जब आप किसी को उसके मूल से हटाकर अपने विचारों में ढालते हैं तो यह आपकी जवाबदेही बनती है कि आपके विचार से जुड़ने के बाद उसे कोई तकलीफ न हो पर हमारे देश के मुस्लिम समुदाय ने कभी इस बात को समझा ही नहीं। इसी क्रम में मुस्लिम समाज के “पसमांदा मुसलमान” की हालत इस हेय दृष्टि की वजह से दोयम दर्ज़े पर पहुंच गयी है। विडंबना यह है कि पसमांदा मुसलमान मुस्लिम समाज में सर्वाधिक संख्या में हैं पर उन्हें निचला बताकर आज तक उन्हीं के मुस्लिम समाज द्वारा उनका शोषण किया जाता रहा। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी खाई को कम करने के लिए स्वयं बीड़ा उठाया है। बीजेपी की इस नयी रणनीति से वो 85% मुसलमानों की घरवापसी सुनिश्चित करेगी।
“पसमांदा मुसलमानों” तक पहुंचने के लिए पीएम ने कहा
दरअसल, पिछले सप्ताह हैदराबाद में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान, पीएम नरेंद्र मोदी ने नेताओं और पार्टी कार्यकर्ताओं से न केवल हिंदुओं के कमजोर वर्गों तक पहुंचने का आग्रह किया, बल्कि अल्पसंख्यकों के “वंचित और दलित” वर्गों जैसे “पसमांदा मुसलमानों” तक भी पहुंचने के लिए कहा। पीएम द्वारा विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय के उस तबके का उल्लेख करना जो संख्या में आज भी ज़्यादा है पर तिरस्कार झेल रहा है यह बहुत बड़े संकेत दे गया। इस एक कदम से पता चला कि भाजपा एक ऐसे वर्ग को दूर करने की योजना बना रही है जिसे पारंपरिक रूप से विपक्षी दलों का वोट बैंक माना जाता है।
जिन पसमांदा मुसलमानों का उल्लेख पीएम मोदी ने किया वो आज भी सही ढंग से स्थापित नहीं हो सके हैं। भारत में मुसलमानों को मोटे तौर पर तीन सामाजिक समूहों में वर्गीकृत किया जाता है – अशरफ (‘महान’ या ‘सम्माननीय’), अजलाफ (पिछड़े मुसलमान) और अरज़ल (दलित मुसलमान)।
अशरफ को पारंपरिक रूप से प्रभावशाली सामाजिक समूह के रूप में देखा जाता है। इस समूह में सैयद, मुगल, पठान आदि या उच्च जाति के धर्मान्तरित जैसे रंगद (मुस्लिम राजपूत) या तागा (त्यागी मुसलमान) शामिल हैं।
अजलाफ और अर्ज़ल को सामूहिक रूप से पसमांदा के रूप में जाना जाता है – एक फारसी शब्द जिसका अर्थ है “पीछे छोड़ दिया”। यह अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) मुसलमानों के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है जिसमें समुदाय के आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े सदस्य शामिल हैं।
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मुस्लिम क्रम में कम पदनाम दिया गया था
कई विशेषज्ञों का कहना है कि इन समूहों को मुस्लिम क्रम में कम पदनाम दिया गया था क्योंकि वे स्थानीय आबादी का हिस्सा थे जो बाद में इस्लाम में परिवर्तित हो गए। ऐसा माना जाता है कि इनमें से कई परिवारों ने अपने पेशे के नाम पर ‘अंसारिस (बुनकर)’ या ‘कुरैशी (कसाई)’ का नाम लिया।
पसमांदा मुसलमानों के नेताओं का दावा है कि भारत में लगभग 85% मुस्लिम आबादी पसमांदा है जबकि शेष ‘अशरफ’ हैं। उनका दावा है कि पहली 14 लोकसभा में चुने गए लगभग 400 मुसलमानों में से केवल 60 पसमांदा पृष्ठभूमि से थे।समुदाय ने अक्सर इस मुद्दे को उठाने की कोशिश की है कि वे मुस्लिम आबादी के बीच बहुसंख्यक हैं लेकिन एक छोटा कुलीन वर्ग (अशरफ) आज भी नेतृत्वकर्ता की स्थिति में बना हुआ है। पसमांदा मुस्लिम महाज़ की स्थापना 1998 में बिहार में एक ओबीसी मुस्लिम अली अनवर ने की थी। यह संगठन अरज़ल और अजलाफ वर्ग से संबंधित मुसलमानों की मुक्ति के लिए समर्पित है।
अब भाजपा इस पसमांदा मुस्लिम समुदाय को कुछ ऐसे साध रही है कि हाल ही में योगी मंत्रिमंडल में जिस एक मुस्लिम समाज के व्यक्ति को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया वो भी पसमांदा मुस्लमान समुदाय से आते हैं। पसमांदा मुस्लिमों को भाजपा से जोड़ने की मुहिम यूपी से शुरू हो चुकी है। योगी सरकार के दूसरे कार्यकाल में पसमांदा समुदाय से आने वाले दानिश आजाद अंसारी को राज्य मंत्री बनाया गया। साथ ही जावेद अंसारी को यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन का चेयरमैन नियुक्त किया गया। वहीं, चौधरी काफिल-उल-वारा को यूपी उर्दू अकादमी का चीफ नियुक्त किया गया है। जावेद और चौधरी काफिल भी पसमांदा समुदाय से आते हैं।
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ऐसा करके भाजपा अब पसमांदा मुस्लमान को अपना कोर वोटर बनाने में जुट गयी है और पीएम मोदी इस विषय पर कितने संजीदा हैं वो किसी से छुपा नहीं है। पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में विशेष रूप से पसमांदा मुस्लमान का उल्लेख करना एक बड़ी लकीर खींचने वाला निर्णय है और निस्संदेह इस बार वो इस विश्वास पर पसमांदा मुस्लमान को तरजीह देते हुए जीत भी लेंगे क्योंकि जिस समुदाय को आज तक तिरस्कार ही मिला हो उसे सम्मान देने वाली सरकार उसके लिए वंदनीय हो जाएगी। और कुछ इस प्रकार भाजपा की नयी रणनीति 85 प्रतिशत वाले पसमांदा मुस्लमानों की घर वापसी सुनिश्चित करेगी।
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