इंडियन एक्सप्रेस ने ‘नस्लीय शुद्धता’ का झूठ फैलाया, राहुल गांधी बच्चों की तरह कूदने लगे

राहुल जी, आपसे नहीं होगा!

संस्कृति मंत्रालय

Source: TFI

‘ग़लत सूचना फैलाना’, ‘प्रोपगेंडा करना’, ‘सुनियोजित तरीके से झूठ फैलाना’ राष्ट्र-विरोधी और इस्लामी-वामपंथी समूहों के टूलकिट हैं। वे देश को तोड़ने के लिए पहले विभाजनकारी प्रोपगेंडा, भ्रामक ख़बरों और अफवाहों का प्रचार करेंगे और फिर अपनी सुविधा के अनुसार उसकी ग़लत व्याख्या करेंगे। यह एक समन्वित, संस्थागत और सुविचारित सूचना-युद्ध है। यह कोई नई बात नहीं है, हम सदियों से इसका सामना कर रहे हैं।

मोहम्मद गौरी से लेकर मैकाले तक और मैकाले से लेकर कांग्रेस तक भारत तथा हिंदुत्व इनके प्रोपगेंडा वार को झेलता रहा। जैसे ही देश में कुछ भी अच्छा होता है- विकास, प्रगति और कल्याण की परियोजनाएं आरम्भ होती हैं- वैसे ही कांग्रेस पार्टी और अन्य इस्लामी-वामपंथी समूह उसमें धार्मिक, जातीय और नस्लीय एंगल खोजकर मोदी और देश के विरुद्ध राजनीति करने लगते हैं। लेकिन, अब समय आ गया है कि उनके हर दुष्प्रचार की पोल खोली जाए और हमें बांटने की उनकी दुर्भावनापूर्ण मंशा को बेनकाब करें।

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28 मई 2022 को द न्यू इंडियन एक्सप्रेस ने ‘भारतीयों की ‘नस्लीय शुद्धता’ का अध्ययन करेगा संस्कृति मंत्रालय’ शीर्षक के साथ एक रिपोर्ट प्रकाशित की। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि “संस्कृति मंत्रालय आनुवंशिक इतिहास की स्थापना और भारत में नस्लों की शुद्धता का पता लगाने के लिए डीएनए प्रोफाइलिंग किट और संबंधित अत्याधुनिक मशीनों की एक सारणी  प्राप्त करने की प्रक्रिया में है।“

इसके अलावा, जाने-माने पुरातत्वविद् प्रोफेसर वसंत एस शिंदे के हवाले से रिपोर्ट में दावा किया गया है कि “हम यह देखना चाहते हैं कि पिछले 10,000 वर्षों में भारतीय आबादी में जीनों का उत्परिवर्तन और मिश्रण कैसे हुआ है। आप यह भी कह सकते हैं कि यह भारत में नस्लों की शुद्धता का पता लगाने का एक प्रयास होगा।”

इसके बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने रिपोर्ट साझा की और कहा- पिछली बार जब किसी देश में नस्लीय शुद्धता का अध्ययन करने वाला संस्कृति मंत्रालय था, तो उसका अंत अच्छा नहीं हुआ। भारत नौकरी की सुरक्षा और आर्थिक समृद्धि चाहता है, नस्लीय शुद्धता नहीं, प्रधानमंत्री।

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‘पिछली बार किसी देश में संस्कृति मंत्रालय ने नस्लीय शुद्धता का अध्ययन किया था, तो उसका अंत अच्छा नहीं हुआ’ इस वाक्य से राहुल बाबा देश के लोकतान्त्रिक शासन को हिटलर के मंत्रालय और नाजियों के समकक्ष बता रहे थे।

लोकतांत्रिक रूप से चुने गए प्रधानमंत्री की हिटलर से तुलना न केवल उनकी छवि को खराब करने का एक समन्वित और जानबूझकर किया गया प्रयास है, बल्कि यह देश की छवि धूमिल करने की एक नाकाम कोशिश भी है। अतः इस तरह के निंदनीय प्रचार को समय रहते ध्वस्त कर देना हमारा कर्तव्य बन जाता है ताकि हमारा देश विभाजित न हो।

