तीस्ता सीतलवाड़ पर कानून ने प्रहार क्या किया, भाजपा ने दोनों हाथों से अवसर लपकते हुए उन सभी लोगों पर आक्रामक होना प्रारंभ कर दिया, जिन्होंने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से गुजरात दंगों के नाम पर खूब मलाई जमाई। इसी परिप्रेक्ष्य में भाजपा ने ये भी आरोप लगाया कि तीस्ता अकेली नहीं थी, उनपर सोनिया गांधी और कांग्रेस की ‘विशेष कृपा’ थी, जिसकी जांच होनी चाहिए।
भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा के अनुसार, “शीर्ष अदालत ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया है कि अपने छिपे मंसूबों को पूरा करने के लिए दंगे के मामले को जिंदा रखने हेतु जो जिम्मेदार हैं, उनमें से एक तीस्ता भी हैं। अदालत के अनुसार प्रक्रिया का दुरुपयोग करने वाले सभी लोगों को कठघरे में खड़ा करने की आवश्यकता है। तीस्ता और उनके एनजीओ ने कथित रूप से कुछ दंगा पीड़ितों के साथ कुछ बुरे सुलूक की कुछ ऐसी भयावह कहानी गड़ी थी, जो बाद में गलत साबित हुई।”
परंतु वे वहीं पर नहीं रुके। उन्होंने कांग्रेस को निशाने पर लेते हुए कहा, “कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग (UPA) सरकार ने विशेषकर तीस्ता के एनजीओ को 1.4 करोड़ रुपये दिए थे। इस धन का उपयोग मोदी के विरुद्ध अभियान चलाने और भारत को बदनाम करने के लिए किया गया। इस अभियान के पीछे तीस्ता अकेली नहीं थी। सोनिया गांधी और कांग्रेस तीस्ता के पीछे थे। तीस्ता नेशनल एडवाइजरी काउंसिल की भी सदस्य थी, जिसकी अध्यक्ष सोनिया गांधी थी।”
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तीस्ता का कांग्रेस कनेक्शन
अब तीस्ता सीतलवाड़ नेशनल एडवाइज़री काउंसिल से कितनी जुड़ी हुई थी, ये तो वाद विवाद का विषय हो सकता है, परंतु जिसके पुरखों ने जलियांवाला बाग में इकट्ठा हुए हजारों निर्दोषों के हत्यारों को क्लीन चिट दिलवाई हो, जिसके पुरखों में से एक भारत के सर्वप्रथम अटर्नी जनरल एमसी सीतलवाड़ हों और जिसके संबंध हर्ष मंदर जैसे शहरी नक्सलियों से हों, वह वामपंथ और तुष्टीकरण के पक्ष में न हो, ऐसा हो सकता है क्या?
इसके अतिरिक्त आप एक बात और भूल रहे हैं – 2002 से 2014 तक, नेशनल एडवाइज़री काउंसिल में एक अदृश्य शक्ति भी थे, जो पर्दे के पीछे से पूरे सिस्टम की देखरेख कर रहे थे। यूं कहिए कि सामने तो मनमोहन सिंह थे, परंतु चालक थे अहमद पटेल, जिनपर सोनिया गांधी की विशेष कृपा थी और इन्हीं की कृपा से तीस्ता से लेकर बरखा, राणा, शेखर जैसे अनंत वामपंथियों को अपना फन फैलाने का अवसर मिला। वे स्वयं गुजरात में एक मक्खी नहीं मार पाए, परंतु झूठे नैरेटिव का महोदय ने जो मकड़जाल फैलाया, उसे तोड़ने में भी अच्छे अच्छों के पसीने छूट गए। ऐसे ही नहीं तीस्ता जैसे दो कौड़ी के पत्रकार वर्षों तक नरेंद्र मोदी के नाक में दम करने योग्य हुए थे।
अब तीस्ता सीतलवाड़ के पापों की सूची अनंत है। उन्होंने 2002 में फादर सेडरिक प्रकाश, पत्रकार अनिल धारकड़, नाट्यकार विजय तेंदुलकर एवं एलीक पदमसी, गीतकार जावेद अख्तर एवं अभिनेता राहुल बोस के साथ मिलकर Citizens of Justice and Peace नामक संस्था प्रारंभ की। ये वही Citizens of Justice and Peace हैं, जिन्होंने लगभग 12 वर्षों तक नरेंद्र मोदी को बिना किसी ठोस आधार के अमेरिका में घुसने तक नहीं दिया था, केवल इसलिए क्योंकि गुजरात के दंगे उनके शासनकाल में हुए थे।
यदि आपको लगता है कि शेहला राशिद, राणा अय्यूब, साकेत गोखले ने अपनी विचारधारा के नाम पर अनुयाइयों से लाखों करोड़ों ठगे, तो आप निस्संदेह भ्रम में हैं। तीस्ता सीतलवाड़ की Citizens of Justice and Peace ने जिस प्रकार से गुलबर्ग सोसाइटी और बेस्ट बेकरी पर ‘अल्पसंख्यकों के न्याय’ के नाम पर धन और संख्याबल के सहारे नरेंद्र मोदी को झुकाने का प्रयास किया, उससे तो आश्चर्य होता है कि इन्हें नोबेल पुरस्कार क्यों नहीं मिला क्योंकि इन्हीं आधारों पर ‘शांति की प्रतिमूर्ति’ मलाला यूसुफजाई को भी तो पुरस्कार मिला है न?
