84 साल की उम्र में ‘नौकरी’ तलाशने वाले व्यक्ति बने यशवंत सिन्हा

यशवंत सिन्हा का सपना, कहीं सपना ही न रह जाए!

YASHWANT SINHA

SOURCE GOOGLE

अपनी इज्जत अपने हाथ, शायद यह बात वृद्धावस्था के कारण यशवंत सिन्हा समझ नहीं पाए। उनके एक ट्वीट के बाद से ही मीडिया हलकों में उन्हें राष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्ष का उम्मीदवार बनाए जाने की बातें चर्चाओं में थीं। तो वहीं दूसरी ओर उन्हें राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार के रूप में भी चुन लिया गया। लेकिन अब प्रश्न  है कि क्या  84 साल की उम्र में नौकरी तलाश रहे यशवंत सिन्हा को नौकरी मिल पाएगी क्योंकि ध्यान देने वाली बात है कि विपक्ष ने मिलकर यशवंत सिन्हा को उम्मीदवार चुन तो लिया पर  इस राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष की जैसी डांवाडोल स्थिति है ऐसे में उसका एनडीए के सामने टिक पाना बहुत ही मुश्किल जान पड़ता है।

सिन्हा ने टीएमसी को बनाया था ठिकाना

भाजपा के बड़े सफर के बाद बागी हो गए सिन्हा ने टीएमसी को अपना अगला ठिकाना बनाया था, और अब वहां से भी कुछ हासिल न होने पर सिन्हा बड़ी राजनीति और राष्ट्रीय उपयोगिता के लिए टीएमसी छोड़ चुके हैं। अब अपनी उपयोगिता सिद्ध करने के लिए टीएमसी छोड़ तो दी उन्होंने पर वो तो अवसरवाद की राजनीति करना चाह रहे हैं और उसके लिए अब उन्हें एक और नौकरी चाहिए।

कई बैठकों के बाद और कई चेहरों पर मंथन करने के बाद विपक्ष ने अपना राष्ट्रपति उम्मीदवार अंततः सिन्हा को चुन लिया। अब विपक्ष ने भले ही उन्हें चुना हो लेकिन नोकरी खोजने का उनका सिलसिला तो फिर भी चलता ही रहने वाला है क्योंकि इस चुनाव का परिणाम नौकरी पाने के यशवंत सिन्हा के सपने को ध्वस्त करके रख देने वाला है, कम से कम स्थितियां तो यही दर्शा रही हैं।

दरअसल, यशवंत सिन्हा ने मंगलवार सुबह ट्वीट करते हुए लिखा कि “ममता जी ने जो सम्मान मुझे तृणमूल कांग्रेस में दिया,  मैं उसके लिए उनका आभारी हूं। अब समय आ गया है, जब वृहद विपक्षी एकता के व्यापक राष्ट्रीय उद्देश्य के लिए मुझे पार्टी से अलग होना होगा। मुझे यकीन है कि वह (ममता) इसकी अनुमति देंगी।” इससे पहले तो यह पता चला कि भाजपा छोड़ लंबे समय बाद टीएमसी में जाकर भी कुछ हासिल न होने पर सिन्हा ने एक बार फिर से एक और पार्टी छोड़ दी और इस बार इसे जायज ठहराने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अपनी उपयोगिता दिखाने का बहाना दिया।

यशवंत सिन्हा ने टीएमसी छोड़ यह जता दिया कि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा मार्गदर्शक मंडल भेजे जाने के निर्णय को नकार देने वाले यशवंत सिन्हा के हाथ न माया लगी न राम। पार्टी छोड़ने के बाद, पार्टी और पीएम मोदी को कोसने के बाद भी यशवंत सिन्हा को विपक्ष की वो स्वीकृति नहीं मिली जिसकी ओर वो आशान्वित होकर मोदी के विरोध में उतरे थे। ऐसे में बिहार के नेता को बंगाल की पार्टी का नेता बनना पड़ा, इससे बड़ी विडंबना किसी नेता के लिए क्या ही होगी।

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बिहारी बाबू सांसद बने तो बहुत दुःख हुआ

अब जब टीएमसी ने दूसरी ओर एक बिहारी बाबू शत्रुघ्न सिन्हा को सांसद बना डाला तो सिन्हा को और दुःख हुआ कि पार्टी में पहले मैं आया पर मुझे उपचुनाव में तरजीह न देते हुए शत्रुघ्न को वरीयता दी गई। मूल बात यही रही कि टीएमसी में अस्थायी नौकरी का पात्र बनने पर सिन्हा ने ‘राष्ट्रव्यापी नेतृत्व’ की आस लिए टीएमसी छोड़ नई नौकरी की तलाश में जुट गए।

यह तो तय है कि विपक्ष की ओर से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार वही हो सकता था जो अपनी राजनीतिक हत्या के लिए तैयार हो और इस सांचे में यशवंत सिन्हा एक दम सही फिट होते हैं। यशवंत सिन्हा अपने राजनीतिक अवसाद को “वृहद विपक्षी एकता के व्यापक राष्ट्रीय उद्देश्य” में देख रहे थे और अंततः उनको ये अवसर मिल ही गया। पर फिर भी आने वाले समय में निश्चित ही यह साफ-साफ प्रदर्शित हो जाएगा कि उनका 84 साल की उम्र में नौकरी ढूंढ़ने का सपना, सपना ही रह जाएगा।

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