संस्कृति मंत्रालय ने इस तथ्यहीन रिपोर्ट को सिरे से ख़ारिज कर दिया और इसे भ्रामक, शरारती और तथ्यों के विपरीत करार दिया। परियोजना को और स्पष्ट करते हुए मंत्रालय ने कहा, “संस्कृति मंत्रालय को कुछ चल रही परियोजनाओं के लिए कोलकाता में मौजूदा डीएनए लैब को अगली पीढ़ी की अनुक्रमण सुविधाओं में अपग्रेड करने के लिए भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण (एएनएसआई) से एक प्रस्ताव मिला है।

यह प्रस्ताव किसी भी तरह से आनुवंशिक इतिहास की स्थापना और भारत में नस्लों की शुद्धता का पता लगाने से संबंधित नहीं है जैसा कि लेख में बताया जा रहा है। मंत्रालय ने कहा कि फिलहाल प्रस्ताव की गुण-दोष के आधार पर जांच की जा रही है।

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इसके अलावा वैज्ञानिक परियोजना पर झूठी और भ्रामक रिपोर्टिंग को तोड़ते हुए, बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेज (भारत सरकार) के एक वैज्ञानिक, नीरज राय ने शरारती लेख पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि डीएनए अनुसंधान में मानव स्वास्थ्य की हमारी समझ में सुधार करने की काफी संभावनाएं हैं और इतिहास और भेदभावपूर्ण विचारों का समर्थन करने के लिए इसका इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए”।

आगे उन्होंने अवसरवादी और गिद्ध राजनेता राहुल गांधी का पर्दाफाश करते हुए कहा- “नस्लीय शुद्धता कोई चीज नहीं है और नस्ल जैविक रूप से व्याख्यायित नहीं है। यह राजनेताओं के लिए नस्लवाद का प्रचार करने का एक उपकरण रहा है और इसे आनुवंशिक वंश से नहीं जोड़ा जाना चाहिए।’’

यह जानबूझकर किया गया एक समन्वित प्रचार था जिसे न केवल मंत्रालय द्वारा बल्कि भारत में इस तरह के जीन प्रोफाइलिंग अध्ययन का नेतृत्व करने वाले वैज्ञानिक द्वारा नकार दिया गया है। आधुनिक वैज्ञानिक विकास में जीन प्रोफाइलिंग बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि जैविक संबंध स्थापित करना, अपराध की जांच करना और पितृत्व का निर्धारण करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसके अलावा, यह रोग के स्थानांतरण से लड़ने में भी मदद करता है और आने वाली पीढ़ी को आनुवंशिक रोगों से बचाने में मदद करता है।

आधुनिक युग में इस तरह के अध्ययन का उद्देश्य विशुद्ध रूप से वैज्ञानिक है और इस तरह के मामलों को तूल देने के अपने राजनीतिक निहितार्थ हैं। यही स्वार्थ किसी दिन देश तोड़ देगा। वामपंथी-इस्लामी समूहों के प्रचार और विभाजनकारी प्रोपगैंडा का विष फ़ैलाने के लिए इस मामले को उछाला जा रहा है। भाषा, संस्कृति, जाति, क्षेत्र, धर्म या नस्ल के आधार पर लोगों के बीच अलग पहचान की भावना पैदा करने के लिए यह लोग इस तरह का एजेंडा फैलाते हैं।

यह भारत को सांप्रदायिक आधार पर विभाजित करने और राजनीतिक लाभ के लिए अनुकूल वातावरण बनाने का एक प्रयास है। यह एक युद्ध है और ग़लत सूचना भारत को विभाजित करने के लिए ऐसे युद्ध के हथियारों में से एक है। भारत की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए तथ्यों और मूल स्रोतों पर आधारित जागरूकता से इसका मुकाबला किया जाना चाहिए।

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