नीतीश कुमार अगला बिहार विधानसभा चुनाव RJD के साथ लड़ेंगे या फिर लड़ेंगे ही नहीं

भाजपा के करीबियों पर नीतीश की कार्रवाई, ‘सुशासन बाबू’ पर भारी पड़ने वाली है!

आरसीपी सिंह

Source- TFIPOST.in

जनता दल (यूनाइटेड) ने प्रदेश महासचिव अनिल कुमार और विपिन कुमार यादव के साथ प्रवक्ता अजय आलोक को भी पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया। इन्हें सभी पदों से भी मुक्त कर दिया गया है। पार्टी नेता जितेंद्र नीरज को भी पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया गया है। बिहार जदयू प्रमुख उमेश सिंह कुशवाहा ने एएनआई न्यूज ने के हवाले से कहा- “पार्टी और पार्टी में अनुशासन बनाए रखें.” पार्टी द्वारा बताया गया की इन नेताओं को पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए निलंबित किया गया है। हालांकि, खबर यह है कि पार्टी नेता और केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह से नजदीकियों के चलते चारों नेताओं को पार्टी से बाहर कर दिया गया है।

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बयान में कहा गया- ”पिछले कुछ महीनों से पार्टी के हितों के खिलाफ कार्यक्रम चलाने और कार्यकर्ताओं को गुमराह करने की शिकायतें आ रही थीं।” इस करवाई पर प्रतिक्रिया देते हुए, अजय आलोक ने कहा- “बड़ी देर कर दी मेहरबानी करने में। मुझे राहत देने के लिए मैं पार्टी का आभारी हूं। यह पार्टी के साथ एक लंबा जुड़ाव था और एक अच्छा अनुभव था। आपको मेरी शुभकामनाएं।”

जदयू ने पहले आरसीपी सिंह को पुनः राज्यसभा भेजने से मना कर दिया। आरसीपी सिंह को किसी ज़माने में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का विश्वासपात्र माना जाता था। वह एनडीए सरकार में जद (यू) कोटे से एकमात्र मंत्री थे और वह 7 जुलाई को राज्यसभा से सेवानिवृत्त होने वाले हैं। किन्तु, एक तो नीतीश ने उन्हें टिकेट भी नहीं दिया और दूसरे अपनी राजनीतिक असुरक्षा की वजह से उनके शुभचिन्तक नेताओं पर बदले की करवाई भी कर दी।

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क्या है इस करवाई के मायने?

नीतीश कुमार का राजनीतिक सफ़र अब ख़त्म हो चुका है, उन्हें यह स्वीकार लेना चाहिए। बिहार विधानसभा के चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने भरी जनसभा के दौरान यह स्वीकार किया और एक अंतिम बार खुद को जीताने की भावुक अपील भी की। वैसे जनता ने उनकी इस भावुक अपील को ज्यादा भाव नहीं दिया पर, भाजपा ने उनका मान रखते हुए कम सीटों के बावजूद मुख्यमंत्री बनाया। लेकिन, उनके सीएम बनते ही उनमें सत्ता का लालच पुनः बढ़ने लगा। वो पार्टी में अपनी पैठ को मजबूत करने में जुट गये। उनके सबसे बड़े प्रतिद्वंदी है आरसीपी सिंह। सिंह भी कुर्मी जाति से आते हैं और संगठन में उनके समर्थक भी हैं।

भाजपा में भी उनकी पैठ अच्छी है। शायद, इसीलिए नीतीश द्वारा सरकार में न शमिल होने के निर्णय के बावजूद मोदी सरकार ने उन्हें सदन तक पहुँचाया। पर, अब नीतीश कुमार सबसे ज्यादा डरे हुए हैं की अगर कही आरसीपी सिंह पार्टी में उनसे भारी पड़े तो बीजेपी के समर्थन से सीएम बन सकते हैं। ये निलंबन इसी बगावत को दबाने के लिए किया गया है। नीतीश कुमार पार्टी पर अपना एकाधिकार स्थापित करने में हद तक अंधे हो गए की उन्होंने पार्टी के अहम् पदों पर अपनी पहचान के बाहरी लोगों को बैठाना शुरू कर दिया रालोसपा के कुशवाहा इसके सर्वोत्तम उदहारण है। इसके आलावा नीतीश एकतरफा फैसले लेने लगे।

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अतः, पार्टी में अब बगावत तो निश्चित है, पर, नीतीश कुमार ने इसका उपाय निकाल लिया है। हो सकता है की आने वाले समय में नीतीश पुनः आरजेडी से मिल जाए। बीजेपी पर अपनी पार्टी में बगावत कराने का आरोप लगा विक्टिम कार्ड खेले और फिर कुछ विधायको के बल और तेजस्वी की दया पर एक कठपुतली मुख्यमंत्री का पदभार ग्रहण कर लें क्योंकि नीतीश के लिए सत्ता सर्वोपरि है।

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