पर्यावरण प्रदर्शन के बारे में ‘फर्जी रिपोर्ट’ प्रकाशित करने पर भारत सरकार ने येल और कोलंबिया को लताड़ा

भारत को 'विकसित' होते नहीं देखना चाहते पश्चिमी देश!

PM Modi

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हाल ही में पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक 2022 (EPI 2022) जारी किया गया जिसमें भारत को सबसे निचली रैंक (180) दी गई. भारत के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF & CC)  ने द्विवार्षिक पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक 2022 के निष्कर्षों का खंडन करते हुए येल सेण्टर फॉर एनवायर्नमेंटल लॉ एंड पालिसी द्वारा प्रकाशित की गई इस रिपोर्ट की कार्यप्रणाली को पक्षपाती, अवैज्ञानिक और निराधार मान्यताओं पर आधारित बताया. ध्यान देने वाली बात है कि इस रैंकिंग में भारत (18.9) को म्यांमार (19.4), वियतनाम (20.1), बांग्लादेश (23.1) और पाकिस्तान (24.6) से नीचे रखा गया है, जबकि चीन को 28.4 अंकों के साथ 161वां स्थान मिला है.

पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक अमेरिकी संस्थानों की ओर से जारी किया गया है और उसके मुताबिक़ खतरनाक एयर क्वालिटी और बढ़ते ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के कारण भारत को सबसे निचली रैंकिंग मिली. हालांकि, केंद्र सरकार ने पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक 2022 की रिपोर्ट का पूरी तरह खंडन करते हुए इसके आंकलन के पैमाने और तरीकों को लेकर सवाल किये हैं.

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पक्षपाती और अधूरी है EPI की रिपोर्ट

EPI दुनिया भर में स्थिरता की स्थिति का डाटा आधारित सार मुहैया कराता है. यह 11 श्रेणियों में 40 प्रदर्शन संकेतकों का उपयोग करके 180 देशों  को जलवायु परिवर्तन प्रदर्शन, पर्यावरणीय स्वास्थ्य और पारिस्थितिक तंत्र की स्थिति के आधार पर अंक देता है. रिपोर्ट का दावा है कि उत्सर्जन वृद्धि दर पर अंकुश लगाने के हालिया वादे के बावजूद  चीन और भारत 2050 में ग्रीनहाउस गैस के सबसे बड़े दो उत्सर्जक देश बनेंगे. पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक 2022 की रिपोर्ट का बिंदु-दर-बिंदु खंडन करते हुए  MoEF & CC ने कहा कि 2022 EPI में शामिल एक नया संकेतक, 2050 में अनुमानित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन स्तर कम करना भी शामिल है जिसमें पिछले दस वर्षों में हुए उत्सर्जन से अनुमान लगाया जाता है जो कि गलत है.

यह एक ऐसा लक्ष्य है जिसे पूरा करने में भारत को अभी और समय लगेगा. बल्कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की गणना का सही तरीका यह होगा कि इसे घटाने के लिए इस्तेमाल में लायी गयी पॉलिसी जैसे नवीकरणीय ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहन, कार्बन सिंक के निर्माण आदि कितने प्रभावी रुप से शामिल हुए हैं यह जांच की जाए. मंत्रालय द्वारा कहा गया कि इस रिपोर्ट को बनाते समय देश के वन और आर्द्रभूमि दोनों ही जो कि महत्वपूर्ण कार्बन सिंक हैं उन्हें ईपीआई 2022 द्वारा दिए गए 2050 तक अनुमानित जीएचजी उत्सर्जन प्रक्षेपवक्र की गणना करते समय शामिल नहीं किया गया है. मंत्रालय ने यह भी कहा की जिन संकेतकों में भारत अच्छा प्रदर्शन कर रहा था उन्हें या तो नज़रअंदाज़ कर दिया गया या फिर उनका वजन काम कर दिया गया और वेटेज के असाइनमेंट में बदलाव के कारणों की व्याख्या नहीं की गई है.

