RSS को सुनिश्चित करना चाहिए कि उसके “संस्कृत/वैदिक गणित/शास्त्र” के सुझाव देशभर में लागू हों

देश को संस्कृत की महत्ता समझनी ही होगी

Sanskrit

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भाषा लोगों को एक दूसरे से जोड़ने का माध्यम बनती है, भाषा हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो हमारे विचारों को एक ढांचे में पिरोती है और हमारी भावनाओं को दूसरों के साथ साझा करने का भी माध्यम बनती है। आज लोगों में अलग-अलग भाषाएं सीखने की होड़ लगी है। हमारे देश में ही न जाने ऐसे कितने कोचिंग सेंटर हैं जो फ्रेंच, जर्मन और अरबी जैसी विदेशी भाषाएं सिखाते हैं। अंग्रेजी तो मानो जैसे अंग्रेज़ों से ज़्यादा भारतीयों की भाषा बन चुकी है। लेकिन इन सब के बीच जो हमारी स्वयं की प्राचीन भाषा है, जो हजारों सालों से चली आ रही है और हमारे देश की पहचान है उस संस्कृत भाषा को तो जैसे हम भूल ही गए हैं।

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संस्कृत को लेकर आरएसएस की अपील

इसी स्थिति को सुधारने के लिए गुजरात की राज्य सरकार के साथ हुई एक बैठक में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस ने कक्षा एक से अनिवार्य रूप से संस्कृत पढ़ाने की अपील की है। सूत्र बताते हैं कि शिक्षा मंत्री जीतू वघानी, गुजरात बीजेपी रत्नाकर के सांगठनिक महासचिव, विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ संघ के वरिष्ठ प्रतिनिधियों से मुलाकात कर नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन पर चर्चा की थी। नई शिक्षा नीति की तीन भाषा नीति अनिवार्य रूप से सिखायी जाने वाली किसी विशिष्ट भाषा पर जोर नहीं देती है। इसमें कहा गया है कि भाषा का चयन राज्यों, क्षेत्रों और स्वयं बच्चों द्वारा चुने गए विकल्पों के आधार पर होगा, बशर्ते तीन में से दो भाषाएं भारत की हों।

आरएसएस का संस्कृत पढ़ाने का सुझाव स्कूलों तक ही सीमित नहीं है, क्योंकि संघ ने सुझाव दिया है कि माध्यमिक और उच्च शिक्षा में संस्कृत को दूसरी भाषा के रूप में पढ़ाया जाना चाहिए। बच्चों का अंग्रेजी सीखना सही है लेकिन अंग्रज़ी भाषा की कीमत देश की संस्कृत भाषा को न चुकानी पड़े ऐसी संघ की अपील है। यहां तक कि भगवद गीता, रामायण और महाभारत को संघ ने स्कूली पाठ्यक्रम में स्थान देने, वैदिक गणित को अनिवार्य करने, उपनिषद पर आधारित मूल्य शिक्षा दिए जाने और निजी विश्वविद्यालयों को विनियमित करने पर भी विशेष जोर दिया।

वह संस्कृत भाषा जो कई भाषाओं की जननी मानी जाती है, वह भारतीय भाषा मानो भारत से ही परायी होती जा रही है। जहां आज भारत के कुछ लोगों को अंग्रेजी में बात करने वाले बड़े ही पढ़े-लिखे और समझदार प्रतीत होते हैं वहीं हिंदी भाषा बोलने वाले उन्हें अनपढ़ या कम पढ़े-लिखे लगते हैं तो ऐसे में तो संस्कृत भाषा के ज्ञाता उन तथाकथित आधुनिक सोच रखने वाले कुछ भारतीयों के लिए मूर्ख के सामान हैं। आज संस्कृत भाषा में केवल गिने चुने लोग ही स्नातक करते हैं या फिर स्नातकोत्तर करते हैं। धीरे-धीरे यह भाषा दम तोड़ती प्रतीत होने लगी है। ध्यान देने वाली बात ये है कि जहां एक तरफ भारत में अपनी स्वयं की भाषा सीखने और जानने के बजाए विदेशी भाषा को सीखने की होड़ लगी हुई है वहीं दूसरी ओर कई विदेशी राज्य संस्कृत को अपने स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाकर बच्चों को संस्कृत सीखा रहे हैं।

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संस्कृत पूर्णतया समृद्ध भाषा है

ऐसा ही लंदन में बसा एक स्कूल है संत जेम्स जहां छोटे-छोटे बच्चे संस्कृत के श्लोक बोलते सुनाई देंगे और वह भी शुद्ध उच्चारण के साथ। इस स्कूल का कहना है कि संस्कृत पूर्णतया समृद्ध भाषा है, शब्दावली में समृद्ध, साहित्य में समृद्ध, विचारों में समृद्ध, अर्थों और मूल्यों में समृद्ध।

“संस्कृत भाषा की एक अद्भुत संरचना है; ग्रीक की तुलना में अधिक परिपूर्ण, लैटिन की तुलना में अधिक प्रचुर, और दोनों की तुलना में अधिक उत्कृष्ट रूप से परिष्कृत।“

संस्कृत वर्णमाला की संरचना, जिसे किंडरगार्डन में बच्चों को सिखाया जाता है वह इस तरह लिखी गई है कि इसकी वर्णमाला के अक्षर बच्चे आराम से बोल और सीख सकते हैं। वर्णमाला की ध्वनियां अपनी सीमा में व्यापक हैं और प्रारंभिक अवस्था में बच्चों के भाषाई कौशल को काफी विस्तृत करती हैं।

दुर्भाग्य से जहां पूरी दुनिया में लोग संस्कृत के महत्व, व्याकरण और पवित्रता को जानने के इच्छुक हैं, वहीं हम भारतीय कहीं न कहीं अपनी पहचान खो रहे हैं। गुजरात या कोई इक्का-दुक्का राज्य में ही क्यों संस्कृत को तो पूरे भारत में फिर से जागृत करने के लिए सरकार को कदम उठाना चाहिए। हालांकि अब देश की सरकार अपनी संस्कृति को संजोने का हर संभव प्रयत्न कर रही है और आशा है कि उनके इस प्रयत्न में वे संस्कृत को भी सहेज सकेंगे और यह भाषा एक बार फिर भारत में अपना सम्मान पा सकेगी।

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