राज्य सरकारों को पिछली सरकारों द्वारा दर्ज मामलों को छोड़ने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए

अब नियम को बदलने की जरुरत है !

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Source- TFIPOST.in

नियम और क़ानून जनता की सुरक्षा और उन्हें न्याय मिले यही सुनुश्चित करने के लिए बनाये गए थे लेकिन आज उन्हीं क़ानून की लिखी पंक्तियों का इस्तेमाल करके कई बार राज्य सरकारें अपराधियों को बचा लेती हैं। केरला की राज्य सरकार इसका ताजा उदहारण है। जिसने एक ऐसे इंसान को बचाने की कोशिश की जिसके पास अवैध वन्यजीव कलाकृतियां बरामद हुई।

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कानून, राज्य और ‘अभिनेता’

जून 2012 में इनकम टैक्स अथॉरिटीज ने जब केरलाा के सुपरस्टार मोहन लाल के घर छापा मारा तो आयकर अधिकारियों ने अभिनेता के घर से चार हाथी दांत जब्त किए गए थे, जिसके बाद उनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। उनसे पूछताछ की गई लेकिन यह पता नहीं चल सका की वे हाथी के दांत उनके पास कहाँ से आये। इस दौरान अभिनेता ने बिना किसी जांच के मामले को दबाने के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल किया और यह उसी का नतीजा है कि आज तक यह मामला कोर्ट में लटका हुआ है। न आरोपी पकडे गए न अभी तक इस मामले में दोषी को सज़ा हुई। यहाँ तक कि केरला की सरकार ने अभिनेता को बचाने के लिए कोर्ट में यह तर्क देते हुए याचिका दायर की कि इस मामले पर आगे बढ़ना एक निरर्थक कवायद होगी और अदालत के समय की बर्बादी होगी।

हालाँकि कोर्ट ने यह याचिका ख़ारिज कर दी लेकिन यह पहली बार नहीं हुआ है जब किसी राज्य सरकार ने अपराधी को बचाने की कोशिश की हो। कभी-कभी राज्य सरकारें स्वयं अपना कार्य और जिम्मेदारियां पूरी लगन और ईमानदारी से निभाने में विफल हो जाती हैं। ऐसे आपराधिक मामलों को राज्य सरकारें तब वापिस लेती हैं जब कठघरे में उनका कोई अनुयायी खड़ा हो। राज्य सरकारें अपने राजनीतिक अनुयायियों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों को वापस लेने के लिए अपनी निरंकुश शक्तियों का उपयोग करती है। राज्य को यह शक्ति प्रदान करने का प्रावधान आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973 [ Criminal Procedure Code 1973]  की धारा 321 से केवल इस शर्त के साथ प्रवाहित होता है कि अदालत को अपने समक्ष लंबित मामले को वापस लेने के लिए एक आवेदन पर आदेश पारित करना होता है ।

सीआरपीसी 1973 की धारा 321, लोक अभियोजक/सहायक लोक अभियोजक [Public Prosecutor/Assistant Public Prosecutor ] को उस मामले को वापस लेने की शक्ति देता है, जिसके लिए वह राज्य सरकार से लिखित अनुमति प्राप्त करने के बाद प्रभारी है। राज्य की अनुमति लेने के बाद इस अनुमति को न्यायालय में दायर किया जाता है। कोर्ट में चल रहे किसी मामले को वापिस लेने की शक्ति लोक अभियोजक / सहायक लोक अभियोजक को सार्वजनिक नीति और न्याय के हित में काम करने के लिए दी गई थी न कि कानून की प्रक्रिया को निराश या कुचलने के लिए। लेकिन कई बार लोक अभियोजक या तो राज्य सरकार की खुशामद करने के लिए या फिर उसके डर से ऐसी याचिका दायर कर देता है। कई बार वह यह भी नहीं सोचता की वह राज्य सरकार के साथ मिलकर जिसे बचा रहा है वह एक बड़ा अपराधी है जिसे अगर सज़ा नहीं मिली तो वह भविष्य में भी ऐसे अपराध करता रहेगा।

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मनमाना वापसी आपराधिक मामले

हालाँकि केरला की सरकार शक्तियों के दुरूपयोग करने वाली पहली सरकार नहीं है। इससे पहले कर्नाटक की सरकार भी ऐसा कुछ कर चुकी है। कर्नाटक में एक सरकार  कार्यकाल के दौरान राज्य के मौजूदा विधायकों के खिलाफ शुरू किए गए 61 आपराधिक मामलों को खारिज करने के लिए कोर्ट से अपील की।

राज्य सरकारों के ऐसे फैसले केवल अपने अनुयायियों या नेताओं और मंत्रियों को बचाने के लिए ही नहीं लिए जाते बल्कि कई बार चुनाव लड़ते समय जनता, विशेषकर वह अपराधी और उसके गुट को लुभाने के लिए भी किये जाते हैं जिससे कि चुनाव में खड़े प्रत्याशी को विजय प्राप्त हो। समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव इसका एक ज्वलंत उदहारण हैं। अखिलेश यादव ने यह ऐलान किया कि अगर उनकी पार्टी 2022 में उत्तर प्रदेश का चुनाव जीतती है तो वे दिसंबर 2020 में सीएए विरोधी कार्यकर्ताओं के खिलाफ किये गए सभी मामले वापिस ले लिए जायेंगे।हालाँकि साल 2021 में राज्य सरकारों की ऐसी मनमानी पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि ‘सबूतों का अभाव है यह कहकर मामला वापिस नहीं लिया जायेगा’। कोई भी आपराधिक मामला तभी वापिस लिया जायेगा जब हाइ कोर्ट इसे मानेगा और याचिका दायर करते समय लोक अभियोजक को अपने स्पष्ट विचार इस विषय में सामने रखने होंगे।

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लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद भी शायद कुछ सरकारों को यह बात समझ में नहीं आई और शायद इसलिए केरला सरकार ने एक ऐसी याचिका दायर कर दी। लेकिन क्या किसी अपराधी को माफ़ करना या उसे आरोपों से मुक्त करवाने की शक्ति राज्य सरकारों के हाथ में दे देना उचित है? क्या न्याय के मामलों में राज्य सरकारों का ऐसा हस्तक्षेप करना उचित है? क्या कानून की इस पंक्ति को आधार बनाकर खुलेआम चुनाव जीतने के लिए अपराधियों को क्षमा कर दिया जायेगा ऐसी घोषणा करना उचित है?

अगर देश की क़ानून व्यवस्था को बनाये रखना है और लोगों का न्याय मैं विशवास बढ़ाना है तो आवश्यक है कि राज्य सरकारों की ऐसी शक्तियों पर और लगाम खींची जाये अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब अपराधी हर गली हर नुक्कड़ में हाहाकार मचाते नज़र आएंगे।

 

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