“व्हाट डज़ इट मीन टू बी अ सोल्जर?”
“सर, इस सवाल का जवाब दिया नहीं जा सकता, सिर्फ जिया जा सकता है!”
ये दो संवाद बताने के लिए पर्याप्त है कि “मेजर” किस दिशा में जा रही है। ये फिल्म 26/11 के अमर बलिदानी, मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के जीवन का वर्णन करती द्विभाषीय फिल्म है। इस फिल्म को देखकर एक बात आपके अंतर्मन से अवश्य निकलेगी – “मेजर संदीप उन्नीकृष्णन अमर रहे!”
सशी किरण टिक्का द्वारा निर्देशित इस फिल्म में मुख्य भूमिका में है अदिवि सेश, जिनका साथ दिया है प्रकाश राज, रेवति, सई मांजरेकर, सोभिता धूलिपाला, मुरली शर्मा इत्यादि ने। यह फिल्म केवल मेजर संदीप उन्नीकृष्णन और 26/11 के हमलों के समय उनके अदम्य साहस के वर्णन के बारे में नहीं है, अपितु इस अदम्य साहस के पीछे उनके दृष्टिकोण, उनके परिवार की चिंताओं एवं उनके देशभक्ति का भी वर्णन करता है।
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देशभक्ति पर फिल्में तो काफी समय से बनती रही हैं, परंतु जब से ‘उरी’ और ‘शेरशाह’ जैसी फिल्में सफल हुई हैं, एक नए प्रकार के फिल्मों की खेप इस श्रेणी में सामने आई है – जहां देशभक्ति, शौर्य और साहस की कोई कमी न हो, परंतु यथार्थवाद से भी ठीक ठाक नाता हो। “मेजर” इसी दिशा में एक साहसिक प्रयास है, जो कुछ लोगों को ‘लक्ष्य’ का भी स्मरण करा सकती है। यहां किसी भी वस्तु की अति अधिक नहीं है, कुछ दृश्य आपको थोड़े अटपटे लग सकते हैं, परंतु फिल्म की पटकथा इतनी रोचक और स्पष्ट है कि इन छोटे दोषों पर अधिक ध्यान नहीं जाएगा।
परंतु बात केवल इतने तक सीमित नहीं है। 26/11 के हमलों का जिस प्रकार से “मेजर” ने चित्रण किया है, उसमें अच्छे अच्छों के पसीने छूट जाए। कुछ लोगों के लिए आतंकवादियों के नाम तक का उल्लेख करना पाप है, लेकिन यहां आतंकवादियों के नाम ही नहीं, उनके सहायकों तक का नाम निस्संकोच लिया गया है। इतना ही नहीं, जिस प्रकार से वामपंथी मीडिया ने एनएसजी और अन्य रक्षकों की लोकेशन और उनसे जुड़ी गोपनीय जानकारी सार्वजनिक की, उसे भी बिना लाग लपेट इस फिल्म में दिखाया गया है, तो कृपया वामपंथी और मीडिया प्रेमी इस फिल्म को हृदय पर पत्थर रखकर देखने का बीड़ा उठाएं।
रही बात अभिनय की, तो अदिवि सेश ने केवल मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के रोल को निभाया ही नहीं है बल्कि उसे आत्मसात किया है। जिस काम की आशा “सम्राट पृथ्वीराज” में कुछ बावलों ने अक्षय कुमार से की थी, वो तो वास्तव में अदिवि सेश ने इस फिल्म में किया है। किसने सोचा था कि कभी ‘बाहुबली’ में भल्लालदेव के पुत्र की भूमिका निभाने वाले यही व्यक्ति भारतीय फिल्म उद्योग में अपनी एक अलग छाप छोड़ जाएंगे।
अदिवि सेश के अलावा प्रकाश राज और रेवति ने भी मेजर उन्नीकृष्णन के अभिभावकों के रूप में बेजोड़ अभिनय किया है। प्रकाश राज के वास्तविक विचारों पर अवश्य मतभेद हो सकता है, पर अभिनय में अब भी वो अवसर आने पर अच्छे अच्छों को पीछे छोड़ सकते हैं। सई मांजरेकर का ‘दबंग-3’ में अभिनय को लेकर काफी उपहास उड़ा था, परंतु उन्होंने भी इस फिल्म में यदि बहुत उत्कृष्ट नहीं, तो कम से कम अपने अभिनय कला में सुधार तो अवश्य किया है। मुरली शर्मा ने भी एनएसजी कमांडर के रूप में अपनी भूमिका के साथ भरपूर न्याय किया है। “मेजर” में यदि कोई कमी थी, तो केवल इतनी कि एक दो रचनात्मकता के पीछे तर्क उम्मीद से परे लगे। परंतु उसे छोड़ दें तो “मेजर” फिल्म, मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के शौर्य को चित्रित करता एक साहसिक प्रयास है, जिसे देख आप भावुक भी होंगे, और गर्व से अभिभूत भी!
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