राष्ट्रपति चुनाव: विपक्ष के टकराव ने भाजपा को दे दिया है आसान रास्ता

सिरफुटव्वल करने लगा है विपक्ष

राष्ट्रपति चुनाव भाजपा

Source-TFIPOST.in

एक प्रसिद्ध कहावत  है- “सर मुंडवाते ही ओले पड़ना।”  भारत के विपक्षियों के लिए यह कहावत शत-प्रतिशत सटीक बैठती है। जिस प्रकार वर्ष 2014 से सत्ता परिवर्तन के बाद से ही कथित “विपक्षी एकता” केवल बातों तक सीमित रह जाती थी उसका जीवंत उदाहरण हाल ही के दिनों में प्रत्यक्ष रूप से सामने आ गया। राष्ट्रपति चुनाव होने को अभी एक ठीक ठाक समय है, इसी बीच एनडीए गठबंधन के विरुद्ध एक सर्वस्वीकृति वाला विपक्षी चेहरा खड़ा करने के लिए विपक्षी दल एकमत कायम करने के लिए बैठकों का दौर शुरू कर चुके हैं। अधिकांश नेताओं का मानना है कि यदि एक सर्वसम्मति वाला चेहरा तय होता है तो जीत का तो पता नहीं, कड़ी टक्कर तो अवश्य दे पाएंगे, पर ऐसा हो जाए तो बात ही क्या है। आपसी सिरफुटव्वल का एक और घटनाक्रम इस बात को चीखकर बता रहा है कि राष्ट्रपति चुनाव के नामांकन होने से पूर्व ही विपक्ष एकता की परीक्षा में विफल हो गया और भाजपा के लिए रास्ता और आसान कर दिया है।

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विपक्षी दलों में फूट शुरू

दरअसल, राष्ट्रपति चुनाव में संयुक्त उम्मीदवार खड़ा करने के लिए विपक्षी दलों को एक करने की कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी की पहल के समानांतर, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने शनिवार को राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल करने के लिए एकता स्थापित करने को लेकर गैर-भाजपा संगठनों के 22 नेताओं को पत्र लिखा। बस यह पत्र बाहर आया नहीं कि एक बार फिर से मोदी विरोधी खेमे के भीतर दरार और अपमान वाली प्रवृत्ति उजागर हो गई। अपने को बड़ा और वरिष्ठ साबित करने के चक्कर में जुड़ने से पहले ही विपक्षी दलों में टूट और फूट शुरू हो गई।

पत्र के माध्यम से 15 जून को नई दिल्ली में “विपक्षी आवाजों के उपयोगी संगम” की मांग करते हुए ममता बनर्जी ने “विभाजनकारी ताकतों के खिलाफ मजबूत और प्रभावी विपक्ष” खड़ा करने का आह्वान किया और विपक्षी मुख्यमंत्रियों और नेताओं को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एक “संयुक्त बैठक” में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया। लेकिन ट्विस्ट तब आया जब पता चला कि सोनिया गांधी ने पहल कर पहले ही गैर-भाजपा दलों से संपर्क साध एक बैठक करने के लिए संदेश जारी किया था। ऐसे में ममता का उसके ठीक बाद बैठक के लिए पार्टियों और उनके प्रमुखों से संपर्क साधना उनके और कांग्रेस के टकराव को मूर्त रूप दे रहा है।

इसके बाद तो मानों बयानों और कटाक्षों की बयार आ गई। विपक्षी धड़ा बनने से पूर्व ही आलोचनओं का दौर शुरू हो गया। पहला बयान आया CPI(M) के महासचिव सीताराम  येचुरी का। येचुरी ने कहा कि आमतौर पर सबसे बड़ी पार्टी पहल करती है ऐसे में कांग्रेस इस समय राष्ट्रीय पार्टी है तो उसका पक्ष मजबूत हुआ। एक बैठक के लिए ये परामर्श पहले से ही चल रहे थे जब पत्र एकतरफा भेजा और प्रचारित किया गया था।” विपक्षी एकता को एक साथ जोड़ने के लिए पत्र-लेखन को “एकतरफा” कदम बताते हुए, जो “विपक्षी एकता को नुकसान पहुंचाएगा”, येचुरी ने कहा कि 15 जून को पहले ही बैठक के दिन के रूप में तय किया जा चुका है, जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राकांपा प्रमुख सहित विपक्षी दलों के वरिष्ठ नेता शामिल होंगे। शरद पवार और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन राष्ट्रपति चुनाव के संबंध में विपक्षी रणनीति पर मिलेंगे और चर्चा करेंगे। आम तौर पर, इन बैठकों को परामर्श के बाद तय किया जाता है और पारस्परिक रूप से सुविधाजनक तारीख तय की जाती है।” यह भी ठीक है, जिस ममता और टीएमसी से CPIM जैसा दल खिन्न रहता हो उसका बयान आना तो स्वाभाविक ही था। इस बयान ने पहले तो ममता के श्रेष्ठ बनने के एजेंडे को जड़ से उखाड़ फेंका, दूसरा एजेंडा विपक्षी एकीकरण की जगह खिन्न-खिन्न हो गया।

