रूस-यूक्रेन युद्ध के हुए 100 दिन, विश्व पटल पर भारत हुआ है और सशक्त

भारत के आगे फीकी पड़ी महाशक्तियां!

PM Modi

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रूस यूक्रेन युद्ध को 100 दिन हो चुके हैं और अब तक इस युद्ध का निर्णय नहीं निकला है। हालांकि रूस ने यूक्रेन के 20% भाग पर अधिकार कर लिया है किंतु यह भी सत्य है कि रूस को उसकी उम्मीद के अनुरूप सफलता नहीं मिली है। इस युद्ध के कारण अमेरिका की सामरिक धमक और कूटनीतिक प्रभाव कम हुआ है क्योंकि नाटो देशों द्वारा बार बार धमकी देने के बाद भी रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया और अमेरिका सहित उसके मित्र देश यूक्रेन के सहयोग में खुलकर सामने नहीं आ सके। रूस ने युद्ध के दौरान चीन पर जितना भरोसा दिखाया था, उस अनुपात में उसे चीन का सहयोग नहीं मिला है। यहां तक की युद्ध की शुरुआत में ही पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर प्रतिबंधों की घोषणा करने के बाद, चीन ने स्पष्ट कर दिया था कि वह रूस के साथ अपने आर्थिक हित दांव पर लगाकर सहयोग नहीं करेगा।

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भारत की साख वैश्विक स्तर पर बढ़ी है

इन सबके बीच इस युद्ध के प्रभाव में केवल भारत ही ऐसा देश है जिसकी साख वैश्विक स्तर पर बढ़ी है। रूस और अमेरिका दोनों ने भारत को अपने पाले में लाने के लिए भरसक प्रयास किए। पश्चिमी देशों ने भारत पर अत्याधिक दबाव बनाया लेकिन इन सबके बीच भारत ने स्वतंत्र विदेश नीति अपनाकर एक उदाहरण प्रस्तुत किया है।

रूस यूक्रेन युद्ध की शुरुआत में भारत के समक्ष जो सबसे बड़ी समस्या थी वह यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों को निकालने की थी। युद्ध शुरू होने के पूर्व भारत सरकार ने यूक्रेन में रह रहे भारतीय छात्रों को यूक्रेन छोड़ने के लिए कहा था किंतु इसके बाद भी बड़ी संख्या में छात्र यूक्रेन में ही रहे। युद्ध की शुरुआत में 20000 भारतीय छात्र यूक्रेन में फंसे हुए थे। भारत के अतिरिक्त चीन, तुर्की, अमेरिका सहित पश्चिमी देशों के बहुत से लोग यूक्रेन में फंस चुके थे।

अमेरिका ने युद्ध के शुरू होते ही अपने नागरिकों को स्पष्ट कर दिया था कि वह उन्हें यूक्रेन से बाहर निकालने में सक्षम नहीं है। चीन ने भी लगभग ऐसी ही बात कही और अपने छात्रों को यह सूचना दी कि युद्ध के हालात में उन्हें बाहर निकालने का कार्य सुरक्षित नहीं होगा। इन सबके बीच भारत ने अपने छात्रों से यह कहा कि वह भारतीय झंडे को किसी भी गाड़ी के आगे लगाकर यूक्रेन से बाहर निकल सकते हैं। यह भारत की कूटनीतिक सफलता थी कि यूक्रेन अथवा रूस दोनों में से कोई भी देश भारतीय छात्रों को किसी प्रकार की असुविधा नहीं आने दे रहा था। यहां तक की तुर्की और पाकिस्तान जैसे भारत विरोधी देशों के नागरिक भी भारतीय झंडा लगाकर यूक्रेन से निकल रहे थे।

भारत सरकार ने यूक्रेन बॉर्डर पर स्थित देशों के साथ बातचीत करके भारतीय मूल के विद्यार्थियों को प्लेन के माध्यम से सुरक्षित भारत वापस ला दिया। जब भारतीय छात्र कीव में फंस गए थे तब रूस ने उन्हें निकालने के लिए 130 बस देने की बात कही थी। रूस ने भारत से कहा था कि वह अपने छात्रों को रूस की जमीन से सुरक्षित बाहर निकाल सकता है।

भारत सरकार की सफल कूटनीति के कारण संभवतः पश्चिमी देशों के मीडिया समूहों में दुर्भावना पैदा हुई जिस कारण उन्होंने भारत पर रूस के विरुद्ध निर्णय लेने का दबाव बनाना शुरू किया है। जब रूस ने भारत को सस्ता तेल देने का प्रस्ताव दिया तो पश्चिमी देशों के मीडिया समूहों ने भारत की आलोचना शुरू कर दी। भारत पर अत्यधिक दबाव बनाया गया कि भारत रूस से तेल न खरीदे। हालांकि इसी दौरान यूरोपीय देशों ने रूस से तेल और नेचुरल गैस की खरीद और बढ़ा दी। भारत ने दृढ़ता के साथ इस दुष्प्रचार अभियान का सामना किया और हर बार पश्चिमी देशों को आइना दिखाया।

