‘तकनीक ही ग़लत है तुम्हारी’, मोदी विरोध के चक्कर में विपक्ष का कोई स्तर ही नहीं बचा

गिरने का भी एक स्तर होता है भाई!

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हम नहीं सुधरेंगे यह टैगलाइन अब देश के प्रमुख विपक्षी नेता और उस पार्टी की हो गई है जो अपने स्वार्थ निहित काम करते हैं, विरोध के नाम पर एजेंडा चलाते हैं और सरकार को घेरने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। इसका सर्वसाधारण प्रत्यक्ष उदाहरण हैं राहुल गांधी। कांग्रेस पार्टी के चश्मोचिराग राहुल गांधी उन नेताओं में से एक हैं जो वेकेशन पॉलिटिक्स के आदी हो चुके हैं। कहीं घूमकर आएँगे, ननिहाल जाएंगे और आकर सरकार को कोसने लगेंगे, फिर छुट्टी के लिए निकल पड़ेंगे। राहुल को लगता है उनके दबाव में आकर कृषि कानून वापस ले लिए गए थे और अब अग्निपथ योजना पर भी राहुल वैसा ही दबाव बनाने की बात कर रहे हैं।

दबाव तो बाद की बात है, असल मुद्दा यह है कि सरकार और नेता से ऐसी भी क्या चिढ जो देशहित वाले मुद्दों पर सरकार को और प्रमुख रूप से पीएम मोदी को पानी पी पीकर कोसना। राहुल गांधी ने अपने और कांग्रेस के स्तर से दर्शा दिया है कि आज का विपक्ष दोयम दर्ज़े की सोच रखने के साथ ही देश के हित वाली योजनाओं को देश में लागू होने से रोकना चाहता है।

दरअसल, राहुल गांधी ने शनिवार को एक ट्वीट करते हुए कहा था कि, “8 सालों से लगातार भाजपा सरकार ने ‘जय जवान, जय किसान’ के मूल्यों का अपमान किया है। मैंने पहले भी कहा था कि प्रधानमंत्री जी को काले कृषि कानून वापस लेने पड़ेंगे। ठीक उसी तरह उन्हें ‘माफ़ीवीर’ बनकर देश के युवाओं की बात माननी पड़ेगी और ‘अग्निपथ’ को वापस लेना ही पड़ेगा।” इस ट्वीट से इतना तो अनुमान लगाया जा सकता है कि राहुल गांधी अब परिपक्व तो होने से रहे, जैसे हैं उसी से कांग्रेस को काम चलाना पड़ेगा।

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योजना कोई भी हो बस विरोध करना है

राजनीतिक सुचिता से अज्ञानी राहुल गांधी ने विपक्षी होने के धर्म को यूँ तो कभी निभाया नहीं पर अब ऐसी बातें कहकर वो यह भी प्रदर्शित कर रहे हैं कि, उनके मन में देश और देश के उत्थान के प्रति कितनी स्वीकार्यता है। राहुल गांधी विपक्ष का धर्म भूल चुके हैं, कथित युवा नेता तो शायद यह याद नहीं कि यूपीए शासन में भी सरकार का विरोध होता था पर वो मर्यादित और देश कैसे प्रभावित उसको देखते हुए होता था। वहीं 2014 के बाद तो, झटका खाकर विपक्ष में आई कांग्रेस ने तो विरोध की परिभाषा ही बदल दी। सरकार जो योजना भी लाती है कांग्रेस और तमाम विपक्षियों ने धड़्डले से उसका विरोध किया, क्यों? पता नहीं बस पीएम नरेंद्र मोदी नेतृत्व वाली एनडीए सरकार लाई है तो उसका विरोध करना कांग्रेस का जन्मसिद्ध अधिकार है।

न जाने कौन सा पाठ पढ़कर राहुल गांधी ने राजनीति में प्रवेश रखा। संसदीय प्रणाली की इज़्ज़त नहीं करना, संवैधानिक निर्णयों की इज़्ज़त नहीं करना, करोड़ों देशवासियों द्वारा चुनी गई सरकार के निर्णयों पर आक्षेप लगाना यह दर्शाता है कि राहुल गांधी आज भी यूपीए वाला वो राज चाहते हैं जहाँ नीतियां कागज़ों पर होती हैं और कागज़ों में ही सिमटकर रह जाती थीं। उन्हें रास नहीं आ रहा है कि यह कैसा भारत हो गया है जहाँ अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति तक भी सरकार और उसकी जनहित वाली योजनाएं पहुँचने के साथ ही लोग उससे लाभान्वित भी हो रहे हैं।

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राहुल गांधी सरीके नेताओं और उनकी पार्टी की सरकार के प्रति खुन्नस, कुर्सी से दूर रहने की कसक, 10 जनपथ ने सरकार न चलने की पीड़ा, वेदना निश्चित रूप से देश के लिए घातक होने वाली है। समय है कि मर्यादा का उसी ढंग से पालन हो जैसे यूपीए सरकार में होता था। विपक्ष एक दायरे में रहकर विरोध करता था, मुद्दों पर राजनीति होती थी और देश की बात होती थी पर यहाँ देश के नाम पर अपनी करुणा का विधवा विलाप होता है। मोदी विरोध की पट्टी लगाए टूरिज्म विशेषज्ञ राहुल गांधी एक बार फिर एक्टिव हो गए हैं और “अग्निपथ” योजना को कोसने में लगे हैं। थोड़े दिन की बात है उबाल शांत होगा और निकल पड़ेंगे वनविहार कार्यक्रम पर किसी भी देश में।

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