आप सभी इन दिनों बंगाल का हाल देख ही रहे है कि किस तरह से हिंसा की आग में बंगाल जल रहा है और पिछले कुछ दिनों का सत्य यही है ‘आग लगे बस्ती में, बंगाल सरकार अपनी मस्ती में’। पिछले सप्ताह देश के कई हिस्सों में काफी तनावपूर्ण माहौल रहा है। कारण था की भाजपा पार्टी की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा ने पैगम्बर मुहम्मद को लेकर एक टिपण्णी की थी जिसके विरोध में देशभर का मुस्लिम समुदाय भड़क उठा। इस विरोध में दंगे हुए जिसमें सार्वजानिक संपत्ति को भारी नुक्सान पहुँचाया गया। देश में कई शहरों में दंगे हुए लेकिन राज्य सरकारों ने स्तिथि पर जल्द ही नियंत्रण पा लिया और दोषियों को पकड़कर उन्हें सज़ा देना भी शुरू कर दिया। हालाँकि बंगाल की सरकार तो मानो जैसे आँखों पर पट्टी बाँध कर बैठी थी। उसे न दंगे दिखाई दिए न ही दंगे से पीड़ितों की आवाज़ें और चीखें सुनाई दीं।
जहाँ राज्य में पुलिस स्टेशन जलाये जा रहे थे, ट्रैन पर हमले किये जा रहे थे, पुलिस पर प्रहार हो रहा था और विरोध के नाम पर आम जनता के साथ आगजनी, लूटपाट जैसे घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा था, जहाँ शांतिपूर्ण विरोध के नाम पर किसी के सर काटने की मांग की जा रही थी वहीं बंगाल की सरकार तो मानो जैसे कानों में हैडफ़ोन लगाकर आतिफ असलम के रोमांटिक गाने सुन रही थी। हर तरफ डर और आतंकित करने वाला माहौल छाया हुआ था, राज्य में असहिष्णुता अपने चरम पर थी लेकिन ममता जी का बयान था कि ‘बंगाल में सब अच्छा है।’
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उपद्रवियों पर अभी तो कोई कार्रवाई नहीं
रिपोर्ट के अनुसार नादिया जिले में जुलूस निकालने वाले प्रदर्शनकारियों के एक समूह ने स्थानीय रेलवे स्टेशन पर पथराव किया और एक ट्रेन को क्षतिग्रस्त कर दिया। नादिया पुलिस ने हमले और हिंसा पर कोई टिप्पणी नहीं की जो कि जाहिर सी बात है ऊपर से आए आदेशों का पालन करते हुए उन्हें चुप रहना होगा। हालांकि, एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि प्रदर्शनकारियों ने पथराव के दौरान कई दुकानों को भी क्षतिग्रस्त कर दिया। मुर्शिदाबाद जिले के शक्तिपुर में आगजनी और कुछ घरों पर हमले की घटनाएं हुईं, और प्रदर्शनकारियों के बेलडांगा पुलिस स्टेशन पर पथराव करने की खबरें भी सामने आई।
हालात बद से बदतर होते देख भाजपा इकाई के प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार के नेतृत्व में राज्य भाजपा नेताओं ने कोलकाता के मैदान में गांधी प्रतिमा के पास धरना प्रदर्शन शुरू किया। उनका सवाल और मांग केवल एक थी, “हिंसा से निपटने में राज्य सरकार की अक्षमता पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अर्धसैनिक बलों को क्यों नहीं बुला रही हैं?” हिंसक प्रदर्शन इतना बढ़ गया कि कोलकाता की उच्च अदालत को भी इसमें हस्तक्षेप करना पड़ा। कोर्ट ने कहा, ‘‘यदि राज्य की पुलिस किसी भी स्थान पर स्थिति को नियंत्रित करने में असफल रहती है तो प्राधिकारी तत्काल कदम उठाते हुए केंद्रीय बलों को बुलाएं।’’
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बंगाल मे हालत बद से बदतर हो गए है लेकिन सरकार का रवैया वही
अगर न्यायालय के आदेश को आसान शब्दों में कहा जाये तो उनका कहना था, “अगर आप ये हिंसा रोक पाने में असमर्थ है तो केंद्रीय बलों को बुला लें। वे बेहतर और उचित निर्णय लेकर हालातों को जल्द से जल्द सामान्य कर पाने में सक्षम होंगे।” ममता बनर्जी तो जैसे उच्च न्यायालय से फटकार का ही इंतजार कर रही थीं क्योंकि उसी के बाद उनकी सरकार हरकत में आई और पुलिस बल को आखिरकार लोगों को हिरासत में लेने के आदेश जारी किये गए। हालाँकि यह कह पाना मुश्किल है कि हिरासत में लिए गए कितने लोग दोषी हैं क्योंकि इन्हीं दंगों के दौरान जारी एक वीडियो में मुस्लिम पक्ष को कहते हुए सुना गया था कि “हमने ही ममता दीदी को बंगाल की कुर्सी पर बैठाया है। वह हमें कुछ नहीं कर सकती।”
ऐसे बयानों और परिस्थितियों को देखकर लगता है की समय आ गया है कि बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू कर ही दिया जाये। राष्ट्रपति शासन तब लगाया जाता है जब किसी राज्य में ऐसी स्थति उत्पन्न हो जाती है जिसे नियंत्रित करने में राज्य सरकार असफल रहती है तो उस परिस्थति में वहां पर राष्ट्रपति शासन की आवश्यकता पड़ती है। फिर जब संसद के दोनों सदन से उस घोषणा को स्वीकृति प्रदान हो जाती है, तो उस राज्य में अगले छह महीने के लिए राष्ट्रपति शासन लागू हो जाता है।
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पिछले कुछ समय से बंगाल में हिंसा अपने चरम पर पहुँचती दिख रही है। बात चाहे तृणमूल पार्टी के जीतने के बाद हुए दंगों की हो या फिर दुर्गा पूजा के दौरान किये गए हमलों की, बंगाल सरकार सख्त कदम लेने में हताश नज़र आई है और स्थिति को भांपकर उसे नियंत्रित करने का उनका प्रदर्शन निराशाजनक और शंकास्पद रहा है। अब समय आ गया है कि बंगाल में राष्ट्रपति शासन लागू कर ही दिया जाये ताकि वहां कि जनता को कोई ऐसा नेता मिले जो उनकी सुरक्षा सुनिश्चित कर सके ।
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