Boycott Bollywood ने मायानगरी के खोखलेपन को उजागर किया और कई फ़िल्में बर्बाद कर दीं

‘बायकॉट बॉलीवुड’ काम करता है यहां देखिए कैसे?

bollywood boycott

SOURCE TFIPOST.in

सुशांत सिंह राजपूत का अपमान नहीं सहेगा हिंदुस्तान, बॉलीवुड को सबक सिखाकर रहेंगे, बॉलीवुड को ये पंगा पड़ेगा महंगा! ऐसे अनेकों नारे पिछले कई वर्षों में आपने सुने होंगे, परंतु ये अधिकतम सोशल मीडिया पर या तो उपहास का पात्र होते थे या फिर इन्हें हवा हवाई दावे माने जाते थे। परंतु विगत कुछ दिनों में कहीं न कहीं ये नारे अब सत्यता में परिवर्तित होते दिखायी दे रहे हैं और ‘बॉयकॉट बॉलीवुड’ का नारा अब वास्तव में सत्य प्रतीत होता हुआ दिखायी दे रहा है।

इस लेख में जानेंगे कि कैसे ‘बायकॉट बॉलीवुड’ अभियान केवल एक सोशल मीडिया अभियान नहीं है अपितु वास्तव में ये अभियान सफल होता हुआ भी प्रतीत हो रहा है जिसके पीछे एक नहीं बल्कि अनेक कारण हैं।

और पढ़ें- गैंग्स ऑफ वासेपुर– भारत की सबसे महत्वपूर्ण गैंगस्टर फिल्मों में से एक

2020 में दो महत्वपूर्ण फिल्में प्रदर्शित होनी थीं

तनिक स्मरण कीजिए उस समय को जब 2020 में एक नहीं बल्कि दो महत्वपूर्ण फिल्में प्रदर्शित होने वाली थीं। एक तरफ थी बॉलीवुड की ‘सुपरस्टार’ दीपिका पादुकोण जिनके पास थी सामाजिक उन्मूलन से संबंधित ‘छपाक’ जिसके लिए फिल्म इंडस्ट्री से लेकर PR एजेंसी, ईकोसिस्टम तक लगा था। सुना तो यहां तक है कि बॉर्डर पार से कुछ भाईजान तक अपना सब कुछ झोंकने को तैयार थे।

वहीं दूसरी तरफ थे हमारे मास महाराजा अजय देवगन जिन्हें लोग उनके अभिनय के लिए कम, और उनके विमल के विज्ञापन के लिए अधिक चिढ़ाते थे। उन्होंने दांव लगाया था मराठी निर्देशक ओम राऊत पर जो नरवीर सूबेदार तानाजी मालुसरे की कथा को ‘तान्हाजी – द अनसंग वॉरियर’ के माध्यम से बड़े परदे पर प्रदर्शित करना चाहते थे। अब आप भी सोच रहे होंगे– ‘बॉयकॉट बॉलीवुड’ का इससे क्या वास्ता? असल में नींव तो यहीं से पड़ी थी बंधु, क्योंकि अपने आप को आगे ले जाने की होड़ में दीपिका मैडम ने एक बहुत भारी भूल की– JNU यात्रा की।

देखिए, आप एक स्वतंत्र देश के स्वतंत्र नागरिक हैं, जहां इच्छा है जाइए, परंतु विपणन यानी मार्केटिंग का एक मूल मंत्र होता है– अपने उत्पाद के लिए कभी वो रणनीति न अपनाएं जो आपकी लंका लगा दे और दीपिका ने वही किया। जिस समय CAA विरोधी प्रदर्शन चरम पे थे उस समय दीपिका पहुंच गयी वामपंथियों के गढ़ JNU, और वामपंथियों के प्रदर्शन में शामिल हो गयें, ताकि लोगों को ऐसा प्रतीत हो कि वे भी विद्यार्थियों के साथ हैं और उन्हें देश की चिंता है, परंतु न माया मिली न राम, लोगों ने उलटे उनकी फिल्म के ‘सामूहिक बहिष्कार’ की घोषणा का निर्णय किया सो अलग जिसका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ‘तान्हाजी’ को भरपूर लाभ मिला।

