देखो भई, कुछ भी कहो, इस बार भाजपा ने गजब रायता फैलाया। अच्छा भला कानपुर में हिंसा भड़काने वालों को योगी प्रशासन कूट रही थी, PFI और उनके वामपंथी समर्थकों के विरुद्ध प्रवर्तन निदेशालय ने तांडव करने की पूर्ण व्यवस्था कर ली, परंतु भाजपा ने नूपुर शर्मा को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर सब गुड़ गोबर कर दिया और ऊपर से एक के बाद एक इस्लामिक देशों ने नूपुर के कथित बयान पर भारत के राजदूतों को बुलावा भेज अपना विरोध दर्ज करने का प्रयास किया है। परंतु इनके क्रोध का असली कारण तो कुछ और ही है बंधु। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे इस्लामिक देशों का भारत से वर्तमान क्रोध धार्मिक कारणों से नहीं बल्कि वित्तीय कारणों से है।
ये देश अपने धंधे के लिए हैं चिंतित
वर्षों पहले किसी महापुरुष ने बड़ी खरी बात कही थी कि मुनाफा देखता है तो कोई भी झुकता है। यह बात खाड़ी क्षेत्र के देशों पर भी लागू होती हैं। ओमान, कतर और कुवैत के नेतृत्व में कई इस्लामिक देशों ने नूपुर शर्मा के पैगंबर मुहम्मद पर कथित विवादास्पद बयान पर विरोध जताया है और भारत का ‘आर्थिक बहिष्कार’ करने की धमकी भी दी है। वहीं सऊदी अरब, बहरीन, यहां तक कि इंडोनेशिया और मालदीव जैसे देशों तक ने इन बयानों पर ‘चिंता’ जताई है साथ ही उन्होंने आशा भी जताई है कि जल्द ही कोई आवश्यक कार्रवाई होगी। सऊदी और बहरीन ने तो भारत सरकार द्वारा ‘एक्शन’ लेने पर ‘संतोष’ भी जताया’।
परंतु आपको क्या लगता है ये बात यहीं तक सीमित है? क्या वास्तव में ये देश अपने धर्म के लिए इतने चिंतित है? नहीं नहीं, असल कारण तो कुछ और ही है बंधु। संसार में हर व्यक्ति, समाज अथवा राष्ट्र की एक कमजोर कड़ी होती है और खाड़ी देशों की कमजोर कड़ी तो उन्हीं की आजीविका निकली – काला सोना, जिसे आधिकारिक भाषा में क्रूड ऑयल कहते हैं और जिससे पेट्रोल, डीजल एवं अन्य ईंधन निर्मित होते हैं।
तो इसका भारत से क्या लेना देना? मूल रूप से भारत और संसार के अन्य देश मध्य एशिया पर पारंपरिक रूप से क्रूड ऑयल के लिए निर्भर रहे हैं। इसका प्रभाव इस बात से पता चलता है कि OPEC नाम का समूह इसी उद्देश्य के लिए बना भी है। परंतु रूस यूक्रेन विवाद के पश्चात भारत ने एक अलग ही दृष्टिकोण अपनाते हुए रूस से क्रूड ऑयल सस्ते दाम पर खरीदना प्रारंभ कर दिया है।
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नुकसान किसका अधिक होगा?
पर ठहरिए बंधु, बात यहीं तक सीमित नहीं है। ET की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत रूसी क्रूड ऑयल उत्पादक Rosneft से इस बातचीत में लगा हुआ है कि सस्ते दाम पर उपलब्ध क्रूड ऑयल को जितना अधिक हो सके, उतना अधिक खरीद सके, जैसे कि छह महीने की क्रूड ऑयल सप्लाई सुनिश्चित कर सके और आने वाले समय में अपने तेल निर्यात को दोगुना कर दे। रूस यूक्रेन विवाद में पहले ही भारत ने रूस से तेल पर अपनी निर्भरता पहले से अधिक बढ़ा दी है। अब बताइए, नुकसान किसका अधिक होगा?
इसी विषय पर प्रकाश डालते हुए TFI के संस्थापक अतुल मिश्रा ने ट्वीट किया, “तेल बेचने वाले देश लाभ के लिए अपनी आत्मा तक बेच डाले। इनका क्रोध भारत के विरुद्ध धार्मिक कारणों से तो बिल्कुल नहीं है। सब तेल के पीछे हैं। भारत रूस की मित्रता इनके जेब में बहुत बड़ा छेद जो कर रही है” –
Oil selling nations will sell their souls for a profit, their outrage about India is not because of religious reasons. It’s all about oil ⛽️. 🇷🇺-🇮🇳 bonhomie is drilling a big hole in their pockets.
— Atul Kumar Mishra (@TheAtulMishra) June 6, 2022
सच कहें तो सत्ताधारी पार्टी ने जो भसड़ मचाई है, उसे समेटने में काफी समय लगेगा, परंतु उसकी आड़ में जो इस्लामिक देश भारत को डराने धमकाने लगते हैं, उनके बहकावे में बिल्कुल मत आयें, क्योंकि जब धंधे पानी पर चोट होती है, तो हर कोई बिलबिलाता है, कतर का शेख भी!
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