‘गढ़वा तो शुरुआत है’, हिंदुओं अभी नहीं जागे तो देर हो जाएगी!

प्रिय हिंदुओं! गढ़वा आपसे कुछ कहना चाहता है

jharkhand

SOURCE TFIPOST

देश में बेहद ही खतरनाक ट्रेंड चल पड़ा है। दिन पर दिन कट्टरता अपने चरम पर पहुंचती जा रही है। इस्लामिस्टों द्वारा चुन-चुनकर हिंदुओं को निशाना बनाया जा रहा है। इसके अलावा देश के स्कूलों, कॉलेजों में धार्मिक कट्टरवाद का जहर घोलने के प्रयास हो रहे हैं। बीते महीनों में देखने को मिला था कि कर्नाटक में कैसे कुछ मुस्लिम छात्राएं कॉलेज में हिजाब पहनने की जिद पर अड़ गयी थीं और पूरे मामले को लेकर बड़ा विवाद भी खड़ा हो गया था।

वर्षों से चली आ रही प्राथाओं को बदलने का प्रयास

दरअसल, अब स्कूलों में वर्षों से चली आ रही प्राथाओं को भी सांप्रदायिक रंग देने के प्रयास किए जाने लगे हैं। झारखंड के गढ़वा से एक हैरान कर देने वाला मामला सामने आया। दरअसल, गढ़वा में मुस्लिम समुदाय ने स्कूल के प्रिसिंपल पर दबाव बनाकर वर्षों से चली आ रही प्रार्थना के तौर-तरीके में बदलाव करवाया। पूरा मामला गढ़वा के मध्य विद्यालय का है। जहां मुस्लिमों के द्वारा स्कूल की प्रार्थना में जबरदस्ती इस्लामी नियम लागू करने के लिए विविश किया गया।

स्कूल में प्रार्थना के रूप में बच्चों से “दया का दान विद्या का…” करवाया जाता था लेकिन इसमें बदलाव करके बच्चों से “तू ही राम, तू ही रहीम…” प्रार्थना करायी जाने लगी। केवल यही नहीं स्कूल में बच्चों को हाथ जोड़ने की बजाए हाथ बांधकर प्रार्थना करने को भी कहा गया। इसके पीछे तर्क यह दिया गया कि क्षेत्र में मुस्लिम आबादी की जनसंख्या 75% है। यानी मुस्लिम समुदाय के लोग वहां अधिक आबादी में है, तो नियम भी अपने हिसाब से ही चलाएंगे।

और पढ़ें- जम्मू कश्मीर में ‘कट्टरपंथी इस्लाम’ सिखाने वाले स्कूलों को किया गया बंद

स्कूल के प्रिंसिपल युगेश राम ने बताया कि 75 प्रतिशत आबादी का हवाला देकर लंबे समय से मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा स्कूल के नियमों में बदलाव का दबाव बनाया जा रहा था। मामले ने तूल पकड़ा तो शिक्षा विभाग हरकत में आया और इसे गंभीरता से लेते हुए दोबारा बच्चों ने हाथ जोड़कर प्रार्थना शुरू की। स्कूल को विद्या का मंदिर कहा जाता है, जहां जाति-धर्म से परे बच्चे शिक्षा पाने के लिए जाते हैं। उन्हीं स्कूलों को अगर धर्म की प्रयोगशाला बना दिया जाएगा, बच्चों के दिमाग में यूं धर्म को लेकर जहर घोला जाएगा तो देश किस ओर जाएगा इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है।

देखा जाए तो झारखंड में कट्टरता बढ़ती ही चली जा रही है और इसका शिकार स्कूलों को भी बनाया जा रहा है। झारखंड में कभी स्कूल को हरा रंग देने के प्रयास होते है, तो कभी बच्चों की यूनिफॉर्म के रंग को हरे रंग में बदला जाता है। कभी जुमे के दिन छुट्टी देने का दबाव बनाया जाता है। कहीं ना कहीं इन सबके पीछे झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ही जिम्मेदार है, जो राज्य में तुष्टिकरण की नीति से इन कट्टरपंथियों के मनोबल को बढ़ावा देने का काम कर रही है।

