सर्वोच्च न्यायलय ने ‘रेवड़ी संस्कृति’ को खत्म करने के लिए केंद्र को सर्वोच्च मंजूरी दे दी है

चुनाव से पहले 'रेवड़ियां' बांटने वालो की लग गई लंका !

kejariwal modi

Source- TFIPOST.in

देश का पैसा देश के उत्थान, इंफ्रास्ट्रक्चर की बेहतरी के लिए लगना चाहिए न की वोट की राजनीति के लिए फ्री की रेवड़ी बांटने के लिए। इस बात को सरकार बनाने की जुगत में लगे कई राजनीतिक दल न पहले समझे थे न अब समझे हैं और न ही आगे समझेंगे। वहीं जब तक सख्ती नहीं की जाएगी तब तक ऐसे दल मानेंगे नहीं इसी बात को देश का सर्वोच्च न्यायलय समझ चुका है, इसलिए मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार को इस संदर्भ में सख्ती से निपटने के लिए निर्देशित किया है। ऐसे में अब ‘रेवड़ी संस्कृति’ को खत्म करने के लिए केंद्र को मिली सर्वोच्च मंजूरी मिल गई है।

दरअसल, भारत में मुफ्तखोरी की आदत इस समय चरम पर है। सरकार बनाने के लिए मुफ्त के शिगूफे छोड़े जाते हैं और जनता इस लालच में सरकार बना देती है। बाद में इसका खामियाजा भी इसी जनता को भुगतना पड़ता है जब एक जगह का पैसा दूसरी जगह लगता तो है पर उससे आई रिक्तता भरने के लिए भी सारा ठीकरा उसी जनता पर फूटता है। ऐसे में अस्थिरता का माहौल बनता है और सरकार चलने की जगह अपने मुफ्तखोरी वाले वादों को पूरा करने के चक्कर में रगड़ जाती है। इसी पर अब सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी प्रतिक्रिया जारी की है और कहा है कि चुनाव से पहले मुफ्त योजनाओं का वादा यानी ‘रेवड़ी कल्चर’ का एक बड़ा उदाहरण है।

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सुप्रीम कोर्ट ने ‘रेवड़ी कल्चर’ को गंभीरता से लिया

सुप्रीम कोर्ट ने इस ‘रेवड़ी कल्चर’ को एक गंभीर मुद्दा बताया है। कोर्ट ने इसपर नियंत्रण करने के लिए केंद्र से कदम उठाने को कहा है। CJI एनवी रमना, जस्टिस कृष्ण मुरारी और हिमा कोहली की बेंच ने केंद्र से कहा है कि “इस समस्या का हल निकालने के लिए वित्त आयोग की सलाह का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।” ज्ञात हो कि, हाल ही में पीएम नरेंद्र मोदी द्वारा चुनावों में ‘रेवड़ी कल्चर’ के रूप में मुफ्त उपहार देने की परंपरा की आलोचना करने के बाद शब्दों का एक राजनीतिक युद्ध छिड़ गया था। इतना ही नहीं यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा कि ‘फ्री’ की संस्कृति पर रोक लगाई जाए। जिस पर मंगलवार को सुनवाई हुई। चुनाव आयोग की ओर से पेश वकील ने अदालत को बताया कि मुफ्त उपहार और चुनावी वादों से संबंधित नियमों को आदर्श आचार संहिता में शामिल किया गया है।

सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग की तरफ से पेश हुए वकील अमित शर्मा ने कहा कि “पहले के फैसले में कहा गया था कि केंद्र सरकार इस मामले से निपटने के लिए कानून बनाए।” वहीं एडिशनल सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने कहा कि “यह चुनाव आयोग पर निर्भर करता है।” सीजेआई रमना ने नटराज से कहा, “आप सीधा-सीधा यह क्यों नहीं कहते कि सरकार का इससे कोई लेना देना नहीं है और जो कुछ करना है चुनाव आयोग करे।” मैं पूछता हूं कि केंद्र सरकार इस मुद्दे को गंभीर मानती है या नहीं? आप पहले कदम उठाइए उसके बाद हम फैसला करेंगे कि इस तरह के वादे आगे होंगे या नहीं। आखिर केंद्र कदम उठाने से परहेज क्यों कर रहा है।

