भाजपा में कभी नेतृत्वविहीनता कि स्थिति उत्पन्न नहीं हुई है। कांग्रेस और अन्य दल इस स्थिति से इसलिए गुजरते हैं क्योंकि वो एक वंशवादी और जातिवादी पार्टी में परिवर्तित हो गए हैं। किंतु, भाजपा सिद्धांतों पर स्थापित एक मजबूत कैडर वाली पार्टी है। इसके सिद्धांतों और मर्यादाओं का सृजनकर्ता और पालनकर्ता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है जबकि इसके विशाल कार्यकर्ताओं के समूह का संचालन पार्टी करती है। शायद इसीलिए पहले श्यामाप्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय थे, फिर अटल-आडवाणी की जोड़ी आई और उसके बाद मोदी-शाह का युग आया। मोदी-शाह की जोड़ी ने पार्टी को अपनी उत्कृष्टता के शिखर पर पहुंचा दिया। इनकी जोड़ी ने भाजपा को इतना विस्तार दिया कि शायद स्वयं अटल आडवाणी की जोड़ी ने भी ऐसा नहीं सोचा होगा।
किंतु, हिंदी में एक काव्य छंद है- चढ़ता प्रथम जो व्योय में, गिरता वही मार्तंड है, उन्नति एवं अवनति का, नियम एक अखंड है। अर्थात् जो एक दिन शिखर पर पहुंचेगा, वह नीचे अवश्य आएगा, कर्मचक्र और कालचक्र के घूर्णन का यही नियम है। इस हिसाब से कुछ लोगों को लगता है कि भाजपा ने अपने विस्तार के मामले में पूर्णता को प्राप्त कर लिया है और अब जब मोदी और शाह राजनीति से लौट जाएंगे तब पतन की परिस्थिति उत्पन्न होगी। किंतु ऐसा है नहीं, भाजपा नेताओं की नर्सरी है। पार्टी खाक से और राख से नेतृत्व की अग्नि उत्पन्न करने में सिद्धहस्त है। इस लेख में हम आपको भाजपा के उन नेताओं के बारे में बताएंगे जो आने वाले समय में इस संगठन के रीढ़ की हड्डी बनेंगे। उनके नाम है- योगी आदित्यनाथ, हिमंता बिस्वा सरमा और देवेंद्र फडणवीस।
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योगी आदित्यनाथ
योगी आदित्यनाथ का कद कभी इतना बड़ा नहीं था। वह गोरखपुर से मात्र एक सामान्य सांसद थे। अपने राष्ट्रवादी और हिंदूवादी विचारधाराओं के लिए निरंतर सत्ता पक्ष द्वारा प्रताड़ित किए जाते थे। सदन उनके रुदन का साक्षी रहा है। किंतु, उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में प्रथम बार भाजपा ने उन्हें एक बड़ी भूमिका दी। पूर्वांचल के 157 विधानसभा सीटों पर टिकट वितरण और चुनावी समीकरण साधने का उत्तरदायित्व सौंपा गया और उन्होंने इस उत्तरदायित्व का भली-भांति निर्वहन किया, जिसके कारण भाजपा प्रथम बार प्रचंड बहुमत से जीतते हुए 300 सीटों का आंकड़ा पार कर गई। बाबा को पार्टी हाईकमान द्वारा पुरस्कृत किया गया और उत्तर प्रदेश के बड़े-बड़े कद्दावर नेताओं को पीछे छोड़ते हुए एक संत का राजतिलक हुआ।
भाजपा के सत्ता संगठन और सरकार तीनों के लिए यह एक गेम चेंजर निर्णय के रूप में साबित हुआ। योगी ने यह सिद्ध कर दिया कि उत्तर प्रदेश को चलाना सबके बस की बात नहीं है और सिर्फ उनके जैसा नेता ही इसमें सक्षम है। कुशल प्रशासक, कट्टर राष्ट्रवादी और विश्व हिंदू हृदय सम्राट के रूप में उन्होंने अपनी छवि स्थापित की। विधि व्यवस्था को दुरुस्त किया। उन गुंडों, माफियाओं, राजनेताओं, बाहुबली और दबंगों पर कार्रवाई हुई जिनपर कोई शासक उंगली उठाने की भी नहीं सोच सकता था। दंगाई, भीड़ और बेलगाम जनता को भी नहीं बख्शा गया। कट्टरपंथी और चरमपंथियों से भी कोई समझौता नहीं किया गया।
इसके फलस्वरुप योगी दोबारा जीत कर आए। उत्तर प्रदेश में विकास की बहुमुखी धारा बही। जनता को शांति और सुरक्षा मिली। कल्याणकारी परियोजनाएं, शिक्षा, स्वास्थ्य, आधारभूत संरचना और निवेश में बढ़ोत्तरी हुई। अब योगी को अपने हिंदू पहचान और कुशल प्रशासन के लिए मोदी के चेहरे की आवश्यकता नहीं है। वह आत्मनिर्भर बन चुके हैं और मोदी पर निर्भरता की जगह वह उनके सहयोगी बन चुके हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि आने वाले समय में बहुत हद तक भाजपा की कमान उनके हाथों में होगी क्योंकि विकास के मॉडल पर उन्होंने उत्तर प्रदेश को फिट कर दिया और हिंदुत्व के मामले में उन्होंने अपने चेहरे को हिट कर दिया है।
हिमंता बिस्वा सरमा
