पिछले 6 महीने में 75 फीसदी फिल्में डूब गईं, ये हैं बॉलीवुड के बर्बाद होने के मुख्य कारण

एक बॉलीवुडिया फ़िल्म में चंद गानों को छोड़कर होता ही क्या है?

Bollywood flop

Source- TFIPOST HINDI

‘फ़्लॉप्स, फ़्लॉप्स, फ़्लॉप्स, आई डोन्ट लाइक इट, आई अवॉइड, बट फ़्लॉप्स लाइक मी, आई कान्ट अवॉइड’, ये सिर्फ एक मीम नहीं बॉलीवुड की एक जीती जागती सत्यता बन चुकी है, जिसमें शाबाश मिट्ठू और हिट ने भी कोई मरहम लगाने का प्रयास नहीं किया है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे पिछले 6 महीने में बॉलीवुड की 75 प्रतिशत फिल्मों की लंका लगी हुई है और कैसे इन सब से भी बॉलीवुड कोई सीख लेने को तैयार नहीं है।

हाल फिलहाल में भारतीय फिल्म उद्योग ने कुल लगभग 6,000 करोड़ की कमाई की है। बड़ा नंबर है न? परंतु जो दिखता है, आवश्यक नहीं वहीं हो। सत्य इससे काफी भिन्न है। iChowk नामक न्यूजपोर्टल के एक रिपोर्ट के अंश अनुसार, कोरोना महामारी से जूझ रहे बॉक्स ऑफिस को जीवनदान देने का असली श्रेय साउथ सिनेमा को जाता है। पहले अल्लू अर्जुन की फिल्म ‘पुष्पा: द राइज’ उसके बाद राम चरण-जूनियर एनटीआर की फिल्म ‘आरआरआर’ और यश की फिल्म ‘केजीएफ चैप्टर 2’ ने बॉक्स ऑफिस पर बंपर कमाई करके संदेश दे दिया कि यदि फिल्म अच्छी है तो उसकी कमाई को कोई रोक नहीं सकता है।

इसी बीच बॉलीवुड की दो फिल्मों ने भी बेहतरीन प्रदर्शन किया जिसमें विवेक अग्निहोत्री की फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ और अनीस बज्मी के निर्देशन में बनी कार्तिक आर्यन की फिल्म ‘भूल भुलैया 2’ शामिल है। इन सभी फिल्मों की योगदान की वजह से ही भारतीय फिल्म इंडस्ट्री (बॉलीवुड+साउथ सिनेमा) ने पिछले छह महीने (जनवरी से जून तक) में करीब 5700 करोड़ रुपए का कारोबार किया है।

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तो फिर चिंता किस बात की है? चिंता है मार्च के पश्चात के कलेक्शन की। जून में मात्र 799 करोड़ रुपये का कलेक्शन हुआ जो मार्च के अनुपात में काफी कम है और इन सब में भी बॉलीवुड का योगदान लगभग नगण्य है। तेलुगु उद्योग में बसे अभिषेक अग्रवाल के प्रथम हिन्दी प्रोजेक्ट ‘द कश्मीर फाइल्स’ और ‘भूल भुलैया 2’ को छोड़ दें तो एक भी फिल्म ऐसी नहीं थी, जिसने इज्जत से 50 करोड़ से ऊपर का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन भी किया हो और अभी हमने बॉलीवुड के 100 करोड़ वाले स्कैम की चर्चा भी नहीं की है।

परंतु अप्रैल से जून के बीच तो कई फिल्म रिलीज हुई न? बिल्कुल हुई, परंतु एक भी दर्शकों को सिनेमाघर तक खींचने में नाकाम रही। चाहे जॉन अब्राहम की फिल्म ‘अटैक’ हो, टाइगर श्रॉफ की फिल्म ‘हीरोपंती 2’ हो, वरुण धवन और अनिल कपूर की ‘जुग जुग जियो’ हो, कंगना रनौत की फिल्म ‘धाकड़’ हो और आयुष्मान खुराना की फिल्म ‘अनेक’ हो, सब बॉक्स ऑफिस पर औंधे मुंह गिरी, मानो बॉयकॉट बॉलीवुड ने विकराल रूप धारण कर लिया था। परंतु इसके साइड इफेक्ट शाहिद कपूर की फिल्म ‘जर्सी’ और अजय देवगन की फिल्म ‘रनवे 34’ जैसी फिल्मों पर भी पड़ें जो अच्छी फिल्में होने के बावजूद बुरी तरह फ्लॉप हो गई।

