पराक्रमी तो बहुत प्रकार के देखे होंगे आपने परंतु विश्व के सबसे शक्तिशाली देशों के समूह के साथ कंधे से कंधा मिलाकर उनके साथ अपने विचार साझा करना और उसके पश्चात भी अपनी नीतियों पर अडिग रहने का साहस रखना, ऐसी कुशलता बहुत ही कम देशों में होती है और ऐसी ही कुशलता का परिचय दिया है भारत ने। दरअसल, भारत ने बैठक में आमंत्रित होने के बाद भी स्पष्ट रूप से जी7 के रूस विरोधी बयान और एजेंडों को समर्थन देने से मना कर दिया है।
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भारत ने किसी भी एजेंडे का हिस्सा बनने से साफ मना किया
अपने 47वें सम्मेलन में जी7 ने स्पष्ट किया कि वे यूक्रेन को हर प्रकार से सहायता देना जारी रखेंगे, चाहे वह आर्थिक रूप से हो, राजनीतिक रूप से हो, मानवीय रूप से हो, सैन्य रूप से हो इत्यादि। अपने ऐसे धूर्त एजेंडे में जी7 देशों ने भारत सहित पांच अतिथि देशों को भी शामिल करने का भरपूर प्रयास किया। अर्जेंटीना और इंडोनेशिया ने तो हार मान ली लेकिन भारत, दक्षिण अफ्रीका और सेनेगल ने ऐसे एजेंडे का हिस्सा बनने से साफ मना कर दिया।
भारत ने तो स्पष्ट भी किया कि उनका जी7 के रूस विरोधी एवं यूक्रेन समर्थक बयानों से कोई लेना देना नहीं है। भारत के उच्चाधिकारियों के अनुसार, चूंकि हमारे अधिकारी इस सम्मेलन के ड्राफ्टिंग टीम का भाग ही नहीं है इसलिए हमारा इस सम्मेलन के वर्तमान बयानों से कोई लेना देना नहीं है। हम चाहते हैं कि यूक्रेन में शीघ्र शांति स्थापित हो और बातचीत से एक वैकल्पिक मार्ग निकाला जाए।
ध्यान देना होगा कि भारत रूस-यूक्रेन समस्या के शांतिपूर्ण और कूटनीतिक समाधान की मांग करता रहा है। यूरोपीय संघ, जर्मनी, कनाडा, इंडोनेशिया और दक्षिण अफ्रीका के नेताओं के साथ अपनी व्यक्तिगत बैठकों के दौरान भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दोहराया कि बातचीत ही एकमात्र रास्ता है। आपको बता दें कि अधिकांश द्विपक्षीय वार्ताओं में यूक्रेन एक महत्वपूर्ण बिंदु था।
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भारत को अपने पक्ष में करना चाहता है अमेरिका
जब से रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ है, अमेरिका भारत को अपने पक्ष में करने का भरसक प्रयास कर रहा है क्योंकि अमेरिकी अधिकारियों को इस बात का भान हो गया है कि उनके देश का अब विश्व पर वो दबदबा नहीं रहा जो पहले हुआ करता था। कोविड -19 महामारी ने विकासशील और विकसित दोनों ही देशों की अर्थव्यवस्था को तोड़कर रख दिया। वहीं ऐसे दौरान में जब दुनिया को मानवीय और चिकित्सा सहायता प्रदान करने से अमेरिका ने मना कर दिया था तब सबको इस बात का भान हो गया था कि अमेरिका किसी भी तरह से एक सहायक देश तो नहीं है। फिर, बाइडन प्रशासन ने अफ़ग़ानिस्तान को उसके बहुत बुरे स्थिति में ही छोड़ दिया, अमेरिका के ऐसा करने से उसे लेकर सबकी रही सही आस भी टूट गयी।
दूसरी तरफ, संयुक्त राज्य अमेरिका सहित नाटो देश रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर निवारक उपाय न करके उसे और भड़काने में लग गए। लेकिन इन देशों की चाल तब उलट गयी जब कड़े प्रतिबंधों के बाद भी पुतिन अपनी योजनाओं और उठाए गए कदमों को लेकर तटस्थ रहे। चाल तब भी पलट गयी जब रूस के विरूद्ध ये देश भारत को खड़ा ही नहीं कर पाए।
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भारत किसी भी स्थिति के लिए तैयार है
हालांकि, भारत पर सूक्ष्म रूप से दबाव भी डाला गया और वास्तव में, अमेरिका ने धार्मिक मुद्दों पर भारत को व्याख्यान देकर खुले तौर पर दबाव डालने का प्रयास तक किया लेकिन, भारत ने किसी की नहीं सुनी और इस मुद्दे पर अपना रुख स्पष्ट रखा। किसी भी तरह के संभावित प्रतिबंधों से खुद को तैयार करने के लिए भारत ने एक से बढ़कर एक कदम उठाए। अपने व्यापार पोर्टफोलियो में तेजी से विविधता लाने में भारत सफल रहा, जिसमें जरूरतमंद देशों को गेहूं का निर्यात और रूस से तेल का आयात करना शामिल है।
भारत के इन कदमों से एजेंडाधारी देशों को और अधिक परेशानी हुई, ऐसे में इन देशों ने शुरू किया भारत को दूसरे उपायों से झूकाने का प्रयास। वास्तव में, भारत को G7 शिखर सम्मेलन में आमंत्रित करना उन्हीं प्रयासों में से एक माना जा सकता है। लेकिन भारत तो अब सशक्त भारत है चाहे वो रणनीतिक रूप से हो या नैतिक रूप से, भारत किसी भी देश के सामने दृढ़ता से खड़ा हो सकता है।
अगर भारत ने G7 शिखर सम्मेलन में उठायी गयी किसी भी अनैतिक मांग को स्वीकार कर लेता तो उन देशों के अतार्किक, गलत और अनावश्यक प्रतिबंधों की विश्वसनीयता एक अलग ही स्तर पर जा पहुंचती। लेकिन किसी भी तरह की मूर्खता को मूर्त करने से बचे रहना ही भारत ने सही समझा।
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