हर एक का हिसाब होगा
परंतु अब प्रश्न तो ये भी उठते हैं कि जितने पैसे इन महोदया ने खाए हैं वो गए कहां? स्वयं वामपंथी शिरोमणि BBC की मानें, तो तीस्ता ने उन रुपयों का जमकर दुरुपयोग किया। वर्ष 2015 की एक रिपोर्ट के अनुसार, “गुलबर्ग सोसाइटी में रहने वाले कुछ लोगों का आरोप है कि तीस्ता ने गुलबर्ग सोसाइटी में एक म्यूज़ियम बनाने के लिए विदेशों से लगभग डेढ़ करोड़ रुपये जमा किए लेकिन वे पैसे उन तक कभी नहीं पहुंचे। जनवरी 2014 में तीस्ता, उनके पति जावेद आनंद, एहसान जाफ़री के पुत्र तनवीर जाफ़री और दो अन्य के विरुद्ध अहमदाबाद क्राइम ब्रांच में एफ़आईआर दर्ज की गयी। जांच के बाद पुलिस ने दावा किया कि तीस्ता और जावेद ने उन पैसों से अपने क्रेडिट कार्ड के बिल चुकाये।”
उसी रिपोर्ट में आगे ये भी बताया गया कि सीबीआई ने उन दोनों के विरुद्ध एफ़आईआर दर्ज कर उनके ज़रिए चलाए जा रहे दो एनजीओ ‘सबरंग ट्रस्ट’ और ‘सिटीजन्स फ़ॉर जस्टिस एंड पीस’ के दफ़्तरों पर छापे मारे हैं। लेकिन सीबीआई का केस भी उसी एक आरोप पर आधारित है कि उन्होंने म्यूज़ियम बनाने के लिए पैसे लिए और उनका ग़लत इस्तेमाल किया। इसी वर्ष मार्च में गुजरात सरकार ने केंद्रीय गृहमंत्री को एक पत्र लिखकर तीस्ता और उनके पति जावेद आनंद के एनजीओ की जांच करने की अपील की थी।
गुजरात सरकार का आरोप है कि अमेरिका स्थित फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन से तीस्ता ने अपने एनजीओ के लिए जो पैसे लिए उनका इस्तेमाल उन्होंने सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ने और विदेशों में भारत की छवि ख़राब करने के लिए किया। गुजरात सरकार के पत्र के केवल एक सप्ताह बाद गृह मंत्रालय ने फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन को निगरानी सूची में डाल दिया। परंतु अब जब भाजपा ने इस ओर अपनी दृष्टि घुमाई है और इस बात को प्रकाश में लाया है तब से जिस प्रकार से गुजरात पुलिस ने तीस्ता सीतलवाड़, आरबी श्रीकुमार जैसे लोगों के विरुद्ध एक्शन लिया है, उससे आशा है कि शीघ्र ही हर उस व्यक्ति के विरुद्ध एक्शन लिया जाएगा, जिन्होंने अपने असत्य के मकड़जाल के कारण हर उस व्यक्ति का जीवन नरक बना दिया, जिन्होंने गुजरात को 2002 में नर्क में परिवर्तित से रोकने का प्रयास किया था।
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