भिंडरांवाले को ‘पूजने’ वाली पंजाबी म्यूज़िक इंडस्ट्री का वास्तविक चेहरा देख लीजिए

इनके गाने सुनो, खालिस्तानियों की भक्ति छोड़कर कुछ नहीं मिलेगा!

भिंडरांवाले गाने

Source: TFI

सिद्धू मूसेवाला की बेरहमी से हत्या कर दी गई। हत्या की वजह पंजाब के विभिन्न गुटों में आपसी गैंगवार रहा। मौत का मातम धीरे-धीरे ठंडा पड़ रहा है और तेजी से प्रतिशोध लेने की तैयारी चल रही है। केजरीवाल की पंगु सरकार मूकदर्शक बनकर इन सभी चीजों को मौन समर्थन दे रही है क्योंकि उनका तो सबसे बड़ा स्वप्न हीं स्वतंत्र पंजाब के प्रधानमंत्री बनने का है किंतु इन सब चीजों के मध्य एक खबर आग की तरह फैली और वह यह थी कि क्या सिद्धू मूसेवाला सच में खालिस्तान समर्थक हैं? कहा गया कि “पंजाब: माय मदरलैंड” नामक गाने में उन्होंने भिंडरांवाले का महिमामंडन किया है। इस तथ्य की पुष्टि करने के लिए आप चाहें तो वह गाना सुन भी सकते हैं। यह बात शत-प्रतिशत सत्य है।

इस गाने में ना सिर्फ भिंडरांवाले बल्कि उसके अन्य शिष्यों और खालिस्तान समर्थकों को भी चित्रित करते हुए महिमामंडित करने का भरपूर प्रयास किया गया है। इस गाने के 2 वाक्य आप साफ-साफ समझ सकते हैं। जिनका अर्थ है, ‘यह पंजाब है, यहां कहकर बदला लेते हैं और दूसरा हम पंजाबियों में इतनी ताकत है कि हम जरूरत पड़ने पर दिल्ली को भी कब्जे में ले सकते हैं।’ अब जरा स्वयं अनुमान लगाइए कि अगर इन वाक्यों के साथ भिंडरांवाले खालिस्तान समर्थकों और खालिस्तान समर्थक किसानों को चित्रित किया जाए तो इसका क्या अर्थ होगा?

और पढ़ें: सिद्धू मूसेवाला के स्याह व्यक्तित्व का मूल्यांकन आवश्यक है

इसका साफ-साफ अर्थ है कि जिस तरीके से भारत सरकार ने ‘खालिस्तान’ के तथाकथित ‘प्रधानमंत्री’ भिंडरांवाले को मारा उसी तरह से सिखों ने भी बदला लेते हुए भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर दी और जिस तरह सरकार ने सिखों की मर्जी के खिलाफ किंतु, संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करते हुए कृषि कानून पास किया, उसे सिखों ने दिल्ली को बंधक बनाकर सरकार को वापस लेने के लिए विवश कर दिया।

दूसरा वाकया तो किसी गाने में नहीं बल्कि लाइव कॉन्सर्ट में हुआ जब मूसेवाला ने भिंडरांवाले को संत कहकर दर्शकों के सामने संबोधित किया और यह स्पष्टीकरण दिया कि वो कभी संतजी के खिलाफ नहीं जा सकता। आप सोच रहे होंगे कि हम आखिर सिद्धू मूसेवाला की दुखद मौत के बाद उनके खालिस्तान समर्थित गानों और लाइव कॉन्सर्ट को क्यों उद्धृत कर रहे हैं। तो, इसकी एक वजह है। हम सभी जानते हैं कि पंजाब की संगीत इंडस्ट्री पूरे देश में सबसे ताकतवर और समृद्ध है।

इसके प्रशंसक व्यापक रूप से पूरे देश में फैले हुए हैं। पंजाबी न जानने के बावजूद भी अधिकतर युवा इन गानों को सुनते हैं और इसका मतलब न समझ पाने के बावजूद इसके धुन पर थिरकते हैं। पंजाब की म्यूजिक इंडस्ट्री की संपन्नता को कुछ लोगों और संगीतकारों ने “भारत विरोधी” और “खालिस्तान समर्थक” अपने प्रोपेगेंडा का विस्तार करने का हथियार बना लिया है। सिद्धू मूसेवाला की मौत और खालिस्तान को महिमामंडित करनेवाले उनका गाने ने यकायक इस समस्या को राष्ट्रीय पटल पर ला दिया।

