भारत QUAD की केंद्रीय शक्ति है। यह हम नहीं, QUAD के विचार के जनक शिंजो आबे के मुख्य सलाहकार का कहना है। जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे के मंत्रिमंडल में मुख्य सलाहकार रहे तोमोहिको तानिगुचि ने यह बात कही है। तोमोहिको तानिगुचि जापान में Graduate School of SDM, Keio University में प्राध्यापक भी हैं और विदेश नीति के विशेषज्ञ हैं। एक साक्षात्कार में तोमोहिको तानिगुचि ने कहा, “भारत के बिना नरेंद्र मोदी के बिना, QUAD नहीं उड़ सकता था।” भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा, “भारत के सक्रिय रूप में अमेरिका के नेतृत्व वाले शिविर में शामिल होने के बारे में, दिल्ली के अभिजात्य वर्ग के सदस्यों में एक हद तक हिचकिचाहट थी। गुटनिरपेक्षता की विरासत को पार करने के लिए नरेंद्र मोदी के साहस और स्पष्टता की आवश्यकता थी।”
अभिजात्य वर्ग से उनका अभिप्राय नेहरू-गांधी परिवार के शासन के अंतर्गत निर्मित हुए भारत के डीप स्टेट से है। उन्होंने यह तथ्य रेखांकित किया कि किस प्रकार भारत का बुद्धिजीवी वर्ग, विदेश मामलों को निर्धारित करने वाले बड़े अधिकारी, मीडिया, अकादमिक जगत आदि सभी पूर्व प्रधानमंत्री नेहरू की गुटनिरपेक्ष नीति से चिपके हुए थे। ऐसे डीप स्टेट के बीच प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी अलग रेखा खींची, जो आज विश्व पटल पर उनकी कहानी बयां कर रही है। तोमोहिको तानिगुचि ने प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा करते हुए कहा कि उनके (पीएम मोदी के) विचारों में इंडो पैसेफिक को लेकर कोई दुविधा और संशय नहीं है। उन्होंने कहा, “जब इंडो-पैसिफिक थिएटर की बात आती है, तो वह अच्छी तरह से जानते हैं कि तत्काल चुनौती रूस-यूक्रेन युद्ध के बारे में हो सकती है, लेकिन दीर्घकालिक चुनौती इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में बनी रहेगी।”
तोमोहिको तानिगुचि ने भारत की इस क्षेत्र में भूमिका की आवश्यकता पर टिप्पणी करते हुए कहा कि “शिंजो आबे द्वारा एशिया-प्रशांत से इंडो-पैसिफिक तक भौगोलिक क्षितिज का विस्तार करने का मुख्य कारण यह था कि वह भारत को इसमें शामिल करना चाहते थे। उन्हें पता था कि हिंद महासागर 21 वीं सदी के लिए औद्योगिक राजमार्ग होगा और इस तथ्य को देखते हुए कि अगर दुनिया में कोई देश है जो हिंद महासागर क्षेत्र में शांति, सुरक्षा और समृद्धि के लिए बहुत अधिक जिम्मेदार महसूस करता है, तो वह भारत है।” तोमोहिको तानिगुचि ने कहा कि यूक्रेन के मुद्दे पर भी भारत को QUAD से अलग नहीं किया जा सकता, भले ही भारत यूक्रेन के मुद्दे पर रूस के विरुद्ध अन्य QUAD सदस्यों के समान मुखर नहीं हुआ। उन्होंने कहा ऐसा करना QUAD को कमजोर करना होगा।
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भारत के बिना संभव नहीं हिंद-प्रशांत क्षेत्र की कोई भी रणनीति
ध्यान देने वाली बात है कि तोमोहिको तानिगुचि जो बात कह रहे हैं वह सत्य को उद्घाटित करने वाली है। हिन्द महासागर क्षेत्र से जल के माध्यम से होने वाले विश्व व्यापार का 80% व्यापार संभव होता है। यह महासागर तीन महाद्वीपों को जोड़ता है और साथ ही यह दक्षिण एशिया, द० पूर्वी और पूर्वी एशिया के साथ ही पूर्वी अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया तथा यूरोप के बीच होने वाले समस्त व्यापार का केंद्र है। इस महासागर में सबसे बड़ी नौसैनिक और आर्थिक शक्ति भारत ही है। ऐसे में बिना भारत को सम्मिलित किए हिन्द महासागर को सुरक्षित और संवृद्ध करने की कोई योजना अथवा इस क्षेत्र में होने वाले व्यापार की स्थिरता के लिए बनी कोई योजना, कोई संगठन, सफल हो ही नहीं सकता।
महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि QUAD के विचार को जन्म देने वाले शिंजो आबे ने यह बात समझ ली थी और इस कारण वर्ष 2007 में QUAD की बात उठाई थी। किन्तु कुछ ही समय में ऑस्ट्रेलिया ने इस समूह से स्वयं को अलग कर लिया और उसके बाद भारत ने चीन और रूस के साथ ब्रिक्स समूह के कार्य को सक्रियता के साथ बढ़ाना शुरू कर दिया, जिससे QUAD ठंडे बस्ते में चला गया था। ब्रिक्स में भारत की सक्रिय भागीदारी संभवत: दूरदर्शिता पूर्ण निर्णय नहीं था। वर्ष 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत ने पुनः सक्रियता दिखाई और इसी दौरान अमेरिका में ट्रम्प तथा ऑस्ट्रेलिया में स्कॉट मॉरिसन सत्ता में आ चुके थे। तत्कालीन जापानी प्रधानमंत्री आबे ने पुनः अपनी कार्ययोजना लागू की। भारत की ओर से अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ एक के बाद एक सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण समझौता करके स्पष्ट कर दिया गया कि अब भारत पीछे नहीं हटेगा। फिर क्या था, भारत की सक्रियता ने QUAD में जान फूंक दी।
“चीन के प्रत्येक प्रश्न का उत्तर है भारत”
जापान के पूर्व प्रधानमंत्री के मुख्य सलाहकार तोमोहिको तानिगुचि अकेले ऐसे व्यक्ति नहीं हैं, जिन्होंने भारत की केंद्रीय और सबसे महत्वपूर्ण भूमिका की बात स्वीकार की है। ऑस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी एब्बॉट ने भी कहा था कि “चीन के प्रत्येक प्रश्न का उत्तर है भारत।” वहीं, अमेरिका ने तो अपने आधिकारिक बयान में यह स्पष्ट किया है कि अमेरिका चाहता है कि भारत हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में ‛नेट सेक्युरिटी प्रोवाइडर’ अर्थात् सुरक्षा प्रदान करने वाला देश बने। अमेरिका की यह नीति इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि अब तक अमेरिका ने अपने सभी सहयोगियों को उनकी सुरक्षा मजबूत करने के लिए सहायता की है और भारत एकमात्र ऐसी शक्ति है, जिसके सन्दर्भ में अमेरिका स्वीकार करता है कि वह अपनी सुरक्षा करने में सक्षम है। इसलिए उसे अब अपनी भूमिका का विस्तार करते हुए, इस क्षेत्र के अन्य देशों को उसी प्रकार सुरक्षा देनी चाहिए, जैसे अमेरिका लम्बे समय तक अपने सहयोगियों को देता रहा है। भारत सदैव से सक्षम था, आवश्यकता थी साहसपूर्ण निर्णय लेने वाले नेतृत्व की, जो वर्ष 2014 के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूप में इस देश को मिल गया है।
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