स्ट्रीट वीटो अर्थात प्रदर्शन की आड़ में रोड पर घर बसाओ नीति से देश को अब बचाने के लिए पुख्ता कदम उठाने पड़ेंगे। प्रदर्शन के नाम पर दंगाई और उपद्रवी सड़कों को नया घर और पत्थरबाजी का नया अड्डा बनाने से भी नहीं चूकते। ऐसे में इन तत्वों से अब देश को बचाने की आवश्यकता है क्योंकि यह देश को बर्बाद करने के अतिरिक्त और कुछ नहीं सोचते हैं। सड़कों पर उतरना सार्वजानिक संपत्ति का सत्यानाश करना ही इनका एक मात्र ध्येय है। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे सत्याग्रह के नाम पर दंगा और सार्वजानिक रूप से माहौल बिगाड़ने वालों को जिनकी शह मिलती है उन पर नकेल कसने के लिए देश को यह काम उन हाथों में देना चाहिए जो इस संदर्भ में कई कड़े निर्णय ले चुके हैं।
राज्य के स्तर पर देखें तो दो राज्य ऐसे हैं जिनके प्रमुख सेवादार ऐसे घटनाक्रमों पर बेहद सतर्क रहते हैं और वो हैं यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिश्व सरमा।
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दिल्ली के सभी बॉर्डरों पर फैल गयी थी अव्यवस्था
CAA, NRC, किसान आंदोलन और ऐसे अनन्य घटनाक्रम जो प्रमुख रूप से इसलिए धरने और प्रदर्शन का कारण बन गए थे क्योंकि सरकार द्वारा उस क्षेत्र में लाए जाने वाले कानून उन्हें फूंटी आंख नहीं सुहा रहे थे। तीनों के समय शाहीन बाग से लेकर दिल्ली के सभी बॉर्डरों पर ऐसी अव्यवस्था फैली कि 2019 के अंत में शुरू हुआ CAA-NRC के विरुद्ध प्रदर्शन मार्च 2020 तक चला और निश्चित रूप से यह तब भी नहीं ख़त्म होता अगर मार्च 2020 में कोरोना की पाबंदियां न आई होतीं। पर खत्म होते होते यह संसद से लेकर सड़क तक पहुंचा CAA-NRC का विरोध शिगूफा राजधानी दिल्ली में बड़े दंगों का कारक बना और दिल्ली दहल उठी।
I spoke on the @urbanpandits podcast last night about India's street veto problem. Do listen. https://t.co/gscE3EDaa8
— Ajit Datta (@ajitdatta) June 18, 2022
खैर कोरोना आया और शाहीन बाग की बिरयानी चक्कलस समाप्त हुई पर अब चूंकि यह प्रदर्शन सरकार को झुका नहीं पाया तो एजेंडाधारियों ने तो अगली टूलकिट भी तैयार कर ली। दिलचस्प बात यह है कि प्रदर्शन और धरने देश में पहले भी हुए पर इस स्तर पर सामाजिक हानि और सौहार्द्र बिगाड़कर कभी अपनी मांगें नहीं मांगी गईं। ये कथित सत्याग्रह नये नये शब्द अस्तित्व में ले आए जैसे कि टूलकिट। टूलकिट को केंद्र मान अब यह तत्व सारी योजना रचना तय करते हैं। अब नया शिगूफा था, केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीनों किसान हितेषी कानून क्योंकि अंधा विरोध अर्थात यह सरकार जो भी नीति लाएगी उसका विरोध ही करना है उस ध्येय के साथ अपना एजेंडा चला रहे गुटों को नया बहाना मिल गया, सड़कों पर घर बना डेरा डालने का। अब नीति निर्माण तो संसद में होती हैं और संसद है दिल्ली में तो एक बार फिर देश में परोक्ष रूप से आगजनी का एपीसेंटर दिल्ली बन गया।
कोरोना के बढ़ते प्रकोप में ही 9 अगस्त 2020 को किसान विरोधी कानूनों का नारा बुलंद कर किसान आंदोलन का प्रारंभ हुआ। देश को वैश्विक स्तर पर नीचा दिखाने की सारी हदें इस आंदोलन में पार हुई, और बढ़ते बढ़ते यह आंदोलन 2020 पूरा खा गया, 2021 में भी कोई हल नहीं निकला और 2022 आने से कुछ दिन पूर्व ही कथित किसानों की घर वापसी तब हुई जब सरकार ने तीनों बिल वापस लेने की घोषणा कर दी। इस पूरे परिदृश्य में एक चीज़ फिर समानता की ओर इशारा कर रही थी जो था सरकार को झुकाना।
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नया प्रयोग गढ़ने के उपद्रवियों के प्रयास जारी ही रहते हैं
यह सब हुआ इसके बाद एक और नया प्रयोग गढ़ने के प्रयास हुए और इस बार यह प्रयास विध्वंसक थे। इन तत्वों ने जिहादी और उन्मादी भीड़ को “अटैक मोड़” पर डाल दिया और वर्ष 2022 की शुरुआत से ही इन गिरोहों ने हिन्दू देवस्थानों और शोभायात्राओं को निशाना बनाना शुरू कर दिया। बात बिगड़ते-बिगड़ते यहां तक पहुचं गई है कि अब हर जुम्मे पर इस बात का खतरा रहता है कि कौन से मस्जिद से जिहादी भीड़ निकलेगी और शांतिदूत अशांति फैलाएंगे।
यूं तो यह पूरे देश में काशी के ज्ञानवापी विवाद और पूर्व भाजपा प्रवक्ता नूपुर शर्मा के पैगम्बर पर की गयी टिपण्णी के बाद और उग्र हुए। हाल ही में नये मुद्दे और सरकार की एक और नीति जिसका सरोकार युवा पीढ़ी से है ऐसे अग्निपथ योजना के विरुद्ध सड़कों पर उतरे तुच्छ मानसिकता के परिचायक ट्रेन से लेकर क्या कुछ नहीं जला रहे। यह सब प्रायोजित जान पड़ता है क्योंकि सरकार जो नीति लाएगी उनका मंत्र सीमित है कि विरोध विरोध और केवल विरोध। बात उसी ढर्रे पर आ गई कि अब अग्निपथ योजना जैसे प्रयोजनों के माध्यम से देश को झुलसाने के पूरे प्रबंध किए गए ऐसा लगता है।
ऐसे में अब सरकार को और कुछ नहीं उन शस्त्रों का प्रयोग करना चाहिए जो उसके पास पहले से हैं। इन्हीं शस्त्रों से इन उपद्रवी मनुष्यों का उपचार होना चाहिए। और वो उपचार हैं दो मुख्यमंत्री जो बेहद संवेदनशील राज्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं। पहले हैं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और दूसरे हैं असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिश्व सरमा।
यह दोनों शासन-प्रशासन पर अच्छी पकड़ और सख्त निर्देश देने के लिए जाने जाते हैं। वर्तमान के चल रहे घटनक्रमों में दंगाई को जेल और बुलडोज़र से नवाजने जैसे निर्णयों ने एक बड़ा संदेश देश को दिया है जिसके समर्थन में हर जनमानस है। ऐसे सड़क को अपनी निजी संपत्ति समझने वालों को अब इनसे बेहतर कोई ठीक नहीं कर सकता है। ज़रुरत है कि अब इस टूलकिट को ध्वस्त किया जाए और शांति स्थापित की जाए।
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