के. अन्नामलाई ने चितपावन ब्राह्मणों के नरसंहार पर जो कहा वो सभी को जानना चाहिए

भाजपा के 'साउथ सुपरस्टार'ने 'चितपावन ब्राह्मणों' की हत्या पर बुलंद की आवाज

K Annamalai

Source- TFIPOST HINDI

हत्या किसी भी मामले का निवारण नहीं हो सकती, फिर चाहे वो महात्मा गांधी की हत्या हो या फिर उनकी हत्या के बाद उस समाज के लोगों की हत्या हो जिस समाज से नाथूराम गोडसे आते थे। चूंकि नाथूराम विनायकराव गोडसे का जन्म महाराष्ट्र के चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था इसलिए महात्मा गांधी की हत्या के तुरंत बाद जितना त्रास नाथूराम गोडसे ने झेला था उससे कहीं अधिक यातनाएं चितपावन ब्राह्मण समुदाय को मिली थी क्योंकि गोडसे उस समुदाय से थे। यह वो सत्य है जो आजतक किसी ने कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाई पर तमिलनाडु भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के. अन्नामलाई ने इस सत्य को डंके की चोट पर कहने की हिम्मत दिखाई है। इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे भाजपा के साउथ सुपरस्टार ने उस बात को सार्वजनिक करने की हिम्मत की है जिससे अनभिज्ञ कोई नहीं है लेकिन उससे हमारे नेता आज तक बचते आए हैं।

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दरअसल, तमिलनाडु भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के. अन्नामलाई ने उस शाश्वत सत्य को आवाज़ दी है जिसे सुनना और कहना देश के एक वर्ग विशेष के लिए बड़ा पीड़ादायक होता है। इसलिए नहीं कि वे मोम के बने हुए हैं या उनका दिल पसीज जाता है, वो इसलिए इस बात को सामने नहीं आने देते क्योंकि यह उनके एजेंडे में “फ़िट” नहीं बैठता।

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तमिलनाडु भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के. अन्नामलाई ने हाल ही में एक कार्यक्रम में कहा कि गांधी की हत्या के बाद निर्दोष महाराष्ट्र ब्राह्मणों को जातीय नरसंहार का सामना करना पड़ा था। इन्हीं चितपावन और देशस्थ ब्राह्मणों का गांव-गांव शिकार किया गया और उन्हें आज तक कभी न्याय नहीं मिला। इन हत्याओं को हिटलर द्वारा दी गई यातनाओं से तुलना कर अन्नामलाई ने कहा कि प्रत्येक गांव में जाकर केवल उस समुदाय के व्यक्ति को लाकर मार देना, उस समय चरम पर था। उन्हें कभी न्याय नहीं मिला।

5000 से अधिक ब्राह्मणों की हुई थी हत्या

ज्ञात हो कि गांधी की हत्या भले ही नाथूराम गोड़से ने की पर उसका ऋण पूरे समाज को अपनी जान गंवाकर भरना पड़ा था। नाथूराम गोडसे द्वारा महात्मा गांधी की हत्या के बाद महाराष्ट्र में चितपावन ब्राह्मण ज्यादातर मराठा जाति के सदस्यों द्वारा हिंसा का लक्ष्य बन गए। हिंसा के लिए प्रेरक कारक दंगाइयों की ओर से गांधी के लिए प्रेम नहीं था बल्कि मराठाओं को उनकी (चितपावन ब्राह्मणों) जाति की स्थिति के कारण अपमान का सामना करना पड़ा था। कुछ रिपोर्ट्स की मानें तो उस समय करीब 5000 से अधिक ब्राह्मणों की हत्या हुई तो कुछ लोगों का मानना है कि 8000 से अधिक चितपावन ब्राह्मण मारे गए।

उस वक्त की घटनाओं का वर्णन करने वाली किताब ‘गांधी एंड गोडसे’ में भी इसके प्रमाण मिलते हैं कि ब्राह्मणों के खिलाफ उस वक़्त काफी भयंकर माहौल बना दिया गया था, चितपावन ब्राह्मण समुदाय के लोगों की हत्याएं आम हो गई थीं। इस पर भी जब कांग्रेस का मन नहीं भरा तो वहां ब्राह्मणों का सामूहिक बहिष्कार किया गया। भालजी पेंढारकर जैसे प्रख्यात कलाकार तक इस घृणास्पद अभियान के प्रकोप से नहीं बच पाए। वहीं, अगर सिख दंगों की बात करें तो उस समय 2,999 सिखों की हत्या हुई थी और पूरे देश में कोहराम मच गया था लेकिन अगर हम 5000 चितपावन ब्रह्मणों की हत्या को ही लेकर आगे बढ़ें फिर भी यह संख्या काफी ज्यादा है लेकिन इस भयावह हत्याकांड के बाद किसी ने चू तक नहीं किया था।

आपको बता दें कि हत्या के बाद हुई हिंसा से प्रभावित चितपावन पटवर्धन परिवार ने सांगली जैसी रियासतों पर शासन किया था जहां ब्राह्मणों के खिलाफ हमलों में जैन और लिंगायत, मराठों के साथ शामिल हुए थे। किसी ने इस मुद्दे को आजतक इसलिए नहीं उठाया क्योंकि स्वार्थ निहित राजनीति में ऐसे विषय टिकते नहीं हैं और जब 70 वर्ष तक एक ऐसी सरकार ने राज किया हो जो सावरकर और उनके जैसे अनेकों सेनानियों को अपमानित करते रहे हों तो ऐसे में उस समाज की आवाज़ नेहरू-गांधी परिवार की सरकारें क्यों ही बुलंद करती जिनका सरोकार उस चितपावन ब्राह्मण समुदाय से हो जिससे नाथूराम गोडसे आते थे। इसलिए न निर्दोष आत्माओं को कभी न्याय मिला और न ही उनकी आवाज़ उठी। ऐसे में तमिलनाडु भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के. अन्नामलाई ने वो काम कर दिखाया जिससे सभी बचना चाहते थे।

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