कैसे एक कॉफी बीन बेचने वाली ‘दुकान’, विश्व की सबसे बड़ी कॉफी विक्रेता कंपनी बन गई?

Starbucks की सफलता की इनसाइड स्टोरी।

Starbucks

Source: VOX

स्टारबक्स (Starbucks) का नाम आपने ज़रूर सुना होगा। अगर नहीं सुना होगा तो कहीं ना कहीं पढ़ा होगा। किसी शहर में- किसी सड़क पर- किसी मॉल में कहीं ना कहीं आपने ज़रूर स्टारबक्स (Starbucks) लिखा देखा होगा। स्टारबक्स एक बहुराष्ट्रीय कॉफी कंपनी है। यह कंपनी लोगों को कॉफी पिलाती है। नवंबर, 2021 तक के आंकड़ों के अनुसार दुनियाभर के 80 देशों में स्टारबक्स के 33,833 स्टोर हैं। अकेले अमेरिका में स्टारबक्स के 15,444 स्टोर हैं।

कहते हैं कि स्टारबक्स ने अमेरिका को कॉफी पीना सिखाया और अब स्टारबक्स पूरी दुनिया को कॉफी पीना सिखा रहा है। 1971 में तीन दोस्तों ने मिलकर अमेरिका में कॉफी बीन की कंपनी की शुरुआत की। वही कॉफी बीन कंपनी आज पूरी दुनिया का सबसे बड़ा कॉफी हाउस स्टारबक्स है। तो चलिए, आज आपको बताते हैं कि आखिरकार स्टारबक्स ने इतनी बड़ी सफलता कैसे प्राप्त की। इस सफलता के पीछे कौन-सा मंत्र है?

स्टारबक्स के ‘अच्छे दिन’

अमेरिका में जब तीन दोस्त कॉफी बीन की कंपनी चला रहे थे, उस वक्त उसी कंपनी में मैनेजिंग मार्केटर (Managing Marketer) थे हावर्ड शुल्ट्ज (Howard Schultz)- एक दिन हावर्ड शुल्ट्ज इटली गए। इटली में उन्होंने देखा कि एक कॉफी कैफे है। लोग वहां कॉफी पीने ही नहीं आते हैं बल्कि सुकून भरे पल बिताने भी आते हैं। घर और ऑफ़िस से दूर तीसरे स्थान पर बातचीत करने आते हैं। हावर्ड शुल्ट्ज को यह तरीका भा गया।

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वो वापस अमेरिका लौटे और उन्होंने कंपनी की बोर्ड मीटिंग में स्टारबक्स को कॉफी हाउस में बदलने और इसकी फ्रेंचाइजी खोलने का प्रस्ताव रखा। हालांकि उस वक्त शुल्ट्ज इसमें सफल नहीं हुए। बाद में शुल्ट्ज ने स्टारबक्स को खरीद लिया। कंपनी खरीदने के बाद हावर्ड शुल्ट्ज ने वो करना शुरु किया जो वो करना चाहते थे।

उन्होंने स्टारबक्स को कॉफी हाउस में बदल दिया। स्टारबक्स के आउटलेट बेहतरीन लोकेशन पर खोले गए। स्टारबक्स ने कॉफी बनाने और सर्व करने वाले कर्मचारियों (Barista) को अच्छी तरह से ट्रेनिंग दी। अब स्टारबक्स कॉफ़ी आउटलेट में लोग कॉफी पीने ही नहीं जाते थे बल्कि सुकून भरा वक्त बिताने भी जाते थे। उन्हें बैठने के लिए- बातचीत करने के लिए- गपशप करने के लिए- बेहतरीन जगह मिलती।

इसके साथ ही ऐसे बरिस्ता (Barista) मिलते जो उनसे बहुत ही अच्छे तरीके से व्यवहार करते। वो सिर्फ कर्मचारी बनकर नहीं मिलते और बातचीत करते बल्कि ग्राहकों से दोस्त की तरह व्यवहार करते। स्टारबक्स के बरिस्ता और ग्राहकों की आपस में अच्छी दोस्ती होने लगी। इसे ‘स्टारबक्स एक्सपीरियंस’ कहा जाने लगा। स्टारबक्स की सफलता में ग्राहकों के इस अनुभव ने सबसे बड़ी भूमिका निभाई। देखते-देखते स्टारबक्स दुनियाभर में अपने आउटलेट खोलने लगा। इस पूरे विचार को बेहतरीन तरीके से लागू किया हावर्ड शुल्ट्ज ने।

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इसके साथ-साथ हावर्ड शुल्ट्ज ने कंपनी में और भी कई ऐसे बदलाव किए जिससे लोग अपनी सुबह की कॉफी पीने भी स्टारबक्स जाने लगे। शुल्ट्ज ने कॉफी की क्वालिटी से कभी समझौता नहीं किया। भले ही उसका मूल्य ज्यादा रहा लेकिन उन्होंने उसकी क्वालिटी से समझौता नहीं किया। यही वज़ह थी कि किसी भी देश में कॉफी पीने वाला क्यों ना हो, उसे पता होता था कि स्टारबक्स की कॉफी तो मिल ही जाएगी। कंपनी निरंतर तरक्की करती गई।

स्टारबक्स के ‘बुरे दिन’