बता दें ममता बनर्जी ने कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी और आठ अन्य विपक्षी मुख्यमंत्रियों सहित विभिन्न दलों के नेताओं को लिखा, “राष्ट्रपति चुनाव नजदीक है, सभी प्रगतिशील विपक्षी दलों के लिए भारतीय राजनीति के भविष्य की रणनीति पर पुनर्विचार और विचार-विमर्श करने का सही समय है।” जिन नेताओं को पत्र भेजा गया उनमें अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान (आप), नवीन पटनायक (बीजू जनता दल), पिनाराई विजयन (सीपीएम), के चंद्रशेखर राव (टीआरएस), हेमंत सोरेन (झामुमो), एम के स्टालिन (डीएमके) और उद्धव ठाकरे (शिवसेना के नेतृत्व वाले एमवीए)। अखिलेश यादव (सपा), डी राजा (सीपीआई), शरद पवार (एनसीपी), लालू प्रसाद यादव (राजद), जयंत चौधरी (रालोद), पूर्व पीएम एचडी देवेगौड़ा और एचडी कुमारस्वामी (जेडीएस), फारूक अब्दुल्लाह (नेशनल कॉन्फ्रेंस), महबूबा मुफ्ती (पीडीपी), सुखबीर सिंह बादल (शिरोमणि अकाली दल), पवन चामलिंग (सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट), और के एम कादर मोहिदीन (आईयूएमएल) शामिल थे जिन्हें बैठक के लिए न्योता भी भेजा गया है।

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बनर्जी ने क्या लिखा है?

बनर्जी ने लिखा, “चुनाव स्मारकीय है क्योंकि यह विधायकों को हमारे राज्य के प्रमुख को तय करने में भाग लेने का अवसर देता है जो हमारे लोकतंत्र का संरक्षक है। ऐसे समय में जब हमारा लोकतंत्र संकट के दौर से गुजर रहा है, मेरा मानना ​​है कि वंचित और गैर-प्रतिनिधित्व वाले समुदायों को प्रतिध्वनित करने के लिए विपक्ष की आवाजों का एक उपयोगी संगम की जरूरत है।”

ज्ञात हो कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का कार्यकाल आगामी जुलाई 2022 को समाप्त होने वाला है। अब यह देखने वाली बात होगी कि कोविंद, भाजपा की 75 नॉट अलाउड वाली नीति का अनुसरण करते हैं या एक अपवाद बनते हैं। क्योंकि भाजपा में यह तथ्य बहुत चलता है कि 75+ होते ही आओ मार्गदर्शक मंडल की शोभा बढ़ाएं और दूसरों को मौका प्रदान करें। ऐसे में यह संभावना तो लगभग लेश मात्र भी नहीं है कि रामनाथ कोविंद पुनः राष्ट्रपति चुनाव के रण में होंगे।

ऐसे में भाजपा तो अपना रुख शीघ्र ही स्पष्ट कर देगी क्योंकि राष्ट्रपति चुनाव के लिए नामांकन की अंतिम तिथि 29 जून है, ऐसे में असमंजस में विपक्ष है। जहां एक ओर ममता बनर्जी स्वयं को सबसे बड़ा राजनीतिज्ञ साबित करने में लगी हुई हैं और दूसरी ओर “एकजुट विपक्ष” के नाम पर केवल हवाई बाते हैं, जमीन पर सब निल बटे सन्नाटा है। ऐसे में अब यह तो तय है कि कभी न पूरी हुई “विपक्षी एकता” वाली चाहत मात्र चाहत ही रह जाएगी क्योंकि कांग्रेस के साथ आने के लिए न तो क्षेत्रीय दलों में BJD, TRS, YSR’C’ मानेगी क्योंकि क्षेत्रीय स्तर पर इनके कांग्रेस से मतभेद जगजाहिर हैं। दूसरी ओर, राकंपा, आरजेडी, CPI’M’ जैसे दल फिर भी कांग्रेस के साथ बने रहेंगे, ऐसे में एकता तो कहीं से बनती दिख नहीं रही है। स्थिति आज भी “धाक के तीन पात” ही प्रतीत होती दिख रही है क्योंकि सभी की वर्चस्व की जंग है और इसी के परिणामस्वरूप ‘विपक्षी एकता थ्योरी’ का भारतीय राजनीति में हाथ तंग है।

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