अमेरिका के ताइवान यात्रा को लेकर चीन ने ख़मियाज़ा भुगतने की धमकी दी

ड्रैगन ने धमकाया तो सुपरपावर ने कदम पीछे हटाया !

CHINA AMERICA

Source- TFIPOST.in

अमेरिका सुपरपॉवर बनने का केवल ढोंग ही रचता है। वे दिखाने की कोशिश यही करता है कि विश्व पर उसने अपना कितना दबदबा बनाया हुआ है। परंतु आज के समय में देखा जाए तो अमेरिका की हालत कुछ ऐसी ही हो गई है, जिसे कोई गंभीरता से नहीं लेता। जो अमेरिका कभी डराने-धमकाने के प्रयास करता था, वहीं अब दूसरों के दबाव के आगे झुकने को मजबूर होने लगा है। दरअसल, हम यह बातें चीन के संदर्भ में कर रहे हैं। ऐसा लगने लगा है कि चीन की धमकियों ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को डराकर रख दिया है। वे बेबस हो रहे है और यही कारण है कि बाइडेन ताइवान के मामले पर भी अब अपने कदम पीछे खींचने को मजबूर होने लगा है।

चीन और ताइवान के बीच विवाद तो लंबे समय से चला आ रहा है। चीन, ताइवान को अपने एक प्रांत के तौर पर देखता है। वे उसे अपने देश का हिस्सा मानता है और ताइवान को चीन में शामिल कराने के प्रयास भी करता रहता है। जबकि दूसरी ओर ताइवान स्वयं को एक आजाद देश मानता है। इसी कारण से चीन और ताइवान के बीच लंबी अवधि से तनाव चला आ रहा है। ताइवान मुद्दे को लेकर अक्सर ही अमेरिका और चीन के बीच भी अक्सर विवाद देखने को मिलता है।

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ताइवान को लेकर अमेरिका की नीति अस्पष्ट 

देखा जाए तो ताइवान के मुद्दे पर अमेरिका की नीति अस्पष्ट सी नजर आती रही है। कूटनीतिक तौर पर अमेरिका ”एक चीन की नीति” का समर्थन करता है। वहीं अमेरिका लोकतंत्र बनाए रखने के लिए ताइवान का समर्थन करता है। वे कई-कई मौकों पर ताइवान के समर्थन में खड़ा नजर आया है। साथ ही चीन को ताइवान के विरुद्ध कार्रवाई ना करने के लिए चेताया भी। इसके अलावा अमेरिका, ताइवान को सुरक्षा के लिए अपने घातक हथियार मुहैया करा चुका है। ताइवान अपने अधिकांश रक्षा बुनियादी ढांचे के लिए अमेरिका पर निर्भर है। ताइवान की सुरक्षा के लिए खतरे बढ़ रहे हैं और इस कारण अमेरिका की “रणनीतिक अस्पष्टता” पर प्रश्न उठने लगे है।

अमेरिका और चीन एक बार फिर आमने-सामने है और इस बार इसकी वजह बना है अमेरिकी कांग्रेस की स्पीकर नैन्सी पेलोसी की ताइवान यात्रा। दरअसल, जल्द ही अमेरिकी कांग्रेस की स्पीकर नैन्सी पेलोसी ताइवान की यात्रा पर जाने की तैयारी में है। परंतु इससे पहले ही उनकी यात्रा पर बड़ा बवाल खड़ा हो गया। चीन नैन्सी पेलोसी के ताइवान दौरे के सख्त खिलाफ है और उसने साफ तौर पर धमकी दे दी है कि अमेरिका अगर गलत रास्ते पर गया, तो उसे अंजाम भुगतने को तैयार रहना होगा। ऐसा लगता है कि चीन की इसी धमकियों से अमेरिका डर गया है और यही कारण है कि अब वे नैन्सी पेलोसी की यात्रा से कदम खींचने को मजबूर हो रहा है।

