नीरज चोपड़ा- एक ऐसा एथलीट जिसने कभी भी सफलता को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया

ओलंपिक में बनाए अपने ही रिकॉर्ड को कर दिया ध्वस्त!

नीरज चोपड़ा

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जहां कुछ लोगों को सफलता मिलने के बाद उनके राग, ढंग, चाल, बर्ताव और तौर तरीके सबकुछ बदल जाते हैं, तो वहीं दूसरी ओर ऐसे भी लोगों की संख्या बहुतायत है जो सफलता को अपने सिर पर नहीं चढ़ने देते. भारत के ओलंपिक विजेता नीरज चोपड़ा भी उन्हीं में से एक हैं, जिन्होंने टोक्यो ओलंपिक में देश के लिए स्वर्ण पदक जीत कर हर भारतीय का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया था. भारत के सुपरस्टार जेवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा ने टोक्यो ओलंपिक में अपने ऐतिहासिक स्वर्ण के बाद एक बार फिर प्रतियोगिता के मैदान में शानदार वापसी की, जब वह फ़िनलैंड में आयोजित पावो नुरमी खेलों का हिस्सा बनें और अपना ही रिकार्ड तोड़ डाला.

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अपने खेल को बेहतर बनाने पर है चोपड़ा का ध्यान

पावो नुरमी खेल गर्मियों में फिनलैंड की शीर्ष ट्रैक और फील्ड प्रतियोगिता है और 1957 से हर साल आयोजित की जाती रही है. यह प्रतियोगिता एक कॉन्टिनेंटल टूर गोल्ड मीट है, जो एक शीर्ष स्तरीय विश्व एथलेटिक्स प्रतियोगिताओं में से एक है. इस प्रतियोगिता में नीरज चोपड़ा ने 89.30 मीटर के शानदार थ्रो के साथ रजत पदक प्राप्त किया. भले ही इस बार वो स्वर्ण पदक न जीत सके हों लेकिन उनकी यह जीत इसलिए भी बड़ी है क्योंकि चोपड़ा का इससे पहले राष्ट्रीय रिकॉर्ड 88.07 मीटर था जो उन्होंने पिछले वर्ष मार्च में पटियाला में बनाया था. इसके बाद उन्होंने 7 अगस्त, 2021 को 87.58 मीटर के थ्रो के साथ टोक्यो ओलंपिक का स्वर्ण पदक जीता था और इस बार उन्होंने 89.30 मीटर के शानदरा थ्रो के साथ अपने रिकार्ड को ध्वस्त कर दिया.

टोक्यो ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने के बाद उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मान्नित किया गया, कई कार्यक्रमों में मुख्य अतिथि के तौर पर बुलाया गया और कई विज्ञापनों में उन्हें फीचर किया गया. उनकी सफलता इतनी बड़ी थी कि हर कोई उसका जश्न मानना चाहता था. आखिरकार 10 महीने के बाद नीरज चोपड़ा जब वापस प्रतिस्पर्धा के मैदान में उतरे तो उन्होंने खुद का रिकॉर्ड तोड़ कर यह साबित कर दिया कि भले ही उन्हें हर तरफ शाबाशी और बधाई मिल रही हो, उनका नाम और ख्याति बढ़ रहा हो लेकिन उनका ध्यान सिर्फ और सिर्फ अपने खेल को बेहतर बनाने पर है. उन्होंने अपने मूल से अपना ध्यान भटकने नहीं दिया. पावो नुरमी में उनका यह थ्रो असाधारण से कम नहीं था क्योंकि उन्होंने लगभग 90 मीटर के प्रतिष्ठित अंक को छू लिया था, जिसे भाला फेंकने के खेल में ‘स्वर्ण मानक’ माना जाता है.

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नीरज ने अपने मूल को कभी नहीं छोड़ा

ध्यान देने वाली बात है कि टोक्यो ओलंपिक के दौरान जहां एक ओर नीरज के प्रतिद्वंदी जर्मनी के जोहान्स वेटर ने प्रतियोगिता से पहले कहा था कि नीरज मुझसे नहीं जीत पायेगा, वही नीरज का जवाब था कि मैं अपना सबसे बेहतर प्रदर्शन करने की कोशिश करूँगा. ठीक उसी तरह चोपड़ा ने हाल ही में मीडिया से बातचीत में कहा था कि वह 90 मीटर से आगे भला फेंकने के विचार से खुद को दबाव में नहीं डालेंगे, बल्कि धीरे-धीरे शिखर तक पहुंचने की कोशिश करेंगे. उनकी सौम्यता यह प्रदर्शित करती है कि नीरज आत्मप्रशंसा के बजाय काम करने में विश्वास रखते हैं और उनका यही रूप उन्हें दूसरों की नज़रों में और भी सम्मानित बनाता है. एक खिलाड़ी के रूप में जिस स्थिरता और परिपक्वता की खेलों में सबसे अधिक आवश्यकता होती है वे दोनों ही गुण नीरज में है, जो उन्हें सबसे अलग और बेहतरीन बनाता है.

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