चीन को पड़ी दुलत्ती, भारत-रूस ने तैयार कर लिया है अपना ‘अंतरराष्ट्रीय व्यापार कॉरिडोर’

नए आयाम को छू रहे हैं भारत-रूस के संबंध!

भारत रूस ट्रेड कॉरिडोर

Source- TFI

भारत और रूस के संबंधों में कभी कोई कठिनाई, कोई कड़वाहट नहीं आई, इसमें कोई दो राय नहीं। परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि इस बार दोनों देश इस नाते को एक नए आयाम पर ले जाने की दिशा में बढ़ रहे हैं। इसी बीच व्यापार का एक नया मार्ग निकलने से भारत और रूस के संबंध न केवल और अधिक प्रगाढ़ हुए हैं, अपितु अनाधिकारिक रूप से चीन को दुलत्ती भी पड़ी है।

हाल ही में रूस ने सेंट पीटर्सबर्ग से सीधा मुंबई तक ईरान के रास्ते से सामान पहुंचाने में सफलता पाई है। तो इसमें विशेष क्या है? यह एक ऐसा ट्रेड कॉरिडोर है, जिसके माध्यम से अब भारत को रूस तक सामान पहुंचाने में आसानी रहेगी। न्यूज 18 की एक रिपोर्ट के अनुसार, “ईरान की सरकारी शिपिंग कंपनी ने भारत और रूस के बीच नए ट्रेड कॉरिडोर के जरिए माल पहुंचाकर इतिहास रच दिया है। कंपनी ने रूस से भारत तक माल पहुंचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (INSTC) का इस्तेमाल किया। 7200 किलोमीटर लंबे इस ट्रेड रूट में पाकिस्तान और अफगानिस्तान को बॉयपास कर दिया गया है।”

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इससे भारत एक ही तीर से दो निशाने भेदेगा। अगर यही माल रूस से स्वेज कैनाल के माध्यम से भारत पहुंचता, तो इसे 16,112 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती। अब इस ट्रेड कॉरिडोर के एक्टिव होने से न सिर्फ भारत और रूस के बीच ट्रेड में जबरदस्त इजाफा होगा, बल्कि ईरान और कजाकिस्तान के साथ भी व्यापारिक संबंध मजबूत होंगे।

परंतु इसका एक लाभ यह भी होगा कि रूस से व्यापार करने हेतु भारत को उस मार्ग का अनुसरण नहीं करना होगा, जिसमें चीन के जलक्षेत्र से होकर जाना पड़े। प्रारंभ में समुद्री मार्ग से रूस से व्यापार करने हेतु भारत को एक लंबा मार्ग अपनाना पड़ता था, जिसमें चीन का हस्तक्षेप न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। इससे न केवल भारत के हितों पर असर पड़ता, अपितु रूस पर भी असर पड़ता और मार्ग लंबा पड़ता वो अलग।

लेकिन रूस भी चीन पर से अपनी निर्भरता हटाने को आतुर है। 2020 से ही रूस अपनी रणनीति तय करने में जुट गया कि कैसे भी करके चीन की हेकड़ी को ध्वस्त करना है। TFIPost के एक विश्लेषणात्मक लेख के अंश अनुसार, “ हिन्द महासागर के ट्रेडिंग रूट को छोड़कर चीन अभी मध्य एशिया में अपने BRI project और Arctic में Northern Sea Route के माध्यम से यूरोप, अरब देशों और अफ़्रीका तक पहुंच बनाने की कोशिश कर रहा था, ताकि मलक्का स्ट्रेट पर से उसकी निर्भरता समाप्त हो सके। परंतु, दुनिया की नज़रों से दूर रूस मलक्का स्ट्रेट के साथ-साथ मध्य एशिया और Arctic में चीन के लिए परेशानी खड़ी करने की रणनीति पर काम कर रहा था।”

अब चाहे Arctic का Northern Sea Route हो, या फिर मध्य एशिया का BRI प्रोजेक्ट, ये दोनों ही रूट्स चीन की मलक्का समस्या को काफी हद तक कम कर सकते थे। हालांकि, रूस मलक्का के साथ-साथ इन महत्वपूर्ण रूट्स पर चीन की लंका लगाने को तैयार है और भारत के साथ INSTC कॉरिडोर का सफल प्रयोग इसी दिशा में एक सार्थक कदम है।

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