साउथ ईस्ट एशिया पर अपना दबदबा बनाए रखने और दक्षिण चीन सागर पर अपना हक जमाने के लिए चीन साम दाम दण्ड भेद सभी प्रकार की नीति अपना रहा है लेकिन चीन को इस मोर्चे पर भारत से तगड़ी चुनौती मिल रही है। हाल ही में भारतीय विदेश मंत्री ने आसियान देशों के सभी विदेश मंत्रियों के साथ मुलाकात की जिसमें साउथ ईस्ट एशिया के एकीकृत समृद्ध संघ के नेतृत्व में विकास कार्यों को लेकर चर्चा हुई और आसियान देशों के साथ विदेश मंत्री की यही मुलाकात चीन के लिए एक झटका है। आसियान क्षेत्रीय मंच एक 28 देशों का एक अनौपचारिक बहुपक्षीय संवाद मंच है जो कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र के सुरक्षा मुद्दों को उठाता है।
इस बैठक में एस जयशंकर ने वर्तमान परिस्थिति में आसियान के महत्व का उल्लेख किया। एस जयशंकर ने कहा कि दुनिया वर्तमान में भू-राजनीतिक चुनौतियों और अनिश्चितताओं का सामना कर रही है। आसियान की भूमिका आज शायद पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। भारत एक मजबूत, एकीकृत और समृद्ध आसियान का पूरी तरह से समर्थन करता है और इंडो पैसिफिक क्षेत्र में इस संगठन की विशेष भूमिका है।
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चीन को अब मिलेगी तगड़ी चुनौती
एक विशेष बात यह है कि विदेश मंत्रियों की बैठक से पहले भारत और आसियान देशों के शीर्ष अधिकारियों ने बुधवार को व्यापक वार्ता की थी, जिसमें व्यापार और रणनीतिक संबंधों के विस्तार के साथ-साथ हिंद-प्रशांत में सहयोग बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करने की उम्मीद है। सिंगापुर के विदेश मंत्री विवियन बालकृष्णन, वियतनाम के बुई थान सोन और इंडोनेशिया के विदेश मंत्री रेटनो मार्सुडी, कंबोडिया के उप प्रधान मंत्री प्राक सोखोन और ब्रुनेई के एफएम II दातो एरीवान गुरुवार से शुरू होने वाली दो दिवसीय भारत-आसियान वार्ता के लिए पहले ही राष्ट्रीय राजधानी पहुंच चुके थे।
भारत ने आसियान देशों के साथ अपनी 30वीं वर्षगांठ को चिन्हित करते हुए विदेश मंत्रियों के साथ बैठक की थी। म्यांमार में जहां पिछले वर्ष सैन्य तख्तापलट हो गया था उसके विदेशी दूतावास के वरिष्ठ अधिकारियों ने भी इस बैठक में हिस्सा लिया था। एक अहम बिंदु यह है कि इस बैठक में विदेश मंत्रियों द्वारा दक्षिण चीन सागर की स्थिति पर भी चर्चा करने की खबरें हैं, जो एक संसाधन-संपन्न क्षेत्र है और दक्षिण चीन सागर पर चीन लगातार अपने एकछत्र अधिपत्य का दावा करता रहा है।
चीन के चंगुल से ‘आजाद’ हुआ आसियान
विदेश मंत्रालय (MEA) ने कहा कि शीर्ष अधिकारियों ने दोनों पक्षों के बीच ‘कार्य योजना’ (2021-2025) के आगे कार्यान्वयन के लिए कदमों पर विचार-विमर्श करने के अलावा आसियान-भारत रणनीतिक साझेदारी और इसकी भविष्य की दिशा की समीक्षा की है। आसियान को इस क्षेत्र में सबसे प्रभावशाली समूहों में से एक माना जाता है, जिसे चीन ने एक तरह से अपने कब्जे में रखा था। लेकिन व्यापार और निवेश के साथ-साथ सुरक्षा और रक्षा के क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करने के साथ पिछले कुछ वर्षों में भारत और आसियान के बीच संबंधों में तेजी आई है और यह तेजी ही चीन की समस्याएं बढ़ा रही हैं। आसियान के साथ भारत के मजबूत रिश्ते का जिक्र करते हुए विदेश मंत्रालय ने कहा, “भारत और आसियान के बीच मजबूत ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध आसियान-भारत साझेदारी के लिए ठोस आधार प्रदान करना जारी रखते हैं क्योंकि यह अपने चौथे दशक में प्रवेश कर रहा है।”
चीन की समस्या यह है कि एक मजबूत आसियान दक्षिण चीन सागर में उसे एक बड़ी चुनौती दे सकता है और इसीलिए अपनी कुटिलता के माध्यम से चीन सदैव इन देशों को आर्थिक तौर पर अपने पाले में लाने की कोशिश करता रहा है। वहीं, भारत आसियान को मजबूत करने के साथ ही क्षेत्र में इसकी ताकत को अहमियत दे रहा है जो कि चीन के लिए एक बड़ी दिक्कत है और इसीलिए विदेश मंत्री एस जयशंकर की यह नीति आसियान को चीन के चंगुल से आजाद कर भारत की ओर इस समूह का रुख सौम्य करती दिख रही है।
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