स्टारबक्स दुनियाभर में बड़ा कॉफी ब्रांड बनकर काम कर रहा था। ऐसे में 1 जून, 2000 को हावर्ड शुल्ट्ज ने कंपनी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) पद से इस्तीफा दे दिया। उनके इस्तीफा देने के बाद कागजों में स्टारबक्स और ज्यादा तेजी से तरक्की करने लगी। 2007 में कंपनी प्रत्येक दिन 6 स्टोर खोल रही थी।

कंपनी की तरक्की और वृद्धि तो हो रही थी लेकिन कहीं ना कहीं कुछ चीजें सही नहीं चल रही थी। कंपनी की वृद्धि के नशे में डूबा मैनेजमेंट ‘स्टारबक्स एक्सपीरियंस’ के साथ भी समझौता कर रहा था। अब स्टारबक्स के बरिस्ता किसी भी दूसरे कॉफी हाउस की तरह हो गए थे जो बस लोगों को कॉफी सर्व करते थे।

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हावर्ड शुल्ट्ज की वापसी

इसके साथ ही कंपनी ने सेमी-ऑटोमेटिक कॉफी मशीन की जगह फुली-ऑटोमेटिक कॉफी मशीन इस्तेमाल करनी शुरु कर दी। इससे बरिस्ता कम समय में ज्यादा कॉफी तो बनाने लगे लेकिन स्टारबक्स की क्वालिटी ख़त्म होने लगी। स्टारबक्स का स्वाद खत्म होने लगा। ऐसे में धीरे-धीरे स्टारबक्स के ग्राहक दूसरे कॉफी हाउस की तरफ जाने लगे। स्टारबक्स बुरी तरह से पिछड़ने लगी।

स्टारबक्स के स्टोर खाली रहने लगे। कई स्टोर्स पर ताला पड़ गया। स्टारबक्स निरंतर गर्त में जा रही थी। कंपनी की इतनी बुरी स्थिति देखकर हावर्ड शुल्ट्ज से रहा नहीं किया। 7 जनवरी, 2008 को उन्होंने दोबारा से कंपनी में वापसी की। दोबारा से सीईओ का पद संभाला।

हावर्ड शुल्ट्ज के वापसी करने के बाद कंपनी दोबारा से जीवित होने लगी। 2007 में जो सेल्स ग्रोथ 1 फीसदी थी वो 2011 में 9 फीसदी हो गई। कंपनी का लाभ करीब-करीब दोगुना हो गया। दूसरे मोर्चों पर भी कंपनी ने बेहतर करना शुरु कर दिया और देखते-देखते स्टारबक्स दोबारा से सबसे तेजी से तरक्की करने वाली कंपनी बन गई।

ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि हावर्ड शुल्ट्ज ने ऐसा क्या किया जो एक गर्त में जाती हुई कंपनी दोबारा से तरक्की के रास्ते पर लौटने लगी। इसका जवाब एकदम साफ है हावर्ड ने वही किया जिसकी बुनियाद पर उन्होंने स्टारबक्स को खड़ा किया था। स्टारबक्स को दोबारा से स्टारबक्स बनाया।

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हावर्ड फुली-ऑटोमेटिक मशीनों को निकालकर दोबारा से सेमी-ऑटोमेटिक मशीन को स्टोर्स में लेकर आए। इसके साथ ही उन्होंने अपने कर्मचारियों की ट्रेनिंग करवानी शुरु कर दी। ट्रेनिंग कि कैसे बेहतरीन कॉफी बनानी है। कैसे स्टारबक्स वाली कॉफी बनानी है। कंपनी को पुनर्जीवित करने का यह पहला चरण था।

कंपनी की वापसी

इसके बाद शुरु होता है दूसरा चरण। वो चरण था ‘स्टारबक्स एक्सपीरियंस’ का।  कई बार पत्रकारों ने हावर्ड से पूछा कि स्टारबक्स की तरक्की का रहस्य क्या है। इसका जवाब देते हुए शुल्ट्ज कहते थे कि हमारी प्राथमिकता लोग हैं, कॉफी तो उसके साथ जुड़ जाती है। उनके शब्द होते, ‘We are not in the Coffee Business serving People we are in the people business serving Coffee’

इसके साथ ही हावर्ड शुल्ट्ज ने न्यू ऑर्लेअंस (New Orleans) में एक लीडरशिप कॉन्क्लेव बुलाई। यह कोई मामूली स्थान नहीं था बल्कि यह जगह बाढ़ और चक्रवात से बर्बाद हो चुकी थी। हजारों लोगों को यहां मदद की जरूरत थी। ऐसे में स्टारबक्स के 10 हजार कर्मचारियों ने यहां के लोगों की दिन-रात सेवा की।

उनके घरों को दोबारा से बनाया- मैदानों को बनाया- नालियों को साफ किया- ऐसे कई काम उस जगह को दोबारा से अच्छा बनाने के लिए किए। इस एक कार्य से लोगों के दिमाग में एक बार फिर वही संदेश गया कि स्टारबक्स लोगों को सर्व करने वाली कंपनी है। कंपनी को पुनर्जीवित करने का शुल्ट्ज का यह तीसरा और अंतिम चरण था।

इसके बाद जो हुआ वो आपके सामने है। स्टारबक्स दुनिया की सबसे बड़ी कॉफी कंपनी बनकर आज दुनिया के लोगों को कॉफी पिला रही है।

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