रूस से प्रतिबंध क्यों हटाने लगे अमेरिकी और यूरोपीय देश?

ये तो होना ही था !

Russia, Europe & America

Source- TFIPOST.in

अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने वाली कहावत तो आपने बहुत बार सुनी होगी कि कैसे कुछ लोग स्वयं का ही बेड़ागर्क करा लेते है। ऐसा ही कुछ रूस-यूक्रेन के दौरान तमाम देशों ने भी किया। रूस ने यूक्रेन के विरुद्ध युद्ध क्या छेड़ा, दुनिया के तमाम देश एकजुट हो गए और रूस के खिलाफ तरह-तरह के प्रतिबंध लगा दिए। पश्चिमी देशों को ऐसा लगा कि वे इन तमाम प्रतिबंधों के माध्यम से रूस को विश्व में अलग-थलग कर देंगे और उसे घुटने टेकने को मजबूर कर देंगे। पश्चिमी देशों को ऐसा लगा कि प्रतिबंधों के माध्यम से वे रूसी अर्थव्यवस्था को ध्वस्त कर देंगे, परंतु मौजूदा हालातों पर गौर करें तो पता चलता है कि आज इसके विपरीत ही हो रहा है।

देखा जाए तो इन प्रतिबंधों का रूस पर तो कुछ खास असर पड़ता नजर नहीं आ रहा। रूसी राष्ट्रपति पुतिन युद्ध के परिणामों से अच्छी तरह वाकिफ थे और उन्होंने इससे निपटने के लिए स्वयं को तैयार भी कर रखा था। इसलिए रूस तमाम प्रतिबंधों का सामना मजबूती से करने में कामयाब रहा। वहीं दूसरी ओर रूस पर लगे प्रतिबंधों के कारण दुनिया इस वक्त मुसीबत में है। रूस-यूक्रेन युद्ध के दुष्परिणाम आज पूरी दुनिया भुगत रही है। विश्व पर आर्थिक मंदी का खतरा मंडरा रहा है। आशंका है कि तमाम बड़े-बड़े देश इस मंदी की चपेट में आएंगे। मंदी के पीछे का प्रमुख कारण रूस-यूक्रेन युद्ध को ही माना जा रहा है। युद्ध के कारण विश्व अर्थव्यवस्था से जोड़ने वाली सप्लाई लाइन पर बड़ा असर पड़ा, जिस कारण कई देशों में महंगाई अपनी चरम सीमा पर पहुंच चुकी है। इस दौरान कई देशों के हालात बद से बदतर होती चली जा रही है।

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कई देश रूस के विरुद्ध प्रतिबंधों को लेकर बैकफुट पर

केवल मंदी ही नहीं रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक खाद्य संकट भी गहरा गया। रूस और यूक्रेन दोनों ही गेंहू के बड़े उत्पादक और निर्यातक देश हैं। यूक्रेन से दूसरे देशों को कई टन अनाज भेजा जाना था, परंतु युद्ध की वजह से अहम रास्ते बंद हो गए और सप्लाई नहीं हो पाई। इसके अलावा विश्व में ऊर्जा संकट बढ़ गया। रूस प्राकृतिक गैस का सबसे बड़ा निर्यातक देश है। वे कच्चे तेल का दूसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है और तीसरा सबसे बड़ा कोयला निर्यातक देश है। रूस के कच्चे तेल पर यूरोप समेत तमाम देशों की निर्भरता काफी अधिक है। रूस पर प्रतिबंध लगाने का असर पूरी दुनिया पर पड़ा। आज के समय में देखें तो जो देश रूस को प्रतिबंधों के माध्यमों से घेरने की कोशिशों में जुटे थे, वहीं अमेरिका और यूरोपीय देश भारी आर्थिक संकट में फंसते दिखाई दे रहे है। यही कारण है कि अब यह तमाम देश रूस के विरुद्ध प्रतिबंधों को लेकर बैकफुट पर आने लगे है और इन्हें हटाने पर विचार करने लगे है।

बीते दिनों ही एक खबर सामने आई थी कि यूरोपीय संघ रूस पर लगाए अपने प्रतिबंधों में ढील देने पर विचार कर रहा है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार ईयू बहुत जल्द ही रूस के ऐसे बैंकों से प्रतिबंध हटा सकता है, जो कृषि, खाद्य और उर्वरक के व्यापार से जुड़े हैं। समाचार एजेंसी एएफपी को नाम ना छापने की शर्त पर यूरोपीय संघ के एक राजनयिक ने बताया था कि सदस्य देश साफ तौर पर यह चाहते है कि उनके द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों में ऐसा कुछ ना हो, जो रूस या फिर यूक्रेन से अनाज की गति को धीमा कर दें। यूरोपीय संघ अगर रूसी बैंकों से प्रतिबंध हटाने का निर्णय लेता है, तो यह रूस की बहुत बड़ी जीत मानी जाएगी।

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तमाम देशों को खुद ही महंगा पड़ गया रूस पर प्रतिबंध लगाना

युद्ध के कारण दुनियाभर में पैदा हुए हालातों ने इन तमाम देशों को अपने प्रतिबंधों पर सोचने को मजबूर कर दिया है। क्योंकि इन्हें समझ आने लगा है कि लंबे समय तक प्रतिबंध लगाने के कारण सबसे अधिक नुकसान उनको ही होगा। इनको ही दुष्परिणामों का सामना करना पड़ेगा। क्योंकि रूस तो किसी ना किसी तरह प्रतिबंधों के प्रभावों से बचने की कोशिशों में जुटा है। पश्चिमी देशों ने प्रतिबंध लगाए तो रूस ने उन देशों को सस्ते दामों पर तेल बेचना शुरू कर दिया, जो युद्ध के दौरान भी उसके साथ खड़े थे। रूस ने भारत को तेल की आपूर्ति बढ़ा दी। साथ ही यूरोपीय देशों ने भी स्वयं के प्रतिबंधों को ही दरकिनार करते हुए रूस से तेल खरीदना जारी रखा।

जिससे रूस पर प्रतिबंधों का न्यूनतम असर हुआ। वहीं, पुतिन ने इन देशों को तेल की आपूर्ति कम करने का फैसला लिया। रूस के इस निर्णय के कारण जर्मनी तेल की कमी की चपेट में आ गया, जिसका असर बिजली उत्पादन पर पड़ा। इसके अलावा यूरोप के अन्य देश भी आज गैस और कच्चे तेल की आपूर्ति की बाधाओं की वजह से संकट में हैं। इससे स्पष्ट हो जाता है कि पश्चिमी देशों ने रूस को घेरने के लिए जो प्रतिबंध लगाए, उनका खामियाजा उन्हें ही भुगतना पड़ रहा है। रूस को इन सबसे कोई खास फर्क नहीं पड़ रहा। यही कारण है कि यह देश लंबी अवधि तक रूस पर जारी नहीं कर सकते, इसलिए वे अब इनसे अपने हाथ पीछे खींचने पर विचार करने लगे है।

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