अब आते हैं दूसरे कद्दावर नेता हिमंता बिस्वा सरमा पर। वैसे तो हिमंता कांग्रेस से भाजपा में आए हैं और असम कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री और कद्दावर नेता तरुण गोगोई के राजनीतिक शिष्य भी रहे हैं। किंतु, असल में हिमंता भाजपा और कांग्रेस के बीच स्पष्ट अंतर को परिलक्षित करते हैं। कांग्रेस हिमंता में मौजूद अनंत राजनीतिक संभावनाओं को नहीं पहचान पाई पर भाजपा ने पहचाना। अपने नेता सर्बानंद सोनोवाल को दरकिनार करते हुए राजनीतिक गुणों को प्राथमिकता दी गई। मेरिट के मामले में हिमंता आगे निकले और अंततः उन्हें असम के मुख्यमंत्री पद की कमान सौंपी गई। पार्टी आलाकमान के विश्वास पर खरे उतरते हुए हिमंता ने खुद को साबित भी किया।
उन्होंने भी योगी की तरह न तो कभी अपने धर्म से समझौता किया और न ही भारत के राष्ट्रवाद और संस्कृति से। असम हिमंता के नेतृत्व में रोहिंग्या संकट के समक्ष चट्टान बनकर खड़ा हुआ। उन्होंने अवैध मदरसों, मजारों और ‘कट्टरपंथी मुल्लों’ पर भी कार्रवाई की। बांग्लादेश से आने जाने वाले अवैध प्रवासियों को भी रोका और विभिन्न प्रकार के तस्करी को भी। उन्होंने बंगाल और बांग्लादेश से प्रताड़ित हिंदुओं को भी शरण दी। मणिपुर से सीमा विवाद भी सुलझाया। इसके साथ-साथ उन्होंने असम के विभिन्न जनजातियों और संरक्षित स्थानों मुख्य रूप से ‘जयंतिया हिल्स’ की सुरक्षा भी सुनिश्चित की।
हिमंता के नेतृत्व में असम भारत का कोई अलग-थलग पड़ा पूर्वोत्तर राज्य नहीं बल्कि यहां की मुख्यधारा की राजनीति में शामिल हुआ। यह विकास सिर्फ वैचारिक स्तर पर नहीं हुआ है बल्कि हिमंता बिस्वा सरमा ने असम में अप्रत्याशित आधारभूत संरचनाओं और सड़कों के माध्यम से इस राज्य को दिल्ली से सीधे तौर पर जोड़ दिया। अब हिमंता सिर्फ एक मजबूत क्षेत्रीय क्षत्रप नहीं बल्कि भाजपा के स्टार प्रचारक बन चुके हैं। उनके भाषण की गूंज पूरे भारतवर्ष में सुनाई पड़ती है। निरंतर चुनावी सफलता ने उन्हें अजेय बना दिया है। पश्चिमी भारत से निकला एक नेता अभी भारत का प्रधानमंत्री है। उत्तर भारत से निकले योगी जी राष्ट्रीय नेता बन चुके हैं। पूर्वी भारत से निकले हिमंता भी नेतृत्व के इसी पायदान पर हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि भाजपा ने दक्षिण भारत से भी एक ऐसे ही नेता को पल्लवित किया है, जिसके प्रतिफल अब दिखने लगे हैं।
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देवेंद्र फडणवीस
उनका नाम है- देवेंद्र फडणवीस। देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व में ही भाजपा महाराष्ट्र में बड़े भाई की भूमिका में आई। उनके नेतृत्व में ही भाजपा ने प्रथम बार महाराष्ट्र में एक पूर्णकालिक सरकार चलाई। उसके बाद दूसरे कार्यकाल में भाजपा के सबसे विश्वस्त दोस्त शिवसेना ने सत्ता के लालच में आकर भगवा से समझौता कर लिया। दूसरे कार्यकाल में शिवसेना से गठबंधन करना ही भाजपा की सबसे बड़ी गलती रही। 288 सीटों वाली विधानसभा में भाजपा 152 सीटों पर लड़ी और 106 सीटों पर जीत हासिल की। वहीं, शिवसेना ने भी बाकी बचे 123 सीटों पर चुनाव लड़ा मगर सिर्फ 55 सीटों पर जीत हासिल की।
अगर इन सारी सीटों पर बीजेपी चुनाव लड़ती तो निस्संदेह ही वो अकेले अपने दम पर सत्ता प्राप्त कर लेती। खैर, गठबंधन का निर्णय तो पार्टी का था लेकिन एकजुट होकर चुनाव लड़ना और बीजेपी को महाराष्ट्र की सबसे बड़ी पार्टी बनाने का श्रेय देवेंद्र फडणवीस को जाता है। हालांकि, उन्हें अजित पवार ने धोखा दिया और राज्य में महाविकास आघाडी के बेमेल जोड़ ने सरकार बना ली, पर फिर भी फडणवीस हारे नहीं। एक सशक्त विपक्ष की भूमिका निभाई, मुद्दे उठाये, पार्टी को एकजुट रखा। विपक्षियों को अपने पाले में लाकर राज्य सभा चुनाव में परचम लहराया, नगरपालिका का चुनाव जिताया और अब सरकार बनाने के करीब हैं। फडणवीस ने प्रमोद महाजन के रिक्तता को भर दिया है और खुद को भावी नेता के रूप में स्थापित कर दिया है।
ये तीनों नेता बीजेपी के भविष्य हैं और आनेवाले समय में भाजपा का भार इन्हीं के कन्धों पर टिका है.
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