परंतु आपको क्या लग रहा है ये बस यूं ही प्रारंभ हो गया? जनता बहुत वर्षों से बॉलीवुड के नाम पर परोसे जा रहे कूड़ा कबाड़ से तंग आ चुकी थी। ‘छपाक’ तो चिंगारी थी पर आग तो तब लगी जब सुशांत सिंह राजपूत के रहस्यमयी मृत्यु की खबर सुर्खियों में आयी। पूरे देश का विश्वास मानो बॉलीवुड पर से डोलने लगा और जैसे-जैसे सुशांत सिंह राजपूत की मृत्यु से संबंधित खबरें सामने आने लगी वैसे-वैसे जनता का बॉलीवुड पर से विश्वासनीयता हटने लगी थी।

और पढ़ें- आइटम नंबर – फिल्म उद्योग को लील रहा है यह ‘कैंसर’

‘बायकॉट बॉलीवुड’ कैम्पेन जोर पकड़ने लगा था

‘बायकॉट बॉलीवुड’ कैम्पेन अब जोर पकड़ने लगा और इसका सर्वप्रथम शिकार बना सड़क, जिसे यूट्यूब पर जमकर विरोध और अपमान का सामना करना पड़ा। आज भी इसके ट्रेलर को यूट्यूब के सबसे disliked videos में से एक में गिना जाता है। सिर्फ एक ही कारण था– महेश भट्ट, क्योंकि उन्होंने सुशांत सिंह राजपूत के बारे में काफी भ्रामक बातें फैलाई थीं और उनका फिल्म उद्योग में रहना लगभग असंभव हो चुका था।

परंतु ये तो रही कोविड काल के समय की बात और जब टीकाकरण के पश्चात सिनेमाघर खुलने लगे तो ‘सूर्यवंशी’ की सफलता से ऐसा प्रतीत हुआ कि ये अभियान तो फुस्स प्रतीत हो रहा है। परंतु आप फिर बॉलीवुड के नये पैंतरे से परिचित नहीं हुए। इसके लक्षण दिखे ‘चंडीगढ़ करे आशिकी’ में जहां वोक संस्कृति को जमकर ठूसने का प्रयास किया गया। इसके निर्देशक ने ‘केदारनाथ’, ‘काय पो छे’ जैसे नमूने तो पहले ही दिए थे और यहां तो एजेंडावाद जमकर भरा हुआ था।

लेकिन असल झोल तो दिखा संजय लीला भंसाली की ‘गंगूबाई काठियावाड़ी’ में। मुंबई की बदनाम गलियों पर राज करने वाली गंगूबाई काठियावाड़ी पर आधारित इस फिल्म में सब कुछ था, जो बॉलीवुड के लिए उपयुक्त थी– अंडरवर्ल्ड का महिमामंडन, वेश्याओं की दास्तान दिखाना, उन्हें अत्यंत पीड़ित चित्रित करना, हर पुरुष को अत्यंत अत्याचारी दिखाना, न जाने क्या क्या।

इसके लिए PR मशीनरी से लेकर सब कुछ दांव पर लगाया गया, जैसे हमारे 83 के लिए लगाया गया था, और बॉक्स ऑफिस रिपोर्ट्स से लेकर हर चीज़ के लिए लोगों को भ्रमित किया गया। परंतु परिणाम? 160 करोड़ के बजट पर बनी गंगूबाई 100 करोड़ से अधिक कमाकर भी ‘FLOP’ हुई, और और उसका कुल कलेक्शन मात्र 202 करोड़ रुपये रहा, जो उसके मूल बजट 160 करोड़ रुपये से कुछ ही अधिक था और अभी तो हमने इसके भारत के कलेक्शन की चर्चा भी नहीं की है।

और पढ़ें- ‘सिगरेट पीती काली’ का पोस्टर वापस, फिल्म रद्द, कार्यक्रम बंद, सब माफी मांग रहे हैं

इसके अतिरिक्त जब आपके पास KGF, RRR, विक्रम जैसे भौकाल विकल्प मिल रहे हों तो भला आप क्यों दूसरी तरफ ध्यान देंगे। बॉलीवुड के पास अब दो ही विकल्प हैं या तो अपने तौर तरीके सुधारें, अन्यथा अपना विनाश होता देखता रहें और जिस प्रकार से वह ‘शमशेरा’ जैसी फिल्मों को प्राथमिकता दे रहा है उससे उनके दिन बहुरने की आशा तो कम ही प्रतीत होती हैं।

TFI का समर्थन करें:

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें।

 

Exit mobile version