‘मुनाफा चोर’ बिग टेक को सबक सिखाने का अब है मौका, पूरा हिसाब लिया जाएगा!

बिग टेक के 'चोरी के दिन' अब लद गए!

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बदलते वक्त के साथ खबरें हासिल करने का माध्यम भी बदल गया है। पहले लोग केवल न्यूज पेपर  और न्यूज़ चैनल के माध्यम से ही खबरें जान पाते थे। परन्तु अब सोशल मीडिया लोगों तक खबरें पहुंचाने का एक बहुत बड़ा जरिया बन चुका है। आप देखेंगे कि आज बड़ी संख्या में लोग खबरें जानने के लिए फेसबुक, गूगल जैसे तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का सहारा लेते हैं। यह  सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म लोगों तक खबरें पहुंचाकर और दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित करके स्वयं तो मोटी कमाई करते हैं। गूगल, फेसबुक द्वारा  मीडिया एजेंसियों की सामग्री का इस्तेमाल किया जाता है, परंतु इसके लिए उन्हें किसी भी तरह का कोई भुगतान नहीं किया जाता। मीडिया एजेंसियों को इनके प्लेटफॉर्म पर न्यूज़ पब्लिश करने के लिए किसी भी तरह की कोई रकम अब तक नहीं दी जाती।

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बड़ी टेक कंपनियों  की मनमानी

हालांकि अब इन बड़ी टेक कंपनियों  की इस मनमानी पर जल्द ही नकेल कसने  जा रही है। दरअसल भारत सरकार  सूचना या कंटेंट के उपयोग को लेकर मौजूदा आईटी कानूनों (IT Laws) में बदलाव की तैयारी में है। केंद्रीय आईटी और इलेक्ट्रॉनिक्स राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने अपने एक बयान में इससे जुड़ी जानकारी देते हुए बताया कि भारत सरकार चाहती है कि यह बड़ी टेक कंपनियां  न्यूज आउटलेट्स को उनके कंटेंट के लिए भुगतान करें।

टीओआई की खबर के अनुसार मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा कि यह कदम नियामक हस्तक्षेपों के जरिए उठाया जा रहा है। यह मौजूदा IT कानूनों में संशोधन के हिस्से के तौर पर हो सकता है। उनके अनुसार डिजिटल विज्ञापन पर बाजार की शक्ति, जो वर्तमान में बिग टेक की बड़ी कंपनियों द्वारा इस्तेमाल की जा रही है, भारतीय मीडिया कंपनियों को नुकसान की स्थिति में रखती है। आईटी और इलेक्ट्रॉनिक्स राज्य मंत्री ने बताया कि यह एक ऐसा गंभीर मुद्दा है, जिसको लेकर फिलहाल जांच चल रही है।

भारत सरकार के यह पहले आधिकारिक बयान की तरह देखा जा रहा है, जिसमें सरकार द्वारा इंटरनेट दिग्गज कंपनियों को न्यूज सामग्री उपलब्ध कराने के लिए मीडिया संस्थानों को भुगतान करने से संबंधित बातें कही गयीं। सरकार बड़ी टेक कंपनियों को जैसे गूगल, मेटा (फेसबुक, इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप के मालिक), माइक्रोसॉफ्ट, एपल, ट्विटर और अमेज़न को भारतीय समाचार पत्रों और डिजिटल समाचार प्रकाशकों को राजस्व का हिस्सा बनाने के लिए प्रयास कर रही है। इसके बयान के बाद इस संबंध में जल्द ही कुछ नियम आने की संभावना भी बढ़ गयी है।

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अपने लाभ का हिस्सा देने को विवश होना पड़ेगा

अगर सरकार द्वारा इससे संबंधित नियम लाए जाते हैं तो सोशल मीडिया के प्लेटफॉर्म को भारतीय मीडिया एजेंसियों को अपने लाभ का हिस्सा देने को विवश होना पड़ेगा। सरकार को ऐसा लग रहा है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को इंटरनेट और स्मार्टफोन के बढ़ते उपयोग से खूब लाभ हुआ है। यह विज्ञापन राजस्व के साथ-साथ प्रिंट और वीडियो दोनों दर्शकों को अपनी तरफ आकर्षित करने में कामयाब रहे हैं। परंतु वो इस लाभ का हिस्सा भारतीय मीडिया कंपनियों को नहीं बना रहे,  जिस कारण मूल सामग्री निर्माता को नुकसान हो रहा है।

वैसे भारत ऐसा पहला देश नहीं है जो इससे संबंधित नियम लाने पर विचार कर रहा हो। ऑस्ट्रेलिया ऐसा पहला देश था, जो दिग्गज सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को न्यूज के लिए भुगतान करने से संबंधित कानून लेकर आया था। हालांकि इस पर काफी विवाद भी हुआ था। दरअसल, जब ऑस्ट्रेलिया सरकार द्वारा इससे जुड़े नियम लेकर आए गए, तो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इसके विरोध में उतर आए। ऑस्ट्रेलियाई सरकार द्वारा लाए गए इस कानून के विरोध में फेसबुक ने तो ऑस्ट्रेलिया में अपने प्लेटफ़ॉर्म पर न्यूज़ का पूरी तरह बहिष्कार ही कर दिया था। इसके अलावा गूगल द्वारा धमकी दी गयी थी कि वो ऑस्ट्रेलिया से ही निकल जाएगा। परंतु जब ऑस्ट्रेलिया की सरकार अपने रुख पर कायम रही तो अंत में इन कंपनियों को ऑस्ट्रेलिया के मीडिया संस्थानों के साथ साझेदारी करने को मजबूर होना पड़ा।

यह इन टेक कंपनियों की मनमानी ही प्रतीत होती हैं कि यह जिसके माध्यम से पैसा कमा रही है, उन मूल सामग्री को उपलब्ध करवाने वाले मीडिया संस्थानों को ही अपने लाभ का हिस्सा नहीं बनाना चाहतीं। परंतु अब वो वक्त दूर नहीं रह गया, जब इन टेक कंपनियों की इस मनमानी पर लगाम लग जाएगी, क्योंकि भारत सरकार ने इससे संबंधित नियम बनाने को लेकर विचार विमर्श शुरू कर दिया है। जल्द ही इससे संबंधित कानून आएगा, जिसके बाद इन बड़ी टेक कंपनियों को मीडिया संस्थानों को भी अपने लाभ का हिस्सा देने को मजबूर होना पड़ेगा।

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