इन 5 कारणों से बॉक्स ऑफिस पर शमशेरा हुई धड़ाम

बॉलीवुड और सक्सेस, इन दो शब्दों का अब आपस में कोई संबंध नहीं रहा

Shamshera Movie

बॉलीवुड और सक्सेस, इन दो शब्दों का अब आपस में कोई संबंध बचा भी है इस पर भारी संशय है। ‘भूल भुलैया 2’ को छोड़कर एक भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर ‘हिट’ का स्टेटस कमा नहीं पायी है। फिल्म ‘शमशेरा’ बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह क्यों गिरी है, इसके पीछे के 5 कारणों को इस लेख में जानेंगे।

3 वर्षों से भी अधिक समय से लंबित करण मल्होत्रा द्वारा निर्देशित ‘शमशेरा’ का हाल तो अक्षय कुमार की ‘बच्चन पांडे’ और ‘सम्राट पृथ्वीराज’ समान है– ऊंची दुकान फीके पकवान। 150 करोड़ से अधिक के बजट पर बनी यह फिल्म लाख प्रोमोशन और प्रचार प्रसार के बाद भी ओपनिंग वीकेंड पर लगभग 32 करोड़ ही कमा पायी, जो ‘सम्राट पृथ्वीराज’ के ओपनिंग वीकेंड से कहीं कम है।

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आइए प्रमुख कारणों पर ध्यान देते हैं

फिल्म शमशेरा बॉक्स ऑफिस पर क्यों औंधे मुंह गिरी है इसके पीछे के ये हैं पांच कारण।

सिनेमा में एक बहुत बेसिक रूल है जो कभी-कभी बहुत बड़ा चमत्कार कर सकता है – कथा सरल बनाओ, पर अच्छी बनाओ। शमशेरा का उद्देश्य बुरा नहीं था, क्योंकि एक जनजातीय समुदाय अंग्रेज़ों से लड़े उससे बड़ी बात क्या होती, परंतु अपने ही उद्देश्य से भटककर उसका रायता फैलाना ये तो सही नहीं है।

चलो, मान लेते है कि भई कथा में कुछ दिक्कत थी, मज़ा नहीं आ रहा है लेकिन उतने पर नहीं रुकना। इंपैक्ट डालना है तो ये बोलना जरूरी है कि ‘धर्म से बड़ा कोई मुखौटा नहीं होता है।’ पर ठहरिए, ये तो मात्र प्रारंभ है, इस फिल्म में तो यहां तक दिखाया गया कि ब्रिटिश साम्राज्यवादी बड़े न्यायप्रिय, धर्मप्रिय शासक हैं, शमशेरा के अनुसार अंग्रेज़ तो बड़े धर्मप्रिय, न्यायप्रिय शासक हैं, जिन्हें भारतीयों से कोई द्वेष नहीं। असल दोषी तो क्रूर, उच्च जाति के हिन्दू हैं, जिन्हें पिछड़ी जातियों का शोषण करने में बड़ा मज़ा आता है और उन्हीं के कारण देश अंग्रेज़ों का गुलाम बन गया है। यदि शुद्ध सिंह जैसे क्रूर लोग न होते तो देश सदैव स्वतंत्र रहता, सारी फसाद की जड़ तो उनके जैसे रूढ़िवादी हिन्दू ही है।

अब आते हैं उन गलतियों पर जिनसे न बॉलीवुड कोई सीख लेना चाहता है और न ही यश राज फिल्म्स। एक नहीं, दो नहीं, तीन-तीन कांड कर चुकी है YRF 2018 से। पहले ठग्स ऑफ हिंदोस्तान आयी, फिर बंटी और बबली का थर्ड क्लास सीक्वल और फिर सम्राट पृथ्वीराज। इन सभी को जनता ने सिरे से नकार दिया। वो सब तो ठीक है पर अभी तो हमने ‘जयेशभाई जोरदार’ के लेजेंडरी कलेक्शन पर प्रकाश भी नहीं डाला है। ऐसे में यदि शमशेरा के निर्माताओं में तनिक भी समझ होती तो या तो वे स्क्रिप्ट में व्यापक बदलाव करते या फिर वे इसके रिलीज़ में कुछ परिवर्तन लाते, तब शायद इसके भाग्य में कुछ परिवर्तन होता, परंतु नहीं, इन्हें अपने मन की करनी थी और परिणाम आपके समक्ष है।

इस फिल्म को डुबाने में एक महत्वपूर्ण भूमिका जाने अनजाने संजय दत्त की भी रही है। संजय दत्त को शुद्ध सिंह के रूप में उतारकर करण मल्होत्रा अपना गब्बर सिंह निकलवाना चाहते थे परंतु हुआ ठीक उल्टा। संजय दत्त खूंखार कम और जोकर अधिक लग रहे थे, बस यही भावना रही जिसने फिल्म का बंटाधार किया।

सबसे महत्वपूर्ण कारण है फिल्म होर्डिंग जिसकी चर्चा बहुत कम लोग करते हैं। अक्सर हमने सुना है कि किसी महत्वपूर्ण फिल्म के लिए बाकी सभी फिल्मों के स्क्रीन कम कर दिए जाते हैं और कइयों को तो हॉल से हटा भी दिया जाता है। शमशेरा भी एक ऐसी ही फिल्म है जिसने भारत में 4000 से कुछ अधिक और विश्व में 1000 से कुछ अधिक, यानी मिलाकर 5500 के आसपास स्क्रीन्स पर कब्जा जमा लिया था। ध्यान देने वाली बात है कि इसके बाद भी ओपनिंग वीकेंड पर उसे 32 करोड़ भी नहीं मिले।

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स्थिति इतनी बुरी हो चली है कि शमशेरा के कई शो खराब ऑक्युपेन्सी के चलते रद्द हो रहे हैं और केवल ‘Rocketry’ जैसे फिल्में ही नहीं, ‘जुग जुग जियो’ और ‘Hit’, जो बॉक्स ऑफिस पर असफल सिद्ध हुई उनके भी शो कई जगह बढ़ाए जाने लगे हैं।

सच पूछें तो शमशेरा केवल रणबीर कपूर के लिए नहीं अपितु सम्पूर्ण बॉलीवुड के लिए एक अंतिम चेतावनी है कि अब भी समय है, जाग जाइए, अन्यथा जिस तरह से व्यवसायीकरण और तुष्टीकरण की अंधी दौड़ की ओर ये भाग रहे हैं उसी में ये नष्ट हो जाएंगे।

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