उत्तर प्रदेश की राजनीति में अबकी बार खेला हो गया, उपचुनाव के नतीजों ने उसकी पुष्टि कर दी। बसपा प्रमुख बहन कुमारी मायावती के बदला फैक्टर ने भाजपा को बढ़त दिला दी। जिस बुआ-बबुआ की जोड़ी ने 2019 में कोई बड़ा तीर नहीं मारा था, उस जोड़ी की टूट के बाद जितना मायावती ने सपा प्रमुख को नहीं कोसा था, उससे कहीं अधिक तो अखिलेश ने अपनी बुआ को भला बुरा कह दिया था। अब इसका बदला लेना भी तो मायावती का धर्म बन गया, ऐसे में उन्होंने दबे पांव ही सही सपा का टेंटुआ दबा दिया और परिवारवादी यादव खेमे के अभिन्न चश्मोचिराग धर्मेंद्र यादव की हार सुनिश्चित कर भाजपा प्रत्याशी दिनेश लाल यादव “निरहुआ” को सांसद बना दिया।
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नतीजे सपा को सपाट कर गए
दरअसल, रविवार को उत्तर प्रदेश की दो लोकसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे आए और ऐसे आए की सपा को सपाट कर गए। परिणाम यह जता रहे हैं कि एक सीट पर प्रत्याशी न देकर और एक पर प्रत्याशी उतारकर दोनों ही राहों पर बसपा ने भाजपा के दोनों हाथों में जीत का लड्डू थमाने का काम किया है। भारतीय जनता पार्टी ने रविवार को लोकसभा उपचुनाव में समाजवादी पार्टी से रामपुर और आजमगढ़ पर कब्जा कर लिया। दोनों गढ़ों में हार का मतलब था कि अखिलेश यादव की पार्टी अब लोकसभा में सिर्फ तीन सीटों पर सिमट गई है। हालांकि, मायावती के नेतृत्व वाली बहुजन समाज पार्टी ने दोनों समाजवादी गढ़ों में भाजपा को जीत दिलाने में परोक्ष रूप से खेला कर अपने अपमान का बदला भी ले लिया।
जिस आजमगढ़ सीट से मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव, आज़म खान चुनकर आते थे उस सीट पर भाजपा के दिनेश लाल यादव “निरहुआ” का जीतना, सपा के खेमे में एक झटके से कम नहीं है। इस जीत में कोई बड़ा अंतर नहीं था पर पिछली हार का “सिम्पैथी वोट” और इस बार बसपा का गैर हिन्दू प्रत्याशी “गुड्डू जमाली” निरहुआ के लिए जीत का कारक बन गया। जहां एक ओर भाजपा का एकमुश्त वोट निरहुआ को पड़ा तो वहीं यादव वोट दोनों जगह (सपा और भाजपा) बंटने के बाद भाजपा को फायदा हो गया।
ज्ञात हो कि, आजमगढ़ सीट से बीजेपी प्रत्याशी दिनेश लाल यादव ‘निरहुआ’ को 3,12,768 वोट मिले तो वहीं सपा प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव को 3,04,089 वोट हासिल हुए। यहां हार-जीत में मात्र 8679 वोटों का अंतर रहा। इस बीच सबसे बड़ा खेला मायावती कर गईं जहां उन्होंने इस सीट पर अपना प्रत्याशी डाल समीकरण बदल दिए। दिलचस्प बात तो यह है कि बसपा के गुड्डू जमाली को कुल 2,66,210 वोट मिले। यह दलित और मुस्लिम वोट के परिणामस्वरूप संभव हुआ जो बसपा का सदा से ही मूल वोट बैंक है।
एक ओर इस सीट पर बसपा का मतदाता आधार बढ़ा जिसने समाजवादी पार्टी के मुस्लिम वोट बैंक को प्रभावी ढंग से खा लिया। कई मुस्लिम बहुल इलाकों में बसपा प्रत्याशी ने सपा के कद्दावर नेता अखिलेश यादव के भाई धर्मेंद्र यादव पर बढ़त बना ली।
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अखिलेश यादव के जले पर नमक
बसपा प्रमुख मायावती ने सपा प्रमुख अखिलेश यादव के जले पर नमक छिड़कते हुए आजमगढ़ के मतदाताओं को धन्यवाद दिया और कहा कि ‘बीएसपी के सभी छोटे-बड़े कार्यकर्ताओं, पदाधिकारियों और पार्टी प्रत्याशी शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली आदि ने आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव जिस संघर्ष और दिलेरी के साथ लड़ा है, उसे आगे 2024 आम चुनाव तक जारी रखने के संकल्प के तहत चुनावी मुस्तैदी यथावत बनाए रखना भी जरूरी है।’
1. बीएसपी के सभी छोटे-बड़े कार्यकर्ताओं, पदाधिकारियों तथा पार्टी प्रत्याशी श्री शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली आदि ने आज़मगढ़ लोकसभा उपचुनाव जिस संघर्ष व दिलेरी के साथ लड़ा है उसे आगे 2024 लोकसभा आमचुनाव तक जारी रखने के संकल्प के तहत् चुनावी मुस्तैदी यथावत बनाये रखना भी ज़रूरी।
— Mayawati (@Mayawati) June 27, 2022
बसपा प्रमुख मायावती ने दूसरे ट्वीट में कहा, ‘सिर्फ आजमगढ़ ही नहीं, बल्कि बीएसपी की पूरे यूपी में 2024 लोकसभा आमचुनाव के लिए जमीनी तैयारी को वोट में बदलने हेतु भी संघर्ष और प्रयास लगातार जारी रखना है। इस क्रम में एक समुदाय विशेष को आगे होने वाले सभी चुनावों में गुमराह होने से बचाना भी बहुत जरूरी है।’
2. सिर्फ आज़मगढ़ ही नहीं बल्कि बीएसपी की पूरे यूपी में 2024 लोकसभा आमचुनाव के लिए ज़मीनी तैयारी को वोट में बदलने हेतु भी संघर्ष व प्रयास लगातार जारी रखना है। इस क्रम में एक समुदाय विशेष को आगे होने वाले सभी चुनावों में गुमराह होने से बचाना भी बहुत ज़रूरी।
— Mayawati (@Mayawati) June 27, 2022
इस पूरे राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में सबसे बड़ा रणनीतिक दांव साइलेंट मोड़ पर खेलने वालीं मायावती ने चला। यदि आजमगढ़ में गुड्डू जमाली प्रत्याशी न होते तो निश्चित रूप से वो बढ़ता सपा को मिलती और मतगणना वाले दिन दृश्य कुछ और ही होता पर “होई वही जो राम रची राखा” मायावती ने पक्की गोली फेंकी और सपा प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव की हार और निरहुआ की जीत सुनिश्चित हो गई।
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