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एस जयशंकर का करारा जवाब

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ब्रिटेन के विदेश मंत्री के समक्ष यह स्पष्ट कह दिया कि यूरोपीय देश भारत की अपेक्षा रूस से अधिक तेल खरीद रहे हैं। इसके बाद भारतीय राजदूत ने नीदरलैंड के राजदूत को जवाब देते हुए यह स्पष्ट कहा कि भारत को किसी से भाषण सुनने की आवश्यकता नहीं है। एस जयशंकर जब अमेरिका की यात्रा पर थे और मीडिया ने उनसे सवाल किए तो वहां भी उन्होंने भारत का रुख दृढ़ता के साथ रखा। उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत रूस से जितना तेल खरीदता है, यूरोप दोपहर भर में उतना तेल खरीद लेता है। यहां तक कि जब भारत पर अप्रत्यक्ष दबाव बनाने के लिए अमेरिकी विदेश मंत्री ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि अमेरिका भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था को लेकर अपनी चिंता व्यक्त करता है तो उसका प्रत्युत्तर भी विदेश मंत्री एस जयशंकर द्वारा तुरंत दे दिया गया। उन्होंने भी अमेरिका की लोकतांत्रिक व्यवस्था और अल्पसंख्यकों के अधिकार के प्रति भारत की चिंताएं साझा कर दी। अमेरिका की स्थिति उस वक्त सबसे अधिक हास्यास्पद हो चुकी थी जब पत्रकारों ने भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर से एस 400 की खरीद पर CAATSA के तहत प्रतिबंध लगने की बात कही और जयशंकर ने CAATSA को एक साधारण अमेरिकी कानून बताकर उसका मजाक बना दिया।

रूस पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों की चिंता ना करते हुए भारत ने रूस के साथ रुपए और रूबल में व्यापार करने के लिए योजना पर कार्य शुरू कर दिया। हाल ही में संपन्न हुए क्वाड देशों के सम्मेलन में अमेरिका के दबाव के बाद भी संयुक्त बयान में रूस की आलोचना नहीं की गई। जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका तीनों सहयोगी देशों को भारत ने यह स्पष्ट कर दिया कि रूस भारत की सामरिक सुरक्षा के लिए कितना महत्वपूर्ण है। अंततः अमेरिका ने भारत को रूस पर से अपनी सामरिक निर्भरता कम करने के लिए आवश्यक सहयोग देना स्वीकार कर लिया है। यही कारण है कि अब अमेरिका भारत को रक्षा खरीद के लिए 500 मिलियन डॉलर की आर्थिक सहायता देगा।

भारत ने पश्चिमी देशों के दबाव का सामना करते समय भी अपनी विदेश नीति में समझदारी और दूरदर्शिता समाप्त नहीं की। जब चीन ने देखा कि भारत का रूस यूक्रेन संकट पर पश्चिमी देशों के साथ मतभेद है तो चीनी विदेश मंत्री ने अचानक भारत की यात्रा की। चीन का उद्देश्य भारत और अमेरिका के बीच उत्पन्न हुए टकराव को बढ़ाकर उसका लाभ लेने का था। हालांकि भारत ने चीनी विदेश मंत्री की यात्रा को अधिक तवज्जो नहीं दी और यह स्पष्ट कर दिया कि भारत की चीन नीति में कोई बदलाव नहीं आया है।

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भारत को किसी पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं

आज भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसके कारण वैश्विक व्यवस्था द्विध्रुवीय नहीं बन रही। अन्यथा रूस यूक्रेन युद्ध ने पश्चिमी देशों को पुनः एक पाले में कर दिया है और रूस पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंध तथा अमेरिका का अड़ियल रवैया, रूस को चीन पर निर्भर कर रहा है। ऐसे में दुनिया स्पष्ट रूप से दो धड़ों में बंट सकती है जहां एक ओर अमेरिका और उसके सहयोगी देश होंगे और दूसरी ओर रूस, चीन और उनके सहयोगी देश। भारत एकमात्र प्रमुख वैश्विक शक्ति है जो दोनों पक्षों में सामंजस्य बैठाकर चल रही है। यह केवल परिस्थितियों का खेल नहीं, वास्तव में भारत अपनी समस्या सुलझाने में सक्षम है, इसलिए हमें किसी पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं है। भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेजी से विकास कर रही है। निवेश के लिए भारत से अच्छा स्थान कोई नहीं है। भारत अपने कूटनीतिक प्रभाव का प्रयोग करके हिन्द प्रशांत क्षेत्र की महत्वपूर्ण शक्ति बन चुका है। कई देशों में हमारे नौसैनिक अड्डे हैं, हमने वैश्विक संकट में दवाओं और वैक्सीन से जो सहयोग दिया है, उससे हमारी विश्वसनीयता बढ़ी है। छोटे देशों में भारत स्किल डेवलपमेंट से लेकर अनाज और दवाओं की आपूर्ति करता है। हॉस्पिटल, विद्यालय आदि में निवेश करता है। आज हमारी वायुसेना चीन से मजबूत है, हिन्द महासागर में सबसे मजबूत नौसेना भारत की है, विश्व की सबसे बड़ी थलसेना भारत की है।

भारत यूक्रेन और रूस दोनों को मानवीय सहयोग दे रहा है। भारत दवाओं और अनाज की आपूर्ति कर रहा है। आज जब यूक्रेन युद्ध के कारण दुनिया अनाज संकट का सामना कर रही है, भारत एकमात्र उम्मीद है। अब यह बात स्पष्ट हो चुकी है कि कोई देश कितना सशक्त हो, उसे भारत से अपने संबंध सुधारने ही पड़ेंगे।

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