नसीरुद्दीन शाह के लिए ‘काल्पनिक’ घटना है कश्मीरी हिंदुओं की प्रताड़ना और पलायन

इनके रग-रग में भरा पड़ा है जहर!

नसीरुद्दीन शाह कश्मीर फाइल्स

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भारत जैसे देश में रहने से डरने वाले लोगों को अब भारत के इतिहास में भी त्रुटि और काल्पनिक सत्य अधिक दिखने लगे हैं। बॉलीवुड के बी ग्रेड से भी नीचे के किरदारों के रूपांतरण के लिए जो चेहरा मशहूर है वो है नसीरुद्दीन शाह। अपने से कम उम्र की अदाकाराओं के साथ फ़िल्में करना जिस अभिनेता की विचित्र ‘फेटिश’ रही हो, अपने मित्र अभिनेता और साथी कलाकारों से कट्टरपंथी सोच के कारण मैत्री तोड़ लेने जैसा बचपना जिस अभिनेता में हो, अपने से वरिष्ठ और दिवंगत सुपरहिट अभिनेताओं को कोसना जिसका काम रहा हो ऐसे अभिनेता जब वास्तविकता को काल्पनिक कहें तो एक बार के लिए मुंगेरी लाल पर भरोसा करना सुलभ लगे पर ऐसे “झूठ्ठे” पर विश्वास करना बिल्कुल नहीं!

अब बात ही कुछ ऐसी है कि आज न चाहते हुए भी आपको ऐसे अभिनेता और उसकी घृणित सोच से दोचार कराना पड़ रहा है, जिस व्यक्ति को देश में रहने से डर लगता है। सहिष्णु और असहिष्णुता पर नौटंकी करने वाले नसीरुद्दीन शाह ने एक बार पुनः नीचता की पराकाष्ठा पार कर दी है। इस वर्ष मार्च माह में सिनेमाघरों में रिलीज हुई विवेक अग्निहोत्री द्वारा निर्देशित फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ ने बॉक्स ऑफिस पर अपने प्रदर्शन से सभी को चौंका दिया था। लॉकडाउन के बाद रिलीज़ हुई यह पहली ऐसी फिल्म बनी जिसने कई रिकॉर्ड तोड़ दिए। जिस फिल्म का अत्यधिक प्रचार नहीं किया गया था, स्वयं जनता उसके प्रचार में उतर गई क्योंकि फिल्म की वास्तविकता कटुसत्य से लबरेज़ थी। वो सत्य जो पिछली सरकारें और कट्टरपंथियों को पोसने वाले तत्व आजतक समूचे भारत से छिपाते रहे थे, कश्मीरी पंडितों और उनके जैसे अनेकों हिन्दुओं ने जो यातनाएं झेली उसे कट्टरपंथियों के हिमायती लोगों ने देश के सामने नहीं आने दिया था।

ऐसे में जब “द कश्मीर फाइल्स” के माध्यम से यह सच्चाई देश के सामने लाई गई तब एक मुल्ला-मौलवी या किसी फतवा एक्सपर्ट ने चूं तक नहीं की, क्योंकि उसमें सत्यता थी, आधार थे, असल वास्तविकता थी। पर इसी बीच मीडिया लाइमलाइट के भूखे नसीरुद्दीन शाह, मूवी रिलीज़ के लगभग 90 दिनों बाद जागे और फड़फड़ाकर मूवी की आलोचना करते हुए कहा कि यह फिल्म ‘कश्मीरी हिंदुओं की पीड़ा का ‘काल्पनिक संस्करण’ था। शाह ने यह भी कहा कि “सरकार फिल्म का प्रचार कर रही है।” चूंकि फिल्म का प्रचार हर ओर सरकार, दर्शकों और सभी तबकों द्वारा किया जा रहा था जिस कारण कट्टरपंथी-जिहादियों का असल चरित्र बाहर आ रहा था यह नसीरुद्दीन शाह को बर्दाश्त नहीं हुआ। यही कारण रहा जो कुंठा निकालने भी वो उस चैनल पर गए जहां उन्हें यह कहने के लिए बाद में सम्मानित भी किया गया हो तो कोई बड़ी बात नहीं होगी!

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इतनी कुंठा लाते कहां से हो?

ज्ञात हो कि मार्च 2022 में रिलीज़ हुई यह फिल्म 1990 के दशक की शुरुआत में कश्मीर में पलायन पर आधारित थी। हाल ही में, वरिष्ठ अभिनेता नसीरुद्दीन शाह ने फिल्म के बारे में बात की, वह उन अभिनेताओं और फिल्म निर्माताओं के बारे में बात कर रहे थे जो राष्ट्रवादी प्रयोजनों में भाग ले रहे थे। इसी बीच, निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने साक्षात्कार में शाह द्वारा नरसंहार के बारे में बात करने के नतीजों के बारे में बोलते हुए एक अंश साझा किया। ट्वीट में अग्निहोत्री ने लिखा कि “मैं इससे सहमत हूं। अपने ही देश में कश्मीरी हिंदू नरसंहार के बारे में बात करने के लिए आपको वास्तव में गाली दी जाती है और दंडित किया जाता है।”

अब यह बात भी ठीक है कि उम्र के इस पड़ाव में सठिया जाना कोई बड़ी बात नहीं है, सच्चाई को सुनना और देख पाना बड़ा कठिन होता है। अब जितना दुःख हिन्दुओं को ‘द कश्मीर फाइल्स’ देखकर हुआ उससे बड़ा दुःख तो नसीरुद्दीन शाह जैसे कट्टरता पाले बैठे घर के भेदियों को हुआ, क्योंकि जिहादियों का असली चरित्र जो बाहर आ गया। ऐसे लोगों की सच्चाई सामने आई तो नसीरुद्दीन शाह के अनुसार वो काल्पनिक और जो दर्द कश्मीरी परिवार आज भी झेल रहे हैं उनका क्या? फर्क साफ़ है कि नसीरुद्दीन शाह को जिहादियों के नाम की अपनी चूड़ियां तोड़नी थी ऐसे में वो कथित रूप से प्रख्यात चैनल पर यह भी कर आएं, जहां उन्हें विष उगलने की पूरी आज़ादी मिल गई, बाकी देश में तो आज भी उन्हें, उनकी पत्नी और उनके बच्चों को खतरा ही महसूस होता है। ऐसी तुच्छ सोच वालों के अनुसार हर जन्म में उनके लिए कश्मीरी पंडितों का पलायन और नरसंहार ‘काल्पनिक’ ही लगेगा।

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