रूस और भारत की बेजोड़ तेल नीति, अमेरिका और अरब जगत के साथ हो गया ‘खेला’

पश्चिम के प्रतिबंधों से मालामाल रूस, भारत को भी लाभ ही लाभ।

भारत रूस तेल

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किसी ने बड़ी ही सही बात बोली है, कुत्ता पालो, बिल्ली पालो, चाहो तो शेर भी पाल लो परंतु भ्रम मत पालो। परंतु यह बात कोई अमेरिका, यूके और EU जैसों को बताएं जो रूस यूक्रेन विवाद पर रूस पर ताबड़तोड़ प्रतिबंध लगाकर ये सोच रहे थे कि उन्हें कोई हाथ भी नहीं लगा पाएगा। उन्हें लगा कि रूस घुटने टेक देगा पर रूस भी सोचता होगा कि क्या मजाक है।

भारत की तेल की निर्भरता रूस की ओर जा रही है

इस लेख हम जानेंगे कि कैसे रूस ने आपदा में अवसर खोज निकाला है और कैसे इसका सर्वाधिक लाभ भारत को मिल रहा है। दरअसल, विगत कुछ अंकों में हमने इस बात पर प्रकाश डाला था कि कैसे अरब जगत का नूपुर शर्मा के परिप्रेक्ष्य में भारत पर क्रोध बढ़ रहा था। परंतु वह तो केवल बहाना था क्योंकि तेल के परिप्रेक्ष्य में भारत की उन पर निर्भरता कम हो रही है। स्वाभाविक भी है क्योंकि ये निर्भरता अब अमेरिका और अरब जगत से स्थानांतरित होकर रूस की ओर जो जा रही है।

अब आप भी सोच रहे होंगे कि अमेरिका और रूस की लड़ाई में भारत को क्या लाभ होगा? इसके लिए प्रारंभ से ध्यान देना होगा जब अमेरिका ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाना प्रारंभ किये थे। उन्हें प्रतीत हुआ कि ऐसा करके वे सम्पूर्ण संसार को नतमस्तक कर देंगे और रूस को कंगाल कर देंगे जैसे 80 के दशक के अंत में सोवियत संघ के साथ इन्होंने करने का प्रयास किया था। परंतु हुआ ठीक उल्टा और मुद्रा तो मुद्रा, तेल के निर्यात में भी रूस को जमकर लाभ मिला, क्योंकि व्यापार दिमाग से चलता है, भावना से नहीं।

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Centre for Research on Energy and Clean Air, Moscow के अनुसार वर्तमान कालखंड यानी फरवरी से अब तक केवल तेल के निर्यात से रूस को 93 बिलियन यूरो की रिकॉर्ड कमाई हुई, जिसमें 97 बिलियन डॉलर की कमाई यानी लगभग दो तिहाई कमाई केवल तेल के निर्यात से सामने आई है।

ये तेल खरीद कौन रहा है?

परंतु प्रश्न तो अब भी उठता है कि ये तेल खरीद कौन रहा है? अमेरिका के भय से अधिकतम विकसित देशों ने रूस से क्रय विक्रय यानी किसी भी प्रकार के व्यापार पर प्रतिबंध लगाया है। परंतु दिवालियापन के भय से कई यूरोपीय देश महंगे दाम पर भी रूसी तेल खरीदने को तैयार हैं और जर्मनी जैसे देश चाहकर भी प्रतिबंध लगाने को तैयार नहीं। ऐसे में आगमन होता है भारत और चीन जैसे देशों का, जिन्हें रूस ने भर-भर के डिस्काउंट प्रदान किये, और मौके पर ताबड़तोड़ छक्के मारते हुए इन दोनों ही देशों ने भारी मात्रा में अमेरिका के कोपभाजन को ठेंगे पर रखते हुए पहले से कहीं अधिक रूसी तेल को खरीदना प्रारंभ किया।

परंतु बात यहीं तक सीमित नहीं है। 2021 में भारत ने 16 मिलियन बैरेल रूसी तेल को आयात किया जो उसके कुल तेल आयात का आधा भी नहीं था। परंतु केवल फरवरी से लेकर जून तक में ही भारत ने 13 मिलियन बैरेल से अधिक रूसी क्रूड ऑइल को आयात किया है ताकि तेल के दाम भी नियंत्रित रहे और अरब जगत एवं अमेरिका की हेकड़ी को भी ठेंगा दिखाया जा सके।

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सच कहें तो कहीं न कहीं अमेरिका ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाकर अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारी है। एक ओर उसने रूस को तेल जगत में अरब देशों की हेकड़ी ध्वस्त करने के लिए एक सुनहरा अवसर प्रदान किया है और दूसरी ओर उसने भारत और रूस की मित्रता को अधिक सशक्त करने का मार्ग प्रशस्त किया है। अमेरिका की इस नीति के क्या कहने, चले थे रूस की दुकान बंद कराने खुद के संपत्ति बचाने के लाले पड़ गए।

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