18 वर्ष की रिसर्च, देशभक्ति, बेजोड़ सेट और VFX, सब कुछ मिलाकर एक भव्य और बेजोड़ फिल्म तैयार हो सकती थी सम्राट पृथ्वीराज चौहान, पर तभी उसमें घुलमिल गया केमिकल सेक्युलरिज़्म और हो गया सारी मेहनत का सत्यानाश!
इस लेख में अभी-अभी बड़े पर्दे पर उतरी फिल्म “सम्राट पृथ्वीराज” के बारे में जानेंगे। कैसी रही ये फिल्म इसे समझेंगे। फिल्म के निर्देशक डॉक्टर चंद्रप्रकाश द्विवेदी से सबसे पहले ये कहना है कि अगर ये इतिहास है तो फिर जोधा अकबर ऐतिहासिक महाकाव्य से कम नहीं है बंधु।
डॉक्टर साहब आप आत्मसात करने में असफल रहे
डॉक्टर चंद्रप्रकाश द्विवेदी द्वारा निर्देशित फिल्म ‘सम्राट पृथ्वीराज’ सम्राट पृथ्वीराज चौहान के शौर्य गाथा पर आधारित है, जिसमें शीर्षक भूमिका में हैं अक्षय कुमार और उनका साथ दिया है मानुषी छिल्लर, सोनू सूद, संजय दत्त, मानव विज, आशुतोष राणा, साक्षी तंवर, क्रांति प्रकाश झा इत्यादि ने। ये फिल्म सम्राट पृथ्वीराज चौहान के जीवन गाथा, गज़नवी सुल्तान मुहम्मद गोरी के साथ उनके युद्ध और उनकी पराजय एवं उनके वीरगति का वर्णन करने का दावा करती है।
इस फिल्म के मध्यम से डॉक्टर चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने दावा किया था कि वे वास्तविक भारतीय इतिहास को चित्रित करना चाहते हैं एवं सम्राट पृथ्वीराज के वास्तविक शौर्य का वर्णन करना चाहते हैं। परंतु यदि ऐसी नीति थी तो क्षमा करें डॉक्टर साब, आप उसे आत्मसात करने में असफल सिद्ध हुए हैं।
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जी हां, सत्य सबको नहीं पचता परंतु इस फिल्म का सबसे कड़वा सत्य यही है कि भारतीय इतिहास का वास्तविक चित्रण करने में इस फिल्म ने हमें निराश किया है। इसे देख आपको विश्वास ही नहीं होगा कि इसे उन्हीं डॉक्टर चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने बनाया है जिन्होंने आचार्य चाणक्य पर विश्वप्रसिद्ध टीवी सीरीज ‘चाणक्य’ बनाई, ये वही डॉक्टर चंद्रप्रकाश द्विवेदी हैं जिन्होंने ‘मोहल्ला अस्सी’ में क्षण भर के लिए ही सही, परंतु अयोध्या राम जन्मभूमि आंदोलन और उस पर तत्कालीन सरकार के दमनचक्र को बिना लागलपेट के चित्रित किया।
चलिए, हम मान लेते हैं कि फिल्म में कुछ रचनात्मकता होनी चाहिए, आप शत प्रतिशत शाश्वत सत्य नहीं चित्रित कर सकते, परंतु कम से कम राजपूतों का उर्दूकरण तो न करते, अभी तो हमने इस फिल्म के अभिनय पर चर्चा भी नहीं की है। कृपया मुझे कोई ये बताए कि कौन से राजपूत 12वीं शताब्दी में एक दूसरे को ‘होली मुबारक’ कहते हैं, और मुहम्मद गोरी के आक्रमण के पूर्व राजपूतों में पर्दा और सती प्रथा कब प्रारंभ हो गई? ये तो मात्र प्रारंभ है, इस फिल्म में धर्मनिरपेक्षता से संबंधित अनेक ऐसे दृश्य और तथ्य चित्रित किए गए हैं, जिन्हें देखकर आपके मुख से भी यही निकलेगा– ये क्या बना दिया भई।
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बनाइए वो जिस पर गर्व हो
अब कुछ महानुभाव ऐसे भी होंगे जो ये कहेंगे कि अरे कम से कम कोशिश तो की है, वरना सम्राट पृथ्वीराज चौहान पर आज तक किसने फिल्म बनाने का साहस किया है? खरी बात तो है, सोचने योग्य भी है। परंतु बंधु, इतिहास के चित्रण का तरीका ये है कि बनाइए वो, जिसे देख हमारे भारतवासी, गर्व से अपना मस्तक संसार में उठाएं, शर्म से झुकाएं नहीं। इतिहास का चित्रण तो ‘ताण्हाजी’ में भी हुआ था पर क्या इससे जनता निराश हुई, क्या मराठा साम्राज्य के शौर्य और सनातन संस्कृति के प्रेम उनके अद्वितीय योगदान पर प्रश्न उठा? उतना भी पीछे न जाएं तो कम से कम ‘मेजर’ से ही कुछ सीख लेते, यहां प्रमुख किरदार के रूप में अभिनेता अदिवि सेश कम से कम मेजर संदीप उन्नीकृष्णन को आत्मसात करते हुए प्रतीत तो हो रहे हैं और जो उन्होंने प्रयास किया है उसके लिए जितना भी कहें कम पड़ेगा।
कुल मिलाकर “सम्राट पृथ्वीराज” से आशाएं बहुत थी, परंतु अपेक्षाओं और इतिहास के वास्तविक चित्रण के दबाव में डॉक्टर चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने अपने प्रयास में निराश किया है। यह ‘तान्हाजी’ जितनी भव्य और दमदार हो सकती थी, परंतु असर ‘पानीपत’ जैसा हुआ– नाम बड़े और दर्शन छोटे।