अंडमान और निकोबार की रणनीतिक क्षमता में इस तरह से ऐतिहासिक वृद्धि कर रहे हैं पीएम मोदी

हर मोर्चे पर चीन के विरुद्ध तैयार है भारत की ‘ढाई चाल’।

अंडमान और निकोबार की रणनीतिक क्षमता में इस तरह से ऐतिहासिक वृद्धि कर रहे हैं पीएम मोदी

Source- TFIPOST.in

बंगाल की खाड़ी में स्थित अंडमान निकोबार द्वीप समूह जो बंगाल की खाड़ी में भारत को सामरिक दृष्टि से बढ़त प्रदान करते हैं, उनके विकास पर पिछले 8 वर्षों में प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सराहनीय कार्य हुआ है। अंडमान और निकोबार कमांड 2001 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के नेतृत्व में बनाई गई थी। हालांकि इसके आधुनिकीकरण के प्रयास होते रहे किन्तु उनकी गति धीमी रही। 2014 के बाद भारत सरकार ने इस ओर विशेष ध्यान दिया और 2015 में 10 हजार करोड़ रुपये की विकास योजना की शुरुआत की। इसके अतिरिक्त सुखोई 30 की डिप्लॉयमेंट के साथ ही, नए एयरबेस और नौसेना की क्षमता बढ़ाने के लिए नए पोसाइडन एयरक्राफ्ट से लेकर आधुनिक लैंडिंग प्लेटफॉर्म डॉक शिप के निर्माण तक, मोदी सरकार ने एक के बाद एक ऐसे निर्णय लिए है जिससे अंडमान निकोबार कमांड की क्षमता में वृद्धि हुई है।

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अंडमान निकोबार द्वीप समूह

अंडमान निकोबार द्वीप समूह की सामरिक महत्ता यही है कि यह दक्षिण पूर्व एशिया में प्रवेश करने के मार्ग के बिल्कुल समीप है। म्यांमार से 22 नॉटिकल मील और इंडोनेशिया से 90 नॉटिकल मील की दूरी पर स्थित अंडमान निकोबार द्वीप समूह भारत को चीन की गर्दन दबोचने का अवसर प्रदान करते हैं। चीन का 80% निर्यात मलक्का स्ट्रेट से होकर जाता है। चीन में आयातित 70% तेल इसी रास्ते से जाता है।

इस प्रकार अंडमान निकोबार द्वीप समूह भारत को यह शक्ति प्रदान करते हैं कि वह चीन से किसी भी टकराव की स्थिति में चीनी अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी पर प्रहार कर सके। भारत द्वारा मलक्का स्ट्रेट का ब्लॉकेज चीन की अर्थव्यवस्था को आईसीयू में पहुंचाने के लिए पर्याप्त है। यही कारण था कि चीन ने इस मार्ग पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए चीन पाक इकोनामिक कॉरिडोर जैसी योजना बनाई थी और इस पर कई बिलियन डॉलर खर्च किए थे। पाकिस्तान की अस्थिरता और बलूचिस्तान एवं सिंध में चल रहे स्वतंत्रता संघर्ष के प्रयासों ने चीन की योजना को ध्वस्त करना शुरू कर दिया है। यहाँ कार्यरत अलगाववादी संगठनों ने चीनी नागरिकों और चीन की आर्थिक इकाइयों पर इतने हमले किए हैं कि चीन द्वारा यहां कोई भी नया निर्माण संभव नहीं हो पा रहा है।

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चीन का सपना नही पूरा होने देगा भारत

