हैदराबाद केस: जघन्य अपराधों में नाबालिग पर न हो कोई दया

अपराधी चाहे नाबालिग ही क्यों न हो सजा मिलनी ही चाहिए !

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Source- TFIPOST.in

ऐसे कई काम होते हैं जिन्हें करने की कोई उम्र नहीं होती लेकिन जुर्म की दुनिया का क्या? इस जुर्म की दुनिया में भी कई ऐसे हैं जघन्य अपराध है जिन्होंने ऐसे दिल दहलाने वाले काम किए हैं कि सुन कर किसी की भी रूह कांप जाए। जिस तरह हर एक गलती करने वाले को सजा दी जाती है उसी तरह जुल्म करने वाले को सजा क्यों नहीं? क्या सिर्फ इसलिए की किसी किताब के कुछ पन्नों में उस जुल्म करने वाले की उम्र को देखते हुए उसे नाबालिग कहा गया है? नाबालिग तो वह होता है जिसे सही गलत की पहचान नहीं होती लेकिन किसी पर जुल्म करना, उसे कष्ट देना, यह तो कोई भी 5 साल का बच्चा भी किसी के आंखों से बहते आंसू और दुख समझ सकता है।

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जुवेनाइल जस्टिस बिल संशोधन पास

क्या आपको निर्भया का केस याद है उस केस में 6 अपराधियों में से एक अपराधी नाबालिग था और उस समय की रिपोर्टों के अनुसार वह नाबालिग ही था जिसने पीड़िता पर सबसे ज्यादा खूंखार तरीके से प्रहार किया था। वह नाबालिग ही था जिसने उसे चोट पहुंचाने के लिए लोहे की रॉड का इस्तेमाल किया था। उस समय का जुवेनाइल जस्टिस एक्ट यह कहता था कि किसी नाबालिग ने कितना ही बड़ा अपराध क्यों ना किया हो लेकिन उसे 3 साल से अधिक की जेल नहीं होती थी। लेकिन निर्भया कांड ने यह सिद्ध कर दिया कि जुर्म करने वाले की कोई उम्र नहीं होती इसलिए उस समय जुवेनाइल जस्टिस बिल संशोधन पास हुआ जिसके तहत जघन्य अपराध में दोषी ठहराए गए 16-18 साल के किशोरों पर वयस्कों के रूप में मुकदमा चलाया जाएगा। अगर किशोर न्याय बोर्ड यह निष्कर्ष निकालता है कि किशोर अपराधी अपराध करते समय मानसिक और मनोवैज्ञानिक स्थिति से ठीक है तो उसे अधिकतम सात साल (वयस्क) जेल का सामना करना पड़ सकता है।

निर्भया कांड के समय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने कहा था कि “अपराध, विशेष रूप से किशोरों द्वारा किए गए यौन और हिंसक अपराधों में वृद्धि हुई है, जो अपराधियों के लिए कानून की अदालत में कठोर सजा पाने के लिए उम्र कम करने के लिए पर्याप्त कारण है। “ उस समय यह संशोधन तो पास हो गया लेकिन काफी देर से। निर्भया के 6 दोषियों में से एक ने आत्महत्या कर ली, चार को फांसी के फंदे पर लटका दिया गया लेकिन निर्भया को फिर भी पूर्ण रूप से न्याय नहीं मिला क्योंकि उसका एक अपराधी नाबालिग होने के कारण बच गया। उस नाबालिग के बालिग होने के बाद उसे आपकी सरकार ने रु10000 और सिलाई मशीन देकर विदा कर दिया। निर्भया के पिता का कहना था कि पुलिसकर्मी बताते हैं कि इस नाबालिग में सुधार का अंश मात्र नहीं दिखा लेकिन फिर भी उसे जेल से निकलने दिया गया। निर्भया की मां न्याय की गुहार लगाती रह गई लेकिन एक नया नाम देकर उस दोषी को एक नए पते पर भेज दिया गया।

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क्या इस बार न्याय मिलेगा ?

तो आज ऐसा क्या हुआ कि इतने सालों बाद एक बार फिर निर्भया की कहानी याद आई है। दरअसल, हाल ही में तेलंगाना के हैदराबाद से एक 17 वर्षीय लड़की के साथ सामूहिक दुष्कर्म की खबर सामने आई है। इस वारदात में 5 में से 3 दुष्कर्मी नाबालिग है जबकि दो बालिग हैं। दोपहर को हैदराबाद के जुबली हिल्स पब में गई वह लड़की जब शाम को घर लौटी तो उसके शरीर पर चोटों के निशान थे। जब उसके पिता ने कंप्लेंट दर्ज करवाई और उस लड़की को भरोसा सेंटर भेजा गया तब उसने बताया कि उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ है। उसे उन पांचों में से सिर्फ एक का नाम याद था और बाकियों की पहचान पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज से की और जांच के दौरान पता चला की इस मामले के अपराधियों में से एक या दो संपन्न परिवार से आते हैं। हालांकि अभी तक पुलिस ने नाम उजागर नहीं किए हैं लेकिन यहां सबसे बड़ा सवाल जो उठता है वह यह है कि क्या इस बार पीड़िता को पूर्ण न्याय मिलेगा? क्योंकि इस बार पीड़िता स्वयं नाबालिग है और उसके अपराधी भी नाबालिग हैं.

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नाबालिग किशोरों द्वारा बढ़ते ऐसे अपराधों को देखकर यह समझने की जरूरत है कि कोई भी केवल उम्र से ही बड़ा या छोटा नहीं होता। कई बार व्यक्ति के कर्म उसकी उम्र को भी छोटा बना देते हैं। अब समय आ गया है कि ऐसे दुष्कर्म का न्याय उम्र देखकर नहीं बल्कि उनके जुर्म देखकर किया जाए।

 

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