‘श्रीलंका’ बनने की कगार पर बांग्लादेश, विदेशी मुद्रा भंडार में घनघोर कमी

बांग्लादेश के गुणगान करते नहीं थकते हैं हमारे 'फेसबुकिया अर्थशास्त्री'!

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हमारे देश में कई लोग ऐसे है, जो भारत से अधिक दूसरे देशों की प्रशंसा करते है। उन्हें केवल अपने देश में खामियां और दूसरे देशों की अच्छाईयां ही नजर आती है। वामपंथियों के द्वारा भारत को कभी अमेरिका, कभी न्यूजीलैंड तो कभी बांग्लादेश जैसे देशों से सीखने का ज्ञान दिया जाता है। कुछ समय पहले यह लोग बांग्लादेश की तारीफों में पुल बांधे फिरते थे। भारत को बांग्लादेश की उन्नति से सीखने तक की सलाह देते थे। ऐसा माहौल बनाया जाता था कि बांग्लादेश छोटा देश होने के बाद भी भारत से तरक्की के मामलों में मीलों आगे निकल चुका है।

परंतु अब उसी बांग्लादेश का हाल ऐसा हो गया कि वो एक और श्रीलंका बनने की राह पर आगे बढ़ रहा है। बांग्लादेश का विदेशी मुद्रा भंडार लगातार कम हो रहा है। दो वर्षों में पहली बार बांग्लादेश का विदेशी मुद्रा भंडार पहली बार 40 बिलियन डॉलर के नीचे आ गया। हाल ही में बांग्लादेश के केंद्रीय बैंक ने एशियन क्लियरिंग यूनियन (ACU) के साथ 1.99 बिलियन डॉलर के आयात का भुगतान किया है, जिसके बाद उसका विदेशी मुद्रा भंडार कम होकर 39.80 बिलियन डॉलर आ गया। पिछले साल दिसंबर के महीने में बांग्लादेश का विदेशी मुद्रा भंडार 46.15 बिलियन डॉलर था। जानकारी के लिए बता दें कि ACU के सदस्य भारत, पाकिस्तान, भूटान, बांग्लादेश, ईरान, मालदीव, म्यामांर, नेपाल, श्रीलंका है। इन देशों के केंद्रीय बैंकों द्वारा हर दो महीने में आयात बिलों के निपटारे के लिए भुगतान किया जाता है।

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पतन के शुरुआती दौर में बांग्लादेश

जनवरी से ही बांग्लादेश के हालत खराब होने की शुरुआत हो गई थी। पिछले साल जुलाई से ही विदेशों से बांग्लादेशी नागरिकों द्वारा भेजे गए पैसों में कमी देखने को मिली। इसके अलावा आयात भी लगातार बढ़ता ही चला गया। फरवरी में बांग्लादेश के हालत इस कदर बिगड़ गए थे कि उसके पास आयात के लिए केवल छ: ही महीनों का आयात करने जितना पैसा बचा था। इसके बाद यह संकट लगातार गहराता ही चला गया। बांग्लादेश के टका का मूल्य भी लगातार गिर रहा है।

देखा जाए तो आज भारत के अधिकतर पड़ोसी देशों का हाल इस वक्त काफी खराब है। श्रीलंका में स्थिति क्या है, उससे भी हर कोई वाकिफ है। आर्थिक संकट के कारण श्रीलंका बदतर हालात में पहुंच चुका है। राष्ट्रपति भवन से लेकर सरकारी चैनल पर प्रदर्शनकारी जनता कब्जा कर चुकी है। स्थिति इतनी गंभीर हो गई कि राष्ट्रपति राजपक्षे को देश छोड़कर भागना पड़ा और उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसके अलावा बात पाकिस्तान की करें तो उसकी भी खस्ताहाली किसी से छिपी नहीं। पाकिस्तान में महंगाई अपने चरम पर है और वहां की सरकार पाकिस्तान को आर्थिक संकटों से निकालने में विफल साबित होती हुई नजर आ रही है। नेपाल के हालात भी अच्छे नहीं। वहीं बांग्लादेश का खजाना भी जिस तेजी से खाली हो रहा है, उस पर भी दिवालिया होने का खतरा मंडराने लगा है। बावजूद इसके एक वर्ग के द्वारा भारत को इन छोटे देशों से सीखने की सलाह दी जाती है।

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भारत की अर्थव्यवस्था 

वहीं बात भारत की करें तो देश इस वक्त काफी बेहतर स्थिति में है। दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था इस वक्त भारत की ही है। कंसल्टेंसी फर्म डेलॉयट इंडिया की एक रिपोर्ट ने अनुमान लगाया है कि अगले कुछ सालों तक भारत विश्व की तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था बना रहेगा। रिपोर्ट के अनुसार- “2022-23 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 7.1 से 7.6 प्रतिशत रहेगी। इसके बाद 2023-27 में GDP 6 से 6.7 प्रतिशत के बीच रहेगी। जिससे यह सुनिश्चित होगा कि भारत अगले कुछ साल तक दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना रहेगा।”

भारत ने भी कोरोना महामारी की भयंकर त्रासदी का सामना किया, इसके बाद अब देश की अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट रही है। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण पैदा हुए हालातों के दौरान भी भारत ने स्वयं को मजबूत बनाया हुआ है। ऐसा केवल इस वजह से संभव हो पाया क्योंकि भारत ने युद्ध के दौरान अपने हितों को ऊपर रखा और पश्चिमी देशों के दबाव के बावजूद रूस से सस्ते दामों पर तमाम सामान खरीदता रहा।

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