और पढ़ें: सिद्धू मूसेवाला की गोली मारकर हत्या, AAP सरकार ने एक दिन पहले घटाई थी सुरक्षा

ऐसे में आम जनता को यह बताना आवश्यक है कि आखिर वो कौन-कौन से पंजाबी गायक हैं जो गानों की आड़ में खालिस्तानी प्रोपेगेंडा का प्रचार कर रहे हैं? क्योंकि अगर उन्हें अभी चिन्हित नहीं किया गया तो ऐसे गाने “गन और गैंगस्टर” परंपरा के माध्यम से खालिस्तान की प्राप्ति हेतु युवाओं को प्रोत्साहित करेंगे। ऐसे गाने युवाओं को हथियार उठाने के लिए बाध्य कर देंगे। यह मूल रूप से उनका ब्रेनवाश करने के समान है जहाँ हथियार उठाने पर उन्हें खालिस्तानी और आतंकी की जगह संत और स्वतंत्रता सेनानी की उपाधि दे दी जाएगी।

किसान आंदोलन में खालिस्तान आंदोलन के शामिल होने से लेकर पंजाब में हो रहे गैंगवार के बीच हमें ये गीत फिर से खालिस्तान आंदोलन की ओर देखने के लिए मजबूर करते हैं। “दिल्लीये” गीत भी एक बड़ी अलगाववादी तस्वीर की ओर ले जाती है।

दूसरी ओर, खालिस्तान समर्थक कलाकार जैज़ी बी, सोफिया जमील, सिद्धू मूसेवाला और पाकिस्तानी कलाकार एबी चट्ठा ने क्रमशः बगवतन, खालिस्तान द सॉल्यूशन, पंजाब और बागी पंजाब के गीतों के माध्यम से अलगाववादी और सिख फॉर जस्टिस के प्रचार में जोरदार सहयोग किया है।

और पढ़ें: खालिस्तान प्रेमी मूसेवाला कांग्रेस में हुआ शामिल, अमरिंदर के रहते नहीं थी हिम्मत

श्री बराड़ द्वारा निर्मित बहुत लोकप्रिय तथाकथित “किसान गान” की दो पंक्तियाँ भी अलगाववाद को भड़काती हैं जिसके लिए उन्हें पंजाब पुलिस ने हिरासत में भी लिया था। गाने के बोल कहते हैं, “जिन्ना नु तू अटवाड़ी कहनी दिलिए, जे अटवाडी होगे तेथो संभे नी जाने”। “दिल्ली” द्वारा जिन पर आतंकवादी होने का आरोप लगाया जाता है, वे वास्तव में आतंकवादी बन सकते हैं।

एक अन्य पंक्ति कहती है “बेबे नानक ने सानू सी किसानी बख्शी बाजन वाले ने कलमा ते खंडे दिल्ली ऐ”। स्पष्ट रूप से सिख REFERENDUM के प्रचार को यह धमकी देते हुए बढ़ावा देता है कि गुरु गोबिंद सिंह ने सिखों को खंजर दिया है।

इसी तरह के आरोप JAZZYB और दिलजीत जैसे गायकों पर भी रंगरूट गाने को लेकर लगा है. कहने का अर्थ यह है कि पंजाबी संगीत और सिनेमा उद्योग द्वारा खालिस्तानी भावनाओं को उभारा जा रहा है. इसकी प्राप्ति के लिए गन और गैंगस्टर परंपरा को महिमामंडित किया जा रहा है। आने वाले समय में यह घातक सिद्ध हो सकता है. अतः सरकार द्वारा अभी इसे कठोरता से रोका जाना चाहिए।

और पढ़ें: खालिस्तानी समर्थक सिद्धू मूसेवाला को अब कांग्रेस का खुलकर समर्थन मिल रहा है

यहां देखिए TFI के वीडियो:

 

Exit mobile version