वहीं अधिवक्ता और याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि भारत का नागरिक होने के नाते मुझे यह जानने का अधिकार है कि हम पर कितना कर्ज है? चुनाव आयोग को एक शर्त तय करने दें। सीजेआई एनवी रमना, जस्टिस कृष्ण मुरारी और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने अब अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल से केंद्र सरकार से निर्देश मांगा है कि क्या वित्त आयोग इस मामले पर कोई कदम सुझा सकता है। उपाध्याय ने कहा कि हमने सुझाव दिए हैं। यह एक गंभीर मसला है। इस पर सीजेआई एनवी रमन्ना ने पूछा कि फ्रीबीज को कैसे कंट्रोल किया जाए, इस पर आपने क्या सुझाव दिए हैं? क्या आपके पास कोई सुझाव है?

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उपाध्याय ने कहा कि विधि आयोग की करीब तीस रिपोर्टें सौंपी जा चुकी हैं। चुनाव आयोग एक अतिरिक्त शर्त लगा सकता है कि राजनीतिक दलों को ऐसे वादे नहीं करने चाहिए। अधिवक्ता उपाध्याय ने कोर्ट को बताया कि सभी भारतीय राज्यों पर कुल मिलाकर 70 लाख करोड़ से ज्यादा का कर्ज है। उन्होंने कहा कि जब मैंने यह याचिका दायर की थी, तब पंजाब राज्य पर 3 लाख करोड़ का कर्ज था। पंजाब की कुल आबादी 3 करोड़ है। यानी हर नागरिक पर करोड़ों का कर्ज है। कुल मिलाकर सभी राज्य 70 लाख करोड़ से अधिक के कर्ज में हैं। कर्नाटक में 6 लाख करोड़ से ज्यादा हैं।

अधिवक्ता उपाध्याय ने तर्क दिया कि हम श्रीलंका होने की राह पर हैं। वहाँ भी इसी तरह की मुफ्त सुविधाओं का वादा किया गया था। यदि यही हाल भारत का भी रहा तो हमारी अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी। हालांकि, बेंच ने इस लाइन पर सावधानी बरती। CJI ने कहा कि यह बहुत गंभीर मुद्दा है, इसलिए हम इसे सुन रहे हैं, अगर कर्ज है तो केंद्र सरकार उस पर नियंत्रण रखेगी। राज्य एक सीमा से अधिक ऋण कैसे ले सकते हैं? मामले की सुनवाई अब 3 अगस्त को होने की उम्मीद है, जिसमें केंद्र कानूनी अड़चनों को मुफ्त में लाने के सुझाव पर प्रतिक्रिया देगा।

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जिस संजीदगी के साथ इस बार सुप्रीम कोर्ट ने अपनी ओर से फ्री वाले शिगूफे पर चर्चा और बातों का आदान प्रदान किया है, निश्चित रूप से आने वाले समय में फ्री की रेवड़ी बांटने का दावा करने वाले आम आदमी पार्टी सरीखे से दल सर्वोच्च गाज के धारक बनेंगे। जिस तरह केन्द्र सरकार और स्वयं पीएम मोदी इस संदर्भ मं सख्ती अपनाने की बात कर रहे थे उसी बीच ‘रेवड़ी संस्कृति’ को खत्म करने के लिए केंद्र को मिली ‘सर्वोच्च न्यायलय’ की सर्वोच्च मंजूरी मिल चुकी है। निस्संदेह अब कोर्ट और सरकार मिलकर इस संस्कृति को खत्म करने के लिए अग्रणी भूमिका निभाने वाली है।

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