भारत के न्यायिक मामलों में हस्तक्षेप करने वाले ‘विदेशियों’ को रोकने के लिए एक कानून होना चाहिए

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि ख़राब करते हैं ‘एजेंडाधारी’!

Teesta Setalvad

SOURCE GOOGLE

24 जून को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 2002 के गुजरात दंगों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विशेष जांच दल (एसआईटी) द्वारा दी गयी क्लीन चिट को बरकरार रखा। साथ ही यह भी सामने आया कि किस तरह तीस्ता सीतलवाड़ दंगे से पीड़ित लोगों की भावनाओं का इस्तेमाल तनाव पैदा करने और व्यक्तिगत प्रतिशोध के लिए करने की कोशिश कर रहीं थी। इसके अलावा उन्हें 2002 के दंगों के नाम पर विदेशी चंदा भी मिला है जिसका इस्तेमाल उन्होंने अपने निजी कामों के लिए किया है। कुछ इस तरह के आरोप लगते हैं।

तीस्ता को गिरफ्तार किया गया

गुजरात दंगों के बारे में झूठे दावे करके सनसनी पैदा करने के आरोप में तीस्ता को गुजरात आतंकवाद विरोधी दस्ते [एटीएस] गुजरात पुलिस ने गिरफ्तार किया और 26 जून को मुंबई से अहमदाबाद लाया गया और इसी के साथ वह एक बार फिर मीडिया की सुर्खियों में लौट आयी हैं।

सीतलवाड़ की लोकप्रियता का पता तब चला जब उन्हें हिरासत में लिए जाने के तुरंत बाद ही एक के बाद एक ट्वीट आने लगे। इसमें केवल भारत के लिबरल ही नहीं बल्कि कई ऐसे विदेशी भी थे जिन्हें स्वयं के देश से अधिक दिलचस्पी भारत में है क्योंकि यहां सरकार और देश की कानून व्यवस्था के विरुद्ध अंग्रेजी भाषा में किए गए ट्वीट उन्हें लिबरलों के बीच प्रिय बनाते हैं। ऐसा अवसर हाथ लगते ही इन अवसरवादियों ने देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं पर एक समन्वित हमला शुरू केर दिया।

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार रक्षकों (एचआरडी) पर विशेष दूत मैरी लॉलर ने कहा, “गुजरात पुलिस के आतंकवाद विरोधी दस्ते द्वारा डब्ल्यूएचआरडी तीस्ता सीतलवाड़ को हिरासत में लिए जाने की खबरों से चिंतित हूं। तीस्ता नफरत और भेदभाव के खिलाफ एक मजबूत आवाज हैं। मानवाधिकारों की रक्षा करना कोई अपराध नहीं है। मैं उनकी रिहाई और भारतीय राज्य द्वारा उत्पीड़न को समाप्त करने का आह्वान करती हूं।”

और पढ़ें- तीस्ता सीतलवाड़ के “सोनिया गांधी कनेक्शन” की अवश्य जांच होनी चाहिए

एमनेस्टी इंटरनेशनल की स्थानीय शाखा, एमनेस्टी इंडिया भी मैदान में कूद पड़ी और ट्वीट कर कहा कि “प्रमुख मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ को भारतीय अधिकारियों द्वारा हिरासत में लेना उन लोगों के खिलाफ सीधा प्रतिशोध है जो उनके [भारत] मानवाधिकार रिकॉर्ड पर सवाल उठाने की हिम्मत करते हैं। यह नागरिक समाज को एक बुरा संदेश भेजता है और देश में असंतोष पैदा करता है.

ये अंतरराष्ट्रीय समीक्षक जो सर्वजगत और विशेषकर भारत में मानवाधिकारों और कानून के रक्षक होने का दावा करते हैं वास्तव में उनके शब्दों के पीछे का अर्थ कुछ और ही है। वे न केवल भारत जैसे एक लोकतान्त्रिक देश के उच्च न्यायलय के संवैधानिक अधिकार को चुनौती देते हुए भारत के क़ानून व्यवस्था पर प्रश्न उठाते हैं बल्कि वे एक अपराधी को बचाने की कोशिश भी कर रहे हैं, जिसने लगातार 16 साल तक न केवल एक निर्दोष जन प्रतिनिधि को परेशान किया है बल्कि देश की स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम पर प्रश्न खड़े करते हुए पुलिस और न्यायपालिका का समय जानबूझकर बर्बाद किया गया।

हालांकि भारत के कानून व्यवस्था में इनके हस्तक्षेप की यह पहली घटना नहीं है। आपने राणा अय्यूब के बारे में तो सुना ही होगा। वह भी लिबरलों की चहेती हैं और फरवरी में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने उन्हें विशेष बातचीत के लिए समन भी भेजा था जिसमें ईडी केवल इतना जानना चाहती थी कि अय्यूब ने राहत कार्य के नाम पर ऑनलाइन क्राउड फंडिंग प्लेटफॉर्म केटो के माध्यम से भारी मात्रा में धन एकत्र किया, फिर उस धनराशि को राहतकार्य में खर्च करने के बजाये अपने पिता और बहन के अकाउंट में क्यों भेजा।

और पढ़ें- बॉम्बे कोर्ट ने राणाओं के खिलाफ देशद्रोह के आरोपों को खारिज कर ठाकरे सरकार को दिखाया आईना

राणा के लिए तो बाहर से भी ट्वीट आए

राणा की पहुंच शायद काफी ऊपर तक थी इसलिए उनके लिए भारत विरोधी ट्वीट यूएन जिनेवा ने भेजा जिसमें कहा गया कि “पत्रकार @RanaAyyub के विरुद्ध अथक महिला विरोधी और सांप्रदायिक हमलों की #भारतीय अधिकारियों द्वारा तुरंत और पूरी तरह से जांच की जानी चाहिए और उसके खिलाफ न्यायिक उत्पीड़न को तुरंत समाप्त किया जाना चाहिए।”

हालांकि उस समय भारत शांत नहीं बैठा था बल्कि भारत ने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि “तथाकथित न्यायिक उत्पीड़न के आरोप निराधार और अनुचित हैं। भारत कानून के शासन को कायम रखता है लेकिन यह भी उतना ही स्पष्ट है कि कोई भी कानून से ऊपर नहीं है। भ्रामक कहानी को आगे बढ़ाना @UNGeneva की प्रतिष्ठा ही कलंकित करता है.”

ऐसे और भी कई किस्से हैं जब इन विदेशी समीक्षकों ने भारत के क़ानून व्यवस्था और न्याय प्रक्रिया पर सवाल खड़े किए दोषियों को बचाने और ‘निर्दोष को छोडो’ जैसे अभियान ट्विटर पर चलाये हैं।

अब समय आ गया है कि अब भारत देश की स्वतंत्रता और अखंडता बनाये रखने के लिए इन मानवाधिकार के झूठे और दोगले विदेशी समीक्षकों के लिए एक ऐसा कानून बनाये जो भारत के आंतरिक न्यायिक मामलों में विदेशी हस्तक्षेप को प्रतिबंधित करे। अब एक ऐसा कानून तैयार करने का समय है जो ऐसे विदेशी निकायों की राय और तर्क को सीमित करे जो देश और इसकी न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को धूमिल कर सकते हैं।

TFI का समर्थन करें:

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें।

Exit mobile version