डेमोक्रेटिक पार्टी की सांसद नैन्सी पेलोसी अमेरिका की प्रतिनिधिसभा की स्पीकर हैं। राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के बाद वे अमेरिका की तीसरी सबसे शक्तिशाली शख्सियत मानी जाती है। वे अगर ताइवान के दौरे पर गई तो वे 25 सालों के बाद ऐसा करने वाली उच्च अमेरिकी राजनेता बनेगी। इससे पूर्व वर्ष 1997 में रिपब्लिकन हाउस के स्पीकर न्यूट गिंगरिच ने ताइवान की यात्रा की थी। नैन्सी लंबे समय से चीन की आलोचक रही है। वो खुलकर चीन के विरुद्ध में आवाज उठाती नजर आती है। पेलोसी ने कहा है कि “हमारे लिए ताइवान के प्रति समर्थन दिखाना महत्वपूर्ण है।”

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चीन ने अमेरिका को दी धमकी

यही कारण है कि चीन उनकी ताइवान यात्रा से तिलमिला उठा है और अमेरिका को धमकी दे डाली। संभावना जताई जा रही है कि अगर नैन्सी पेलोसी ताइवान जाती है, तो गुस्से में चीन सैन्य कार्रवाई भी कर सकता है। चीनी रक्षा मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने इससे संबंधित एक बड़ा बयान देते हुए कहा कि इस दौरे पर सैन्य प्रतिक्रिया हो सकती है।

यही कारण है कि चीन की इसी धमकियों से अमेरिका डर रहा है और वो बैकफुट पर आने को मजबूर हो रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने बीते दिनों अपने एक बयान के माध्यम से नैन्सी पेलोसी की ताइवान यात्रा को टालने की बात कहते नजर आए। जो बाइडेन ने अपने एक बयान में कहा कि “अमेरिकी सैन्य अधिकारियों का मानना ​​है कि हाउस स्पीकर नैन्सी पेलोसी के लिए इस समय ताइवान का दौरा करना अच्छा विचार नहीं है।” वहीं इसके अलावा इस तनाव के बीच बाइडेन चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से बातचीत करने वाले है।

इन कदमों से तो यह ऐसा ही प्रतीत होता है कि चीन ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को अपनी धमकियों के आगे घुटने टेकने को मजबूर कर दिया। इससे केवल चीन का हौसला ही नहीं बढ़ेगा बल्कि वे यह भी समझ जाएगा कि अगर अमेरिका के आगे वो कठोर रवैया अपनाएगा, तो वो अपने कदम पीछे खींच लेगा। एक ओर जहां ताइवान पर चीनी आक्रमण का खतरा बढ़ रहा है, तो दूसरी तरफ अमेरिका जो बाइडेन के नेतृत्व में बीजिंग के सामने कमजोर दिखने लगा है। हालांकि इस सबसे समस्या ताइवान की ही बढ़ेगी। ताइवान इन सबसे नाखुश है। ताइवानी संसद के विदेश मामलों और राष्ट्रीय रक्षा समिति के सह-अध्यक्ष जॉनी चियांग ने ब्लूमबर्ग से कहा था- “ताइवान के दृष्टिकोण से बाइडेन की टिप्पणियां हमें अच्छा महसूस नहीं कराती हैं। हमें दुख होता है।”

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यानी अब ऐसा लगने लगा है कि बाइडेन चीन के आगे झुककर ताइवान को उसी के हाल पर छोड़ने को मजबूर हो रहे है। ऐसा ही उन्होंने यूक्रेन के साथ भी किया था। अमेरिका ने यूक्रेन को रूस के विरुद्ध युद्ध की आग में तो झोंक दिया। परंतु इसके बाद अमेरिका ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने के अलावा और कुछ खास कदम नहीं उठाए। युद्ध ने यूक्रेन को पूरी तरह से बर्बाद करके रख दिया। अब ऐसा लगता है कि अमेरिका, ताइवान को भी यूं ही बीच में छोड़ देगा और इससे चीन उसकी समस्या और बढ़ा देगा।

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