…फिर आई कर्णम मल्लेश्वरी और एक झटके में इतिहास रच दिया

कहानी कर्णम मल्लेश्वरी की।

कर्णम मल्लेश्वरी ओलिंपिक में भार उठाते हुए

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मीराबाई चानू ने टोक्यो ओलंपिक (2020) में भारत के लिए रजत पदक जीता था, लेकिन क्या आप जानते हैं कि वो वेटलिफ्टिंग में भारत के लिए पदक जीतने वाली पहली महिला नहीं हैं। मीराबाई चानू से लगभग 20 वर्ष पहले वेटलिफ्टिंग में कर्णम मल्लेश्वरी ने कांस्य पदक जीता। कर्णम मल्लेश्वरी ओलंपिक कांस्य पदक जीतने वाली प्रथम भारतीय महिला बनी। यह एक दुर्लभ उपलब्धि थी क्योंकि इससे पहले कोई भी भारतीय महिला ओलंपिक में देश के लिए पदक नहीं जीत सकी थी।

कहानी है साल 2000 में सिडनी में खेल गए ओलंपिक खेलों की जिसमें भारत से 65 खिलाड़ी ओलंपिक के लिए निकले। इन खिलाड़ियों में 44 पुरुष और 21 महिला खिलाड़ी थी। ओलंपिक खेल 15 सितंबर से शुरू हुए और इस बार ओलंपिक के खेलों में भारत का खाता चौथे दिन ही खुल गया, जब 19 सितंबर, 2000 में महिलाओं के 69 किलो ग्राम कैटेगरी में वेटलिफ्टिंग में कांस्य पदक जीतकर कर्णम मल्लेश्वरी ने इतिहास रच दिया।

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कर्णम मल्लेश्वरी की कहानी

आंध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम के एक छोटे से गांव में जन्मी कर्णम के परिवार में शायद किसी ने नहीं सोचा होगा कि एक दिन ये लड़की सिर्फ उनका ही नहीं बल्कि पूरे भारत का नाम रोशन करेगी। सिर्फ 12 साल की छोटी-सी उम्र से कर्णम ने नल्लामशेट्टी अप्पन्ना के मार्गदर्शन में वेटलिफ्टिंग सीखना शुरू किया।

कर्णम की बड़ी बहन शादीशुदा थी और दिल्ली में रहती थी। कर्णम को और बेहतर ट्रेनिंग मिल सके और वो एक बेहतरीन खिलाड़ी के रूप में उभर सकें इसलिए वह भी अपनी बहन के पास दिल्ली आ गईं।

जब 1990 में कर्णम अपनी बड़ी बहन के साथ बैंगलोर कैंप में गईं तो वहां अर्जुन अवॉर्ड से सम्मान्नित चीफ नेशनल कोच श्यामलाल सालवन की पारखी नज़र उन पर पड़ी। बस यहीं से खेलों के लिए कर्णम के दिल में प्यार और जूनून दोनों जागे और उन्होंने ट्रेनिंग में जी जान लगा दी। चार साल के कठोर परिश्रम के बाद कर्णम 54 किलो ग्राम वर्ग में वेटलिफ्टिंग वर्ल्ड चैंपियन बनी।

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करियर पर एक नज़र

कर्णम मल्लेश्वरी ने 1994 और 1995 में 54 किलो ग्राम वर्ग में विश्व खिताब जीता और 1993 और 1996 में तीसरे स्थान पर रही। 1994 में उन्होंने इस्तांबुल में हुई विश्व चैंपियनशिप में रजत जीता और 1995 में उन्होंने 54 किलोग्राम वर्ग में कोरिया में एशियाई वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप जीती। उस वर्ष उन्होंने विश्व चैंपियनशिप में 113 किग्रा की रिकॉर्ड लिफ्ट के साथ चीन में खिताब जीता। ओलंपिक में अपनी जीत से पहले ही कर्णम मल्लेश्वरी 29 अंतरराष्ट्रीय पदकों के साथ दो बार की वेटलिफ्टिंग विश्व चैंपियन थीं, जिसमें 11 स्वर्ण पदक शामिल हैं।

राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पदकों के साथ कर्णम मल्लेश्वरी को 1994 में अर्जुन पुरस्कार, 1999 में राजीव गांधी खेल रत्न और पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया। 2000 के सिडनी ओलंपिक में, मल्लेश्वरी ने “स्नैच” में 110 किग्रा और “क्लीन एंड जर्क” श्रेणियों में 130 किग्रा कुल 240 किग्रा भार उठाकर चीन के लिन वेनिंग (242.5 किग्रा) और हंगरी के एर्ज़सेबेट मार्कस (242.5 किग्रा) के बाद तीसरा स्थान हासिल किया।

उस दिन भले ही उन्होंने स्वर्ण पदक न जीता हो लेकिन ओलंपिक में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनकर उन्होंने उस दिन इतिहास रच दिया था। वह भारत की उन बेटियों के लिए एक मिसाल बन गईं जो खेल जगत में अपना नाम बनाना चाहती हैं।

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खेलों से दूरी

साल 1997 में कर्णम ने राजेश त्यागी, जोकि उनके साथी वेटलिफ्टर थे, उनसे विवाह कर लिया। साल 2001 में ओलंपिक्स में कांस्य पदक जीतने के ठीक एक वर्ष बाद उन्होंने एक बेटे को जन्म दिया। वर्ष 2002 में एक बार फिर उन्होंने 2002 कामनवेल्थ गेम्स के साथ वापसी करने का फैसला किया लेकिन उनके पिता की बिगड़ती सेहत के कारण उन्होंने अपने कदम पीछे खींच लिए। साल 2004 के ओलंपिक्स में एक बार फिर उन्होंने भाग लिया लेकिन इस बार वह हार गईं। इसके बाद से दोबारा उन्हें वेटलिफ्टिंग के एरीना में नहीं देखा गया।

अब कहाँ हैं कर्णम मल्लेश्वरी

हरियाणा के यमुनानगर में रहने वाली कर्णम Food Corporation of India में चीफ जनरल मैनेजर का कार्यभार संभल रही हैं। जून 2021 को उन्हें दिल्ली सरकार द्वारा स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर के रूप में नियुक्त किया गया।

उस वर्ष ओलंपिक्स में भारत के लिए पदक जीतने वाली कर्णम अकेली खिलाडी थी, लेकिन जो चीज उनकी जीत को सबसे प्रतिष्ठित बनाती है, वह है उस उपलब्धि तक पहुंचने के लिए कठिन बाधाओं को पार करना। कर्णम मल्लेश्वरी उस पीढ़ी की थी जब खेलों में भाग लेना अपने आप में एक उपलब्धि थी लेकिन इस उपलब्धि और खेल पर केवल पुरुष वर्ग का हक़ माना जाता था, लेकिन कर्णम ने इसे धत्ता बता दिया।

तो यह थी कहानी एक ऐसी महिला खिलाड़ी की जिसने भारत के इतिहास में अपना नाम स्वर्णाक्षरों में लिखवा दिया।

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