परंतु इसके कारण क्या हैं? कुछ लोगों का यह मानना है कि अब बड़े पर्दे पर फ़िल्म देखने के दिन ढल गए हैं लेकिन यदि ऐसा होता तो लोग भर-भर के ‘RRR’, ‘मेजर’, ‘विक्रम’, ‘KGF’, यहां तक कि ‘द कश्मीर फाइल्स’ और ‘रॉकेट्री’ क्यों देखने जाते? एक व़क्त था जब कमज़ोर कंटेंट के बावजूद बड़े सितारे अपनी फैन फॉलोइंग के बूते दर्शकों को सिनेमाहॉल तक खींच लाते थे और फ़िल्में ठीक ठाक कमाई कर लेती थी लेकिन समय के साथ दर्शकों की प्राथमिकता बदली है और वो फ़िल्म के कंटेंट पर ज़्यादा ध्यान दे रहे हैं। कोविड के कारण लोग मजबूरी में ही सही परंतु OTT की ओर मुड़ें और विकल्प का एक ऐसा अथाह सागर उनके समक्ष खुला कि उन्हें फिर हर विषय, हर पक्ष से चीज़ें समझने, देखने का दृष्टिकोण मिला। अब वो दिन गए जब आप कुछ भी परोस देते थे और जनता हपड़ हपड़ कर के चाट जाती थी!

फ़िल्मों के व्यापार पर विशेष नज़र रखने वाले जोगिंदर टुटेजा कहते हैं कि “इन फ़िल्मों को क़रीब 700 से 900 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। फ़िल्मों के सैटेलाइट और डिजिटल राइट्स नहीं बेचे जाते तो भरपाई करना और भी मुश्किल हो जाता।” टुटेजा का मानना ​​है कि “अगर स्थिति ऐसी ही रही तो इस साल सिनेमा हॉल का कुल राजस्व 450 मिलियन डॉलर से अधिक नहीं होगा। वर्ष 2019 में बॉक्स ऑफिस पर बनी लगभग 550 मिलियन डॉलर की हिंदी फिल्मों से ये 100 मिलियन डॉलर कम है।”

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इसके अतिरिक्त BBC जैसे वामपंथी संस्था तक ने अपनी रिपोर्ट में कुछ ऐसे कारण गिनाए हैं जिन्हें अनदेखा करना बिल्कुल नहीं बनता। रिपोर्ट के अनुसार, “स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स की पहुंच और सिनेमाघरों से लोगों की बढ़ती दूरी के बीच बॉक्स ऑफिस पर एक फ़िल्म को सफल बनाना पहले से कहीं ज्यादा मुश्किल हो गया है। ऊपर से कोविड ने स्थिति को और बदतर बना दिया है।” भूषण कुमार मानते हैं कि बढ़ती रिलीज़ डेट, कैंसिलेशन और कोविड प्रोटोकॉल के कारण फ़िल्म का औसतन बजट 10 से 15 फीसदी तक बढ़ गया है। एमके ग्लोबल के अनुसार, नेपोटिज्म से लेकर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आरोपों के बीच बॉलीवुड विरोधी सोशल मीडिया कैंपेन ने भी फ़िल्म उद्योग को बड़ा नुकसान पहुंचाया है। हालांकि ये नुकसान कितना हुआ है इसका अनुमान लगाना मुश्किल है।

ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि बॉलीवुड के पास अब कुछ नया देने को रह ही नहीं गया है और शाबाश मिट्ठू का परफॉरमेंस इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है, जहां फिल्म अपने ओपनिंग वीकेंड में 5 करोड़ भी नहीं कमा पाई। यदि ये अब भी नहीं सुधरें तो शीघ्र ही ये भारतीय फिल्म उद्योग में उस मुहाने पर पहुंच जाएंगे, जहां ये न घर के रहेंगे, न घाट के।

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