और पढ़ें- ट्यूनीशिया ने छोड़ा इस्लाम का साथ

कश्मीर में क्या हुआ ये सबने देखा है

देश में यह सबकुछ एक षड्यंत्र के तहत चल रहा है। कट्टरपंथियों का यह इतिहास ही रहा है कि वो पहले एक क्षेत्र पर अपना कब्जा जमाते है। धीरे धीरे वहां उनकी आबादी बढ़ने लगती है और फिर वहां जबरन अपने नियम कानून लोगों पर थोप दिए जाते हैं। कश्मीर से बड़ा उदाहरण इसका भला कोई और हो सकता है क्या? जिस कश्मीर में एक समय डल झील के किनारे मंत्रों की गूंज सुनाई देती थीं। फिर एक समय ऐसा आया जब वही कश्मीर इस्लामिक कट्टरता और आतंकवाद का शिकार बना। रलिव गलिव चलिव के भड़काऊ नारों के माध्यम से कश्मीरी पंडितों को ही उनके घर, उनके कश्मीर से निकाला गया और अपने देश में शरर्णाथी बनकर रहने को उन्हें मजबूर कर दिया गया।

कश्मीर के अलावा देश के अन्य राज्यों में भी कट्टरपंथियों के द्वारा धार्मिक जहर फैलाने के प्रयास हो रहे हैं। केरल में PFI की एक रैली में सरेआम एक बच्चे द्वारा हिंदुओं और ईसाईयों को छह फीट नीचे दफन करने जैसी भड़काऊ बातें बोली जाती हैं। उदयपुर, अमरावती में इस्लामिस्टों द्वारा निशाना बनाकर हिंदुओं की हत्या की जाती है।

ये तो देश की बात हुई लेकिन ये कट्टरपंथी किस तरह से अपना फैलाव करने पर उतारू होते हैं ये आपको पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदु अल्पसंख्यों की स्थिति को देखकर सब पता लग जाएगा। कैसे पाकिस्तान में हिंदु अल्पसंख्यों की संख्या लगातार घटी है। वनइंडिया हिंदी की एक रिपोर्ट को देखें तो  पाकिस्तान में 1951 में 13 प्रतिशत हिन्दू थे। जो अब 2 फीसदी से भी कम रह गए हैं। तब पाकिस्तान में बांग्लादेश भी शामिल था  पर बांग्लादेश में भी हिन्दुओं की स्थिति दयनीय है जहां 1974 में रह रहे साढ़े 13 प्रतिशत हिन्दू आबादी में से अब महज 8 फीसदी रह गये हैं। इसके उलट भारत में मुसलमानों की संख्या 1951 में 9.8 प्रतिशत थी, जो 2011 में 14.23 प्रतिशत हो गयी। कहने को तो भारत में ये अल्पसंख्यक हैं लेकिन उनका फैलाव किसी से नहीं छिपा है लेकिन उनके तेवर बहुसंख्यकों से भी कहीं तेज हैं। अल्पसंख्यक होने का रोना रोकर कैसे सर पर चढ़ा जाता है कोई इन शांतिदूतों से सिखे।

और पढ़ें- हिंदू दर्जी कन्हैया लाल की इस्लामिस्टों द्वारा बर्बर हत्या राकेश टिकैत के लिए ‘छोटा मामला’ है

ऐसे में अब समय आ गया है कि हिंदु जाग जाएं और इस तरह की घटनाओं को गंभीरता से लें। नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब यह कट्टरपंथी एक एक कर देश में हर जगह, हर संस्था पर अपना कब्जा कर लेंगे और अपने नियम-कायदों के हिसाब से देश को चलाने पर मजबूर कर देंगे।

TFI का समर्थन करें:

सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की ‘राइट’ विचारधारा को मजबूती देने के लिए TFI-STORE.COM से बेहतरीन गुणवत्ता के वस्त्र क्रय कर हमारा समर्थन करें।

Exit mobile version