भारत सरकार यह जानती है कि चीन और पाकिस्तान का ग्वादरपोर्ट के विकास का एवं चीन पाक आर्थिक गलियारा बनाने का सपना, सपना ही रह जाएगा। चीन की मलक्कास्ट्रेट पर निर्भरता कम नहीं होगी। इसलिए भारत सरकार अंडमान निकोबार सैन्य बेस के आधुनिकीकरण के लिए लगातार कार्य कर रही है। केंद्र सरकार ने इस क्षेत्र में सैन्य बुनियादी ढांचे को विकसित करने के लिए 5,650 करोड़ रुपये प्रदान किए हैं।  नतीजतन, शिबपुर में आईएनएस कुहासा और कैंपबेल में आईएनएस बाज के नौसैनिक हवाई स्टेशन अपने रनवे बढ़ा रहे हैं। एक बार आईएनएस बाज के रनवे का विस्तार 6,000 फीट तक हो जाने के बाद, भारतीय नौसेना अपने पी-8आई समुद्री निगरानी और टोही विमान को नौसेना वायु स्टेशन से संचालित करने में सक्षम होगी। यह विमान पनडुब्बियों और दुश्मन जहाजों को खोजने में सक्षम है। इसके अलावा, मोदी सरकार एक ट्रांस-शिपमेंट टर्मिनल, एक ग्रीनफील्ड अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे, टाउनशिप और क्षेत्र के विकास और 450 मेगा वोल्ट एम्पीयर गैस और सौर-आधारित बिजली संयंत्र के साथ एक क्षेत्रीय केंद्र के रूप में ग्रेटर निकोबार द्वीप को विकसित करने की योजना पर काम कर रही है।

उपरोक्त नौसैनिक स्टेशनों के अलावा, भारत इंडोनेशिया के सबांग में एक बंदरगाह भी विकसित कर रहा है, जो एएनआई से ज्यादा दूर नहीं है। संभाग के अतिरिक्त भारत क्वाड देशों के साथ मिलकर चीन को देख रहा है। भारत का ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के साथ जो लॉजिस्टिक सपोर्ट समझौता है उसके तहत भारत हिंद महासागर स्थित अमेरिकी नौसैनिक अड्डे डिएगो गार्सिया तथा ऑस्ट्रेलिया के कोकोस आईलैंड का इस्तेमाल कर सकता है। इनमें कोकोस आईलैंड इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह प्रशांत क्षेत्र से हिंद महासागर में प्रवेश के अन्य मार्ग सुंडास्ट्रेट, लोम्बोक स्ट्रेट और ओम्बाई स्ट्रेट जो इंडोनेशिया के दक्षिण पूर्वी हिस्से में पड़ते हैं, उनके समीप है।

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भारत और चीन की रणनीतिक चालों में एक बड़ा अंतर

भारत ने जिन देशों के साथ समझौता करके उनके नौसैनिक अड्डे तक अपनी पहुंच बढ़ाई है उनकी आंतरिक स्थिति सुदृढ़ है। चीन ने श्रीलंका के हंबनटोटा और पाकिस्तान के ग्वादरपोर्ट के विकास पर ध्यान दिया। किंतु श्रीलंका और पाकिस्तान की आंतरिक अस्थिरता के कारण चीन की चालबाजिया अपनी पूर्णता को प्राप्त नहीं कर सकीं। भारत में इंडोनेशिया, मॉरीशस, ऑस्ट्रेलिया आदि देशों के साथ समझौते किए हैं इस कारण भारत के सामरिक हित चीन की अपेक्षा अधिक सुरक्षित है।चीन प्रोपेगेंडा के स्तर पर भले यह झूठ बार-बार दोहराता रहे कि वह अपनी स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स नीति के अंतर्गत भारत को चारों ओर से घेर चुका है किंतु वास्तविकता यह है कि भारत की चीन के हितों पर सामरिक पकड़ अधिक मजबूत है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अंडमान निकोबार द्वीप समूह की ही है।

विश्व में भारतीय नौसेना सबसे मजबूत

भारत तेजी से अपनी नौसेना का आधुनिकीकरण कर रहा है तथा अपनी भूमि का कुशल रणनीतिक प्रयोग कर रहा है। भारत में दक्षिण में तमिलनाडु में सुखोई विमानों को तैनात किया है जो हिंद महासागर में भारत को अपना प्रभाव बढ़ाने में सहयोग कर रहे हैं। अंडमान द्वीप समूह पर स्थित ब्रह्मोसमिसाइल तथा सुखोई, पोसाइडन और मिराज जैसे एयरक्राफ्ट भारत को बढ़त देते हैं। अब भारतीय नौसेना को उसका दूसरा विमान वाहक पोत आई एन एस विक्रांत मिल चुका है जिस पर जल्दी ही बोइंग के F/A 18E सुपरहोर्नेट या दसॉल्ट के राफेल विमान तैनात होंगे। ऐसे में इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखकर यह दृढ़ता के साथ कहा जा सकता है कि भारत की नौसेना चीन की नौसेना से बहुत मजबूत है।

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