हैं और रामपुर में वो पूरे जोश के साथ चुनाव लड़ सकते हैं। दलित चेहरा होना भी पार्टी के लिए अच्छा माना जाता है। भाजपा को उम्मीद है कि यहां सपा से जुड़े लोधी वोटर भी उसके पाले में आएंगे। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में रामपुर में 10,54,344 मतदाता थे। उस चुनाव में 63.17 प्रतिशत मतदान हुआ था। आजम खान को 5,59,177 वोट मिले। भाजपा प्रत्याशी को 4,49,180 मत मिले। भाजपा को उम्मीद है कि इस बार पार्टी आजमगढ़ से अच्छा प्रदर्शन कर सकती है और दलित उम्मीदवार होने से पार्टी को काफी फायदा हो सकता है।

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