प्रति व्यक्ति जीएचजी उत्सर्जन और जीएचजी उत्सर्जन तीव्रता प्रवृत्ति जैसे संकेतकों के रूप में इक्विटी के सिद्धांत को बहुत कम महत्व दिया जाता है. सीबीडीआर-आरसी सिद्धांत भी सूचकांक की संरचना में बमुश्किल परिलक्षित होता है. जल गुणवत्ता, जल उपयोग दक्षता, प्रति व्यक्ति अपशिष्ट उत्पादन पर संकेतक जो सतत उपभोग और उत्पादन से निकटता से जुड़े हुए हैं, सूचकांक में शामिल नहीं हैं. सूचकांक उनके द्वारा वहन की जाने वाली सुरक्षा की गुणवत्ता के बजाय संरक्षित क्षेत्रों की सीमा पर जोर देता है. प्रबंधन प्रभावशीलता संरक्षित क्षेत्रों और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों का मूल्यांकन जैव विविधता सूचकांकों की गणना में शामिल नहीं है.

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मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि “इसमें कृषि, जैव विविधता, मृदा स्वास्थ्य, खाद्य हानि और अपशिष्ट जैसे संकेतक शामिल नहीं हैं, भले ही वे बड़ी कृषि आबादी वाले विकासशील देशों के लिए महत्वपूर्ण हैं. वजन के चयन के लिए कोई विशिष्ट तर्क नहीं अपनाया गया है. मंत्रालय का कहना है कि ऐसा प्रतीत होता है मानों यह रिपोर्ट प्रकाशन एजेंसी की पसंद पर आधारित है और यह वैश्विक सूचकांक के लिए उपयुक्त नहीं है. कोई भी संकेतक अक्षय ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता और प्रक्रिया अनुकूलन के बारे में बात नहीं करता है. इन संकेतकों का चयन पक्षपाती और अधूरा है.”

नेट जीरो की ओर तेज गति से बढ़ रहा है भारत 

बताते चलें कि भारत में अन्य देशों के साथ-साथ शेष विश्व की तुलना में सबसे कम उत्सर्जन प्रक्षेपवक्र हैं. इसलिए, इस पहलू को फैक्टर किए बिना, पक्षपाती मीट्रिक और पक्षपाती भार के उपयोग के परिणामस्वरूप निम्न रैंक प्राप्त हुई है. इससे यह भी पता चलता है कि केवल पिछले 10 वर्षों के आंकड़ों पर आधारित संकेतक विकसित देशों की ऐतिहासिक जिम्मेदारी को ध्यान में नहीं रखता है. ध्यान देने वाली बात है कि भारत पेरिस समझौते का पक्षकार है और उसने वर्ष 2070 तक नेट जीरो का लक्ष्य दिया है और इसलिए 2050 में अनुमानित 2050 उत्सर्जन स्तर वाले देशों से इसकी तुलना सीबीडीआर-आरसी में निहित इक्विटी के सिद्धांत के खिलाफ है.

भारत ने पहले ही गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित स्रोतों से स्थापित बिजली क्षमता का 40% का लक्ष्य हासिल कर लिया है. भारत ने दिसंबर 2022 तक 175 GW के लक्ष्य के मुकाबले 110 GW अक्षय ऊर्जा क्षमता स्थापित की है जो कि अपने सौर ऊर्जा लक्ष्य का आधा और पवन ऊर्जा लक्ष्य का दो-तिहाई पूरा करता है. लेकिन इन सभी उपलब्धिओं को अमेरिकी संस्थान की रिपोर्ट नज़रअंदाज़ करते हुए भारत को सबसे निचला स्थान दे रही है वह पूर्ण रूप से पक्षपाती और गलत है. धीरे ही सही लेकिन भारत पर्यावरण के लिए अपने सुनिश्चित लक्ष्